प्रदेश सरकार ने नव हरियाणा के निर्माण की राह पर तेजी से कदम बढ़ा दिए हैं। विकास की परिकल्पना में आम आदमी को सबसे पहले रखा गया है। चुनावी मौसम में उम्मीद लगाई जा रही थी कि सरकार ग्रांट रूपी रेवड़ियां बांटेंगी। इसके विपरीत बेहतर आधारभूत ढांचे के विकास के साथ उद्योग-धंधे व कृषि पर ढांचे को मजबूत करने में जुटी है। गांव, खेत व खलिहान बजट के केंद्र में है। किसानों की आमदनी दोगुनी करने की मंशा फिर से दोहराई गई है। किसानों को ऋण माफी जैसी बैसाखी नहीं उन्हें आत्मनिर्भरता का संबल देने का प्रयास किया गया है। उन्हें अन्न उत्पादक ही नहीं भविष्य के उद्यमी के तौर पर सरकार आगे बढ़ाना चाहती है। हालांकि यह प्रयास थोड़े देरी से और धीमी गति से हुए हैं लेकिन फिर भी नई उम्मीद जगा रहे हैं। किसानों को यह समझाने के प्रयास में सरकार पहले से ही थी कि गेहूं-धान का चक्र तोड़कर वाणिज्यिक खेती की राह पकड़ें।

यह बजट सरकार के इसी प्रयास को और बल प्रदान करता दिख रहा है। कृषि हरियाणा की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है तो उसकी सबसे बड़ी ताकत एनसीआर का 100 करोड़ का कृषि बाजार है। मंशा साफ है कि किसान वही उपजाएं जिसका बाजार उनके पास है। यही वजह है फल, फूल, मछली व सब्जी उत्पादन में प्रदेश के किसानों के समक्ष अपार संभावनाएं हैं। जल संसाधनों से जूझ रहे हरियाणा के लिए सूक्ष्म सिंचाई योजना पर बजट आवंटन बढ़ाया गया है। इससे जल की खपत कम होगी और राजस्थान से सटे सूखे क्षेत्रों में जल की उपलब्धता हो पाएगी। रेल व सड़क परियोजनाओं को हरी झंडी देकर सरकार विकास की रफ्तार को ओर तेज करना चाहती है।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]