इस पर आश्चर्य नहीं कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ ने पाकिस्तान को कुछ और समय तक के लिए अपनी निगरानी सूची अर्थात ग्रे लिस्ट में बनाए रखने का फैसला किया। इस फैसले के बाद पाकिस्तान पर यह दबाव बढ़ गया है कि वह आतंकी संगठनों को पालने-पोसने से बाज आए, लेकिन वह शायद ही ऐसा करे। इसके आसार इसलिए कम हैं, क्योंकि आतंकी संगठनों को संरक्षण देना उसकी नीति का अभिन्न अंग है। वह केवल अपने यहां सक्रिय आतंकी संगठनों को ही नहीं पाल रहा है, बल्कि तालिबान और खासकर उनके साझीदार हक्कानी नेटवर्क के आतंकी सरगनाओं को भी हर तरह का सहयोग-समर्थन दे रहा है। यदि इस आतंकी गुट के कई सरगना तालिबान की अंतरिम सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हो गए तो पाकिस्तान के समर्थन से ही।

एक ऐसे समय जब पाकिस्तानी संरक्षण हासिल करने वाले हक्कानी नेटवर्क के सरगना आत्मघाती हमलावरों की वाहवाही कर रहे हैं और पाकिस्तान में ठाठ से रह रहे मसूद अजहर, दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद सरीखे आतंकियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है, तब फिर यह उम्मीद किस आधार पर की जा रही है कि आने वाले समय में पाकिस्तानी शासक वह सब कुछ करेंगे, जिसकी अपेक्षा फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स कर रही है? सवाल यह भी है कि पाकिस्तान को कब तक रियायत दी जाती रहेगी? वास्तव में यह वह सवाल है, जिसे भारत को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के साथ अन्य वैश्विक मंचों पर बार-बार रेखांकित करना चाहिए।

भारत को पाकिस्तान पर नए सिरे से अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाने के लिए इसलिए भी सक्रिय होना चाहिए, क्योंकि एक तो उसकी कठपुतली माने जाने वाले अफगानिस्तान में काबिज हो गए हैं और दूसरे यह बात सामने आई है कि हाल में बांग्लादेश में हिंदुओं पर जो भीषण हमले हुए, उनके पीछे भी पाकिस्तान का हाथ है। बांग्लादेश के गृह मंत्री ने इन हमलों के लिए अपने यहां के उन कट्टरपंथी संगठनों को दोषी ठहराया है, जिनका संबंध पाकिस्तान से है।

नि:संदेह बांग्लादेश पाकिस्तान की ओर संकेत कर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। उसे हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाने वालों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई करनी होगी। भारत को इसके लिए बांग्लादेश पर दबाव बनाने के साथ यह भी समझना होगा कि पाकिस्तान उसके लिए और बड़ा सिरदर्द बन रहा है। वह यदि अफगानिस्तान और बांग्लादेश में भारतीय हितों के खिलाफ काम करने के साथ कश्मीर में आतंकवाद को नए सिरे से हवा दे रहा है तो इसका अर्थ है कि भारत को उसके विरुद्ध अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा।