विधानमंडल के मानसून सत्र में विपक्ष जिस तरह हंगामा करके प्रतिदिन कार्यवाही बाधित कर रहा है, उसे विधायी सदनों के संचालन की आदर्श परंपराओं के अनुरूप नहीं माना जा सकता। इसमें दो राय नहीं कि सरकार की अनुचित नीतियों और फैसलों का विरोध करना विपक्ष का संवैधानिक अधिकार है। इसके लिए विधानमंडल की कार्य संचालन नियमावली में बाकायदा नियमों का प्रावधान करके सुस्पष्ट व्यवस्था निर्धारित की गई है कि विपक्ष किस विषय को किस वक्त किस नियम के तहत उठाएगा। दुर्भाग्यपूर्ण है कि विधानमंडल में विपक्ष इस व्यवस्था का उल्लंघन करके कार्यवाही बाधित कर रहा है। दिलचस्प बात यह है कि मौजूदा विपक्षी दल राजद और कांग्रेस कुछ दिन पहले सत्तापक्ष में थे, जबकि राजग विपक्ष में। तब राजग इसी तरह सदन न चलने देने की शैली अख्तियार करता था और राजद व कांग्रेस इसे अनुचित बताते थे। अब ये दल वही काम कर रहे हैं तो राजग, खासकर भाजपा इसे अनुचित ठहरा रही है। जाहिर है कि विपक्ष द्वारा किसी बहाने हंगामा करके सदन की कार्यवाही बाधित रखना परंपरा बन चुका है। विपक्ष की कामयाबी तब मानी जाती, जब वह महत्वपूर्ण मुद्दों पर अच्छी रणनीति और होमवर्क के साथ सदन में सरकार को घेर पाता और जनहित के सवालों पर उसे जवाब देने के लिए मजबूर करता। फिलहाल हालत यह है कि सरकार येन-केन-प्रकारेण अपना एजेंडा पूरा कर ले रही है जबकि बाढ़, सृजन घोटाला, शिक्षा की बदहाली, जर्जर चिकित्सा व्यवस्था, खस्ताहाल सड़कें, कानून व्यवस्था, अवैध बालू खनन और कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर जवाब देने की नौबत ही नहीं आ रही। विधायी सदनों की प्रासंगिकता यही है कि वहां जनहित के सवालों पर पक्ष-विपक्ष बहस और विचार-विमर्श करें तथा सत्ता संचालन के लिए निदरेष नीतियां निर्धारित करें। दोनों पक्षों को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे अंतत: जनप्रतिनिधि हैं। उनके एजेंडे की प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ जनहित होना चाहिए। किसी हताशा या अन्य मंशा से यह सोच बदलनी नहीं चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]