पिछले 25 वर्षों की तुलना में वर्ष 2015 में सड़क हादसों में सबसे कम मौत का होना सुखद है। इससे पता चलता है कि अब दिल्लीवासी जागरूक हो रहे हैैं। यह इस बात का भी सुबूत है कि दिल्ली यातायात पुलिस द्वारा उठाए गए कदमों का भी सकारात्मक परिणाम दिखने लगा है। इसके लिए दिल्ली यातायात पुलिस की सराहना की जानी चाहिए, जिसने अपने सजगता और अभियानों से दिल्लीवासियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि जान कितनी कीमती होती है। विभिन्न सड़क हादसों में वर्ष 2015 में भी कुल 1,622 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। यह संख्या अब भी दूसरे देशों के मुकाबले काफी अधिक है। ऐसे में यातायात पुलिस को अपनी पीठ थपथपाने की बजाय अब भी इस दिशा में काम करने की जरूरत है। असली सफलता तो तब मिलेगी जब यह संख्या दो या तीन अंकों तक ही सिमट जाए।

आंकड़ों के मुताबिक सड़क हादसों में सबसे ज्यादा मौत बाइक सवारों की होती है। इनमें ज्यादातर वे लोग होते हैैं जो हेलमेट नहीं पहनते हैैं। हेलमेट नहीं पहनने वालों में महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है, जबकि कानून के मुताबिक पीछे बैठने वाली महिलाओं को भी हेलमेट लगाना अनिवार्य है। यातायात पुलिस के आंकड़े बताते हैैं कि पिछले साल जहां बिना हेलमेट पीछे बैठी 62,049 सवारियों का चालान हुआ था, वहीं इस साल यह आंकड़ा डेढ़ लाख से भी ऊपर निकल गया। यह खतरनाक स्थिति है। दिल्लीवासियों को यह समझना होगा कि दिल्ली यातायात पुलिस कोई भी नियम बनाते वक्त यह ध्यान रखती है कि उन्हें परेशानी न हो। उन्हें तो बस कानून का पालन करना है। अगर वे कानून का पालन करते तो यातायात पुलिस को ऑपरेशन चक्रव्यूह, राइडर आदि की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती। यह दिल्लीवालों की ही कमी है कि सुप्रीम कोर्ट को स्थिति का संज्ञान लेना पड़ा और रैश ड्राइविंग, शराब पीकर वाहन चलाने वालों, वाहन चलाते वक्त मोबाइल पर बात करने वालों का लाइसेंस तीन महीने तक रद करने तक का फैसला करना पड़ा। दिल्लीवासियों को समझना होगा कि उनकी गलती की वजह से ही हादसे होते हैैं और ज्यादातर हादसे नियमों का उल्लंघन करने की वजह से ही होते हैैं। इसलिए सभी दिल्लीवासियों को आज से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे यातायात नियमों को पालन करेंगे।

[स्थानीय संपादकीय: दिल्ली]