इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि जब देश के कई हिस्से बारिश कम होने की आशंका से दो-चार हैैं तो कुछ हिस्से बाढ़ के संकट का सामना कर रहे हैैं। चंद दिनों पहले तक पूर्वोत्तर के राज्य और पश्चिम बंगाल के कुछ इलाके बाढ़ से घिरे थे तो अब बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बाढ़ के कारण तमाम लोग प्रभावित हैैं। इनकी संख्या लाखो में है। समस्या केवल यही नहीं कि लाखों लोग बाढ़ का सामना कर रहे हैैं, बल्कि यह भी है कि उनके घर गिर गए हैैं और मवेशियों को भी नुकसान पहुंचा है। राहत और बचाव के कितने भी उपाय किए जाएं, बाढ़ के कहर को एक सीमा तक ही कम किया जा सकता है। जो इलाके बाढ़ से उबर रहे हैैं वहां अब बीमारियों के प्रकोप का खतरा उभर आया है। इस सबके बीच यह भी ध्यान रहे कि गुजरात और राजस्थान के कुछ क्षेत्र भी बाढ़ के कारण अच्छा-खासा नुकसान उठा चुके हैैं। इसी तरह कई शहरों में सामान्य से ज्यादा बारिश ने जनजीवन को बाधित करने का काम किया है। हमारे कुछ शहर तो ऐसे हैैं जो सामान्य बारिश में ही तमाम तरह की अव्यवस्था से घिर जाते हैैं। जिस तरह ऐसे शहरों की सूरत बदलती नहीं दिख रही उसी तरह उन ग्रामीण इलाकों की भी जो प्रतिवर्ष बाढ़ की चपेट में आते हैैं। कई बार इन इलाकों को राहत और बचाव के बावजूद जान-माल की खासी क्षति उठानी पड़ती है। जब कभी किसी इलाके में बाढ़ का पानी गंभीर संकट पैदा कर देता है तो यदा-कदा प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों का हवाई दौरा करते दिखते हैैं। इससे बाढ़ की गंभीरता के बारे में तो पता चल जाता है, लेकिन यह मुश्किल से ही जानकारी मिलती है कि बाढ़ से बचने के लिए क्या स्थाई उपाय किए जा रहे हैैं? ऐसा नहीं है कि बाढ़ हाल का कोई संकट है। सच तो यह है कि देश के तमाम इलाके ऐसे हैैं जो दशकों से प्रति वर्ष बाढ़ से दो-चार होते चले आ रहे हैैं। इनमें से कुछ तो ऐसे हैैं जो आजादी के पहले से ही बाढ़ का शिकार हैैं और आज आजादी के 70 बरस बाद भी।
समझना कठिन है कि जो बाढ़ संबंधित इलाकों को विकास की दृष्टि से कई साल पीछे खींच ले जाती है उससे निपटने के ठोस उपाय क्यों नहीं किए जा रहे हैैं? आखिर क्या कारण है कि बाढ़ से बचने के उपाय असर नहीं दिखा रहे हैैं? अब यह साफ दिख रहा है कि जलवायु परिवर्तन के बुरे नतीजे सामने लगे हैैं। बीते कुछ समय से वे अनेक इलाके बाढ़ का सामना करने लगे हैैं जो इसके लिए नहीं जाने जाते थे। इसी तरह कई ऐसे इलाके सामने आ रहे हैैं जहां बीते कई सालों से कहीं कम बारिश हो रही है। अब जब इसके आसार बढ़ गए हैैं कि जलवायु परिवर्तन के असर से बचना कठिन हो गया है तब जरूरी केवल यह नहीं है कि बारिश के पानी का प्रबंधन ठीक ढंग से किए जाए, बल्कि यह भी है कि खेती में जरूरी बदलाव के भी ठोस कदम उठाए जाएं। ऐसा न करना एक तरह से सामने दिख रही मुसीबत को एक बड़े संकट में तब्दील करना है।

[ मुख्य संपादकीय ]