धार्मिक स्थलों पर लाउड स्पीकर बजाने के मामले में अफसरों ने हाईकोर्ट में जो लचर हलफनामा दाखिल किया है उसने राज्य सरकार की किरकिरी करा दी है। इस हलफनामे से सवाल उठा है कि शोर के सवाल पर जो कठोर कदम उठाये जाने की आवश्यकता है, उसके लिए राज्य सरकार के पास पर्याप्त इच्छाशक्ति है भी या नहीं। हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं। पूछा था कि क्या धार्मिक स्थलों पर राज्य सरकार से अनुमति लेकर लाउड स्पीकर बजाए जा रहे हैं। यदि नहीं, तो सरकार ने अब तक इस बारे में क्या कार्रवाई की है। इस पर शासन स्तर से जिलों को निर्देश जारी किया गया और हाईकोर्ट में इसे ही हलफनामे के रूप में पेश कर दिया। कोर्ट का नाराज होना लाजिमी था। कोर्ट ने अधिकारियों को लताड़ लगाई कि उसने कोई मैकेनिज्म क्यों नहीं खड़ा किया। इसमें कोई दो राय नहीं कि ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए सरकार के पास संसाधनों का अभाव है। प्रदूषण मापने के लिए यंत्रों की इतनी किल्लत है कि सरकार चाहकर भी सभी जगहों पर ध्वनि प्रदूषण की माप नहीं कर सकती। अभी तक सिर्फ महानगरों में ही ध्वनि प्रदूषण मापने के इंतजाम हैं और वहीं के आंकड़े हमेशा प्रदर्शित किए जाते हैं।

दरअसल, ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए सरकार ने पहले से ही नीति-नियम बना रखे हैं, लेकिन इच्छा शक्ति के अभाव में उसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। कोर्ट ने सही ही कहा है कि यदि सरकार सख्त कदम उठाकर वाहनों से लाल बत्ती उतरवा सकती है तो अवैध लाउड स्पीकर क्यों नहीं उतरवाए जा सकते। सरकार ने कोर्ट में हलफनामा पेश करने से पहले लाउड स्पीकरों के लिए अनुमति देने का अभियान चलाया था। इसमें हर जिले में सैकड़ों आवेदन हुए। हालांकि, इसकी आड़ में ही मनमाने ढंग से लाउड स्पीकर बजाए भी जाने लगे। कोर्ट ने नियत समय के बाद शादी-विवाह में डीजे बजाने पर भी प्रतिबंध लगा रखा है, लेकिन उसकी भी अनदेखी की जा रही है। सरकार को इस विषय पर खुद पहल कर मैकेनिज्म तैयार करना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]