ब्लर्ब : हिमाचल में गोवंश के लिए सरकार की पहल सार्थक परिणाम सामने लाएगी, बशर्ते इसे सही ढंग से लागू किया जाए।

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हिमाचल के बजट में 28 नई योजनाएं हैं। बजट में गोसेवा आयोग के गठन की घोषणा की गई है। प्रदेश सरकार का यह फैसला कुछ वजहों से लिया गया है। गाय और उसके परिवार के प्रति हम 'आस्था' रखते हैं। यह अलग बात है कि जब गाय दूध देना बंद कर देती है और वह किसी काम की नहीं दिखती तो उसे सड़क पर छोड़ दिया जाता है। गाय की संभाल की यह अच्छी शुरुआत है। गोसेवा आयोग गाय और उसके बच्चों के संरक्षण के लिए नीति तैयार करेगा। चूंकि गोसदनों में गायों का पेट भरने के लिए धन की कमी आड़े आती रही है। बजट में इसका भी बंदोबस्त किया गया है।

मंदिरों के चढ़ावे का 15 प्रतिशत गोसदनों पर खर्च किया जाना प्रस्तावित है। हिमाचल में शराब की हर बोतल पर एक रुपये गाय के संरक्षण में जाएगा। एक रुपये बहुत छोटी राशि है। शराब का सेवन करने वाले इसे खुशी-खुशी 'मां' के लिए देना चाहेंगे। राज्य में देशी गाय की नस्ल सुधारने पर काम होगा। गोमूत्र पर आधारित उद्योग स्थापित किए जाएंगे। इन उद्योगों का लाभ यह होगा कि अब गाय से दूध के साथ गोमूत्र की भी 'आस' रहेगी। सरकार ने लावारिस पशुओं की समस्या को देखते हुए गोसदन बनाने का ऐलान किया है।

गोसदनों का संचालन महिला मंडलों के जरिये किया जाएगा। थोड़ा पीछे चलें तो जयराम सरकार ने आते ही लावारिस पशुओं की समस्या का समाधान तलाशने के लिए मंत्रियों की तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। एक चीज और है। ऐसा नहीं कह सकते कि लावारिस पशुओं की समस्या व उनके संरक्षण के लिए आज तक कुछ नहीं हुआ। राज्य सरकारें खेती को हो रहे नुकसान व इनसे पैदा हो रही दूसरी समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करती रही हैं। वहीं कुछ जगह लोग अपने स्तर पर पशुओं का सहारा बने हैं। इनके लिए गोसदन बनाए गए हैं। जैसे-तैसे इनके घास-पानी का इंतजाम किया जा रहा है। असल में पशुओं की संख्या ज्यादा होने के कारण उनके लिए सूखा घास तक मुहैया नहीं हो पा रहा है। इस वजह से पशु भूख के कारण दम तोड़ते रहे हैं। गाय की नि:स्वार्थ सेवा में लगे लोगों को मदद जरूर मिलती है, पर वह इतनी नहीं होती कि ये जानवर जीवित रह सकें। उम्मीद करें नई पहल से जहां बेजुबान जानवरों को सहारा मिलेगा, वहीं इनके कारण उजड़ गए खेतों में हरियाली देखने को मिलेगी। साथ ही पशुओं के कारण होने वाले सड़क हादसों में कमी आएगी।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]