उत्तर भारत के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी ने दिल्ली-एनसीआर समेत प्रदूषित वायुमंडल वाले इलाकों में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाने का फैसला करके इसलिए सही किया, क्योंकि अतीत का अनुभव यही बताता है कि दीपावली के बाद हवा और अधिक जहरीली हो जाती है। एनजीटी के इस फैसले से कुछ लोगों का असहमत होना और यह कहकर अपनी नाराजगी जताना स्वाभाविक है कि सबसे बड़े पर्व के उत्साह को बाधित करने वाला काम किया जा रहा है, लेकिन इस पर गौर करने की जरूरत है कि प्रदूषण की समस्या को गंभीर बनाने वाला काम करना यानी पटाखे चलाना कोई समझदारी नहीं। इस बार तो इसलिए भी पटाखों के इस्तेमाल से बचा जाना चाहिए, क्योंकि वायु प्रदूषण के चलते कोरोना संक्रमण का प्रकोप बढ़ने का अंदेशा है। इस अंदेशे की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। अच्छा होता कि एनजीटी का आदेश और पहले आ जाता, ताकि पटाखा बेचने वालों की ओर से इस तरह की शिकायत के लिए गुंजाइश नहीं रहती कि आखिर उनके नुकसान के लिए कौन जवाबदेह होगा?

कम से कम भविष्य में तो एनजीटी और साथ ही राज्य सरकारों को यह ध्यान रखना ही चाहिए कि पटाखों की बिक्री पर पाबंदी का फैसला समय रहते लिया जाए। इसके साथ ही इस पर भी गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है कि पटाखे वायु प्रदूषण बढ़ाने का काम अवश्य करते हैं, लेकिन वे इस समस्या की एकमात्र वजह नहीं हैं। वायु प्रदूषण के अन्य कारण हैं पराली यानी फसलों के अवशेष का दहन, सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल और वाहनों का उत्सर्जन। यदि इन सब कारणों का निदान नहीं होता और केवल पटाखों की बिक्री रोक दी जाती है तो कुछ खास हासिल होने वाला नहीं है। आखिर यह एक तथ्य है कि इन दिनों दिल्ली-एनसीआर समेत देश के अन्य हिस्सों में खतरनाक स्तर पार कर रहे वायु प्रदूषण में पटाखों की कोई भूमिका नहीं। यह घोर निराशाजनक है केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, उनके प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और सुप्रीम कोर्ट की तमाम सक्रियता के बाद भी इस बार पहले से कहीं अधिक पराली जली।

यह समझ से परे हैं कि पराली दहन के साथ-साथ वायु प्रदूषण के अन्य प्रमुख कारणों का निवारण करने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं? हर किसी को पता है कि जब ट्रैफिक जाम के कारण वाहन रेंगते हुए चलते हैं तो उनका उत्सर्जन वायुमंडल में और अधिक जहर घोलने का काम करता है, लेकिन कोई नहीं जानता कि इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है?