कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर की आशंका के बीच प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर के आठ राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात करते हुए पर्वतीय क्षेत्रों के पर्यटन स्थलों एवं बाजारों में मास्क न लगाने और शारीरिक दूरी का पालन करने में हीलाहवाली का परिचय दिए जाने पर जो चिंता व्यक्त की, उस पर गंभीरता से ध्यान दिए जाने की जरूरत है। यह जरूरत इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि कोरोना से बचाव के उपायों की अनदेखी के चलते संक्रमण की तीसरी लहर आने की आशंका गहराती जा रही है। एक आकलन तो यह भी है कि तीसरी लहर पहले ही शुरू हो चुकी है। पता नहीं यह आकलन कितना सटीक है, लेकिन यह चिंताजनक है कि महाराष्ट्र और केरल के हालात संतोषजनक नहीं दिख रहे हैं। इन दोनों राज्यों के साथ पूर्वोत्तर के राज्यों में भी कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी न आना चिंता का विषय है। प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि लोग यह तो पूछ रहे हैं कि तीसरी लहर से निपटने की क्या तैयारी है, लेकिन इस पर गौर नहीं कर रहे कि इस लहर से बचने के लिए क्या करने की जरूरत है? नि:संदेह पर्यटन स्थलों में जाने की मनाही नहीं है, लेकिन यह भी नहीं कहा गया कि इन स्थलों में किसी तरह की सावधानी बरतने की आवश्यकता नहीं है। यह ध्यान रहे कि तीसरी लहर को रोकने अथवा उसे शिथिल करने में सफलता तब मिलेगी जब सरकारों को आम जनता का सहयोग मिलेगा।

यह ठीक है कि लाकडाउन में रियायत देने का सिलसिला कायम है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि लोग सावधानी बरतना छोड़ दें। दुर्भाग्य से यही देखने को अधिक मिल रहा है। पर्यटन स्थलों से लेकर छोटे-बड़े शहरों के प्रमुख बाजारों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग दिखाई दे रहे हैं जो कोरोना प्रोटोकाल का पालन करने के प्रति बिल्कुल बेपरवाह हैं। इस बेपरवाही को देखकर तो यही लगता है कि लोग यह मान बैठे हैं कि कोरोना का खतरा टल गया है। सच्चाई यह है कि अभी कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ही खत्म नहीं हुई है। अभी भी प्रतिदिन करीब 30 हजार से अधिक संक्रमित लोग सामने आ रहे हैं। बेशक संक्रमित लोगों की संख्या में गिरावट आ रही है, लेकिन कोरोना अभी भी जानलेवा बना हुआ है। जहां लोगों को यह समझने की जरूरत है कि कोरोना संक्रमण से बचे रहने के लिए अभी सावधानी बरतने की जरूरत है, वहीं राज्य सरकारों और उनके प्रशासन को भी इसके लिए सजगता बरतने की आवश्यकता है कि सार्वजनिक स्थलों में भीड़-भाड़ न बढ़ने पाए। मौजूदा हालात में राज्य सरकारों को धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों को हरी झंडी देने से परहेज करना चाहिए।