सुप्रीम कोर्ट ने रियल एस्टेट कंपनी आम्रपाली समूह को एक और बार कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की उसकी तमाम आवासीय परियोजनाओं में घोटाला हुआ है और इसके दोषी बख्शे नहीं जाएंगे। यह पहली बार नहीं जब सुप्रीम कोर्ट ने इस समूह के निदेशकों को फटकारा हो। वह एक अर्से से उनके खिलाफ सख्त रवैया अपनाए हुए है, लेकिन इसके बाद भी यह कहना कठिन है कि अपने घर की बाट जोहते लोगों को राहत कब मिलेगी? अब जब सुप्रीम कोर्ट इस नतीजे पर पहुंच चुका है कि आम्रपाली समूह के कर्ता-धर्ता भरोसे के काबिल नहीं तब फिर बेहतर यह होगा कि वह फैसला सुनाने में और देर न करे।

यह फैसला ऐसा होना चाहिए जो रियल एस्टेट के ऐसे ही अन्य कारोबारियों को सबक सिखाने वाला साबित हो। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि लोगों से पैसा लेकर अपनी आवासीय परियोजनाएं अधूरी छोड़कर हाथ खड़े करने वाली रियल एस्टेट कंपनियां बढ़ती ही चली जा रही हैं। इनमें से कई के मामलों की सुनवाई तो सुप्रीम कोर्ट में ही चल रही है। इन मामलों की सुनवाई तारीख पर तारीख का उदाहरण नहीं बननी चाहिए, क्योंकि गैर जिम्मेदार रियल एस्टेट कंपनियों की मनमानी के शिकार लोग धैर्य खो रहे हैं। वे जिन उम्मीदों के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं वे यथाशीघ्र पूरी होनी चाहिए। समय पर अपनी परियोजनाए पूरी न करने वाली रियल एस्टेट कंपनियों में कई ऐसी हैं जो अपने-अपने फ्लैट, विला आदि का इंतजार कर रहे लोगों के साथ-साथ बैंकों के पैसे भी हड़प कर गई हैं। इन सभी के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

माना यह गया था कि रेरा के नाम से चर्चित रियल एस्टेट संबंधी कानून के प्रभावी होने के बाद लोगों को अपने घर का सपना दिखाकर मनमानी करने वाली कंपनियों पर लगाम लगेगी, लेकिन यह निराशाजनक है कि ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा है। ऐसा लगता है कि रियल एस्टेट कंपनियों ने इस कानून से बच निकलने के छिद्र तलाश लिए हैं। अगर ऐसा नहीं हो तो फिर किसी को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि देश भर में अनगिनत आवासीय परियोजनाएं देरी का शिकार क्यों हैं? एक आंकड़े के अनुसार दिल्ली-एनसीआर, मुंबई समेत सात प्रमुख शहरों में पांच लाख से अधिक फ्लैट तय अवधि गुजर जाने के बाद भी पूरे नहीं हो पाए हैं।

समस्या केवल यह नहीं कि तमाम आवासीय परियोजनाएं जरूरत से ज्यादा देरी का शिकार हैं, बल्कि यह भी है कि इनमें से कई के पूरे होने की सूरत ही नहीं नजर आ रही है। यह स्थिति यही बताती है कि रेरा उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहा है। ऐसा क्यों है, इसकी पड़ताल केंद्र सरकार को भी करनी चाहिए और राज्य सरकारों को भी। यह ठीक नहीं कि संदिग्ध इरादों वाली रियल एस्टेट कंपनियां रेरा की अनदेखी करने में लगी हुई हैं और लोगों को मजबूरी में अदालतों का रुख करना पड़ रहा है। आए दिन ऐसे प्रसंग सामने आ रहे हैं जिनसे यह पता चलता है कि कैसे कुछ कंपनियां अपनी पुरानी परियोजनाओं को नया करार दे रही हैं या फिर बिना रजिस्ट्रेशन कराए ही लोगों से पैसा जुटा रही हैं।