यह तो लापरवाही की हद है। लखनऊ के एक विद्यालय में शिक्षकों की लापरवाही से कक्षा आठ की एक छात्रा लगभग पांच घंटे स्कूल के कमरे में कैद रही। उसकी चीख पुकार भी जाया ही गई। किसी जतन से वह क्लास से बरामदे तक आई और फिर चिल्लाना शुरू किया तब कहीं स्थानीय लोगों ने उसकी गुहार सुनी। छात्रा क्लास में पीछे की सीट पर बैठी कॉपी-किताब सही कर रही थी कि उतनी ही देर में प्रधान अध्यापिका व शिक्षिकाएं स्कूल में ताला बंद करके चली गईं। चपरासी छुट्टी पर था। किसी तरह पुलिस के आने पर छात्रा को बाहर निकाला जा सका। जांच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि छात्रा ठीक है, लेकिन कमरे में बंद रहने के कारण काफी दहशत में है। ऐसे मामले पहले भी होते रहे हैं किंतु कुछ दिनों की सनसनी के बाद उन्हें भुला भी दिया जाता रहा है। यदि कुछ मामलों में प्रभावी कार्रवाई हो जाए तो इन पर काबू पाया जा सकता है। इस घटना में भी खंड शिक्षा अधिकारी का रवैया संवेदनहीन है।

उनका कार्यालय भी स्कूल की बगल में है मगर वह पहले खुद मौके पर नहीं पहुंचे। यद्यपि जिला विद्यालय निरीक्षक ने कहा है कि प्रधान अध्यापिका से स्पष्टीकरण लिया जाएगा और फिर कार्रवाई की जाएगी, लेकिन सवाल है कि कमरे में अकेले पांच घंटे तक बंद रहने से छात्रा के मन-मस्तिष्क में जो दहशत घर कर गई है वह कैसे दूर होगी? उसके सहपाठी इस घटना को लेकर कितने दबाव में होंगे। आखिर यह घटना उनके साथ भी तो हो सकती थी। जांच के दौरान इस बिंदु का जवाब अवश्य तलाश किया जाना चाहिए कि आखिर ऐसी भी जल्दी क्या थी जो आनन-फानन में बिना कमरों की जांच किए स्कूल गेट पर ताला जड़ दिया गया? इस बात की जांच होनी चाहिए कि अध्यापक कितने बजे आते जाते हैं। मामला इसलिए भी संगीन है क्योंकि यह पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्याओं के लिए है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शासन-प्रशासन इस मामले में कड़ी कार्रवाई करेगा ताकि फिर कोई अकेली बालिका क्लास में बंद रहने का दंश सहने को विवश न होने पाए। 

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]