सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण पर चिंता प्रकट करते हुए यह जो टिप्पणी की कि हमारे बड़े शहर झुग्गी बस्तियों में तब्दील होते जा रहे हैं, उससे असहमत होना कठिन है। उसने यह भी सही कहा कि अतिक्रमण का यह सिलसिला 75 साल से चला आ रहा है और यह एक दुखदायी कहानी है। सुप्रीम कोर्ट इस नतीजे पर भी पहुंचा कि अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई न करना ही समस्या की जड़ है। उसने उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा, जिनकी वजह से अतिक्रमण होते हैं।

वास्तव में जब तक ऐसे अधिकारियों को जवाबदेह नहीं बनाया जाएगा, तब तक अतिक्रमण से छुटकारा मिलने वाला नहीं। यह समस्या कितनी गंभीर है, इसे इससे समझा जा सकता है कि कई शहरों में रेल पटरियों के किनारे अतिक्रमण के कारण रेलवे की प्रस्तावित परियोजनाएं पूरी नहीं हो पा रही हैं। इस सिलसिले में गुजरात के एक मामले का उल्लेख भी किया गया। ऐसे मामले अन्य प्रांतों में भी हैं, क्योंकि रेल पटरियों के किनारे अतिक्रमण एक राष्ट्रव्यापी समस्या है। यह विचित्र है कि रेलवे के पास अपनी पुलिस होते हुए भी वह अतिक्रमण खाली करा पाने में नाकाम है।

बात केवल रेलवे की जमीनों पर ही अवैध कब्जे की ही नहीं है। अन्य सरकारी विभागों की जमीनों पर भी अतिक्रमण है। इसके चलते शहरों में झुग्गी बस्तियां बढ़ती जा रही हैं। ऐसी झुग्गी बस्तियों को जब-तब नियमित भी किया जाता है। इससे सार्वजनिक जमीनों पर कब्जे की प्रवृत्ति को बल मिलता है और वह झुग्गी माफिया बेलगाम होता है, जिसे नेताओं का प्रश्रय मिलता है। शहरों में झुग्गी बस्तियों का निर्माण शहरीकरण की नीतियों में विसंगतियों का परिणाम है।

शहरों के विस्तार और विशेष रूप से आवासीय योजनाओं को आगे बढ़ाने के क्रम में कामगारों, घरेलू एवं कार्यालय सहायकों और फुटपाथ के दुकानदारों के रहने की चिंता मुश्किल से ही की जाती है। इसी कारण वे कई बार मजबूरी में झुग्गी बस्तियों में अपना ठिकाना बनाने को विवश होते हैं। हमारे नीति-नियंताओं को यह समझना होगा कि शहरों के संचालन में सहायक बनने वाली इस आबादी के लिए आवासीय योजनाएं बनाएं बगैर झुग्गी बस्तियों से मुक्ति नहीं मिलने वाली। केवल अतिक्रमण हटाना ही समस्या का हल नहीं।

इसके साथ यह भी देखना होगा कि नए सिरे से अतिक्रमण न होने पाए। यह स्वागतयोग्य है कि सुप्रीम कोर्ट ने संदर्भित मामलों की सुनवाई करते हुए यह कहा कि अतिक्रमण करने वालों को छह महीने तक दो-दो हजार रुपये मुआवजा दिया जाए, लेकिन आवश्यकता ऐसी नीतियों के निर्माण की भी है, जो सार्वजनिक जमीनों पर अतिक्रमण के कारणों का निवारण कर सकें।