आखिरकार राजनीतिक दलों और साथ ही देश की जनता को लंबे चुनाव प्रचार से मुक्ति मिली। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि चुनाव प्रचार के समापन के मौके पर भाजपा अध्यक्ष ने भी संवाददाता सम्मेलन किया और कांग्रेस अध्यक्ष ने भी। एक ओर जहां राहुल गांधी ने अपनी बात कहने के साथ ही संवाददाताओं के सवालों के जवाब दिए वहीं दूसरी ओर भाजपा की प्रेस कांफ्रेंस में केवल अमित शाह ने ऐसा किया। चूंकि उनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित हुए थे इसलिए यह अपेक्षा की जा रही थी कि वह भी सवालों के जवाब देंगे, लेकिन उन्होंने यह कह कर इन्कार कर दिया कि यह तो पार्टी अध्यक्ष की प्रेस कांफ्रेंस है। यह एक प्रश्न हो सकता है कि भाजपा अध्यक्ष की ओर से बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में नरेंद्र मोदी को सवालों के जवाब देने चाहिए थे या नहीं और उनके जवाब पार्टी नेता के तौर पर माने जाते या फिर प्रधानमंत्री के तौर पर, लेकिन यह भी अपनी जगह सही है कि उनसे सवालों के जवाब की उम्मीद की ही जा रही थी। इसलिए और भी, क्योंकि पांच साल के अपने कार्यकाल में उन्होंने एक बार भी विधिवत तरीके से किसी संवाददाता सम्मेलन को संबोधित नहीं किया। इसे लेकर सवाल भी उठते रहे हैं। अब जब उन्होंने अपनी सरकार की वापसी का दावा किया तब फिर यह उम्मीद की जाती है कि वह इस सवाल के लिए गुंजाइश न रहने दें कि वह प्रेस कांफ्रेंस का सामना क्यों नहीं करते? यह सही है कि प्रधानमंत्री ने विभिन्न अवसरों और खासकर चुनाव के मौके पर मीडिया से बातचीत की है, लेकिन प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन कर सवालों के जवाब नहीं दिए। आखिर वह इसकी अनदेखी कैसे कर सकते हैं कि शासनाध्यक्षों की ओर से संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर पत्रकारों के सवालों के जवाब देने का चलन पूरी दुनिया में है और इसे स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी माना जाता है।

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