दिल्ली सरकार में गलत तरीके से लगाए गए नौ सलाहकारों को बर्खास्त करने का उपराज्यपाल का फैसला नियमों के तहत उचित है। शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिश पर की गई इस कार्रवाई का आप सरकार भले विरोध कर रही है, लेकिन नियमों के विरुद्ध जाकर पार्टी कार्यकर्ताओं की सलाहकार के तौर पर नियुक्ति किए जाने को किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता। भाजपा का इस मामले में आप सरकार को बयानबाजी करने के बजाय अदालत जाने की चुनौती देना, भी प्रथमदृष्टया यह दर्शाता है कि आप सरकार के पास इस कार्रवाई को गलत ठहराने का कोई ठोस आधार नहीं है। ऐसे में दिल्ली सरकार को इस कार्रवाई को स्वीकार करते हुए भविष्य में ऐसी गलतियों से बचने का प्रयास करना चाहिए।

सरकार के अब तक के कार्यकाल में यह देखा गया है कि उसने समय-समय पर केंद्र सरकार और उपराज्यपाल से टकराव लेने की कोशिश की है और कई बार उपराज्यपाल को नजरअंदाज करने का प्रयास किया है। यह रवैया दिल्ली के हित में कतई सही नहीं है।

एक चुनी हुई सरकार को नियम-कानूनों के तहत ही काम करना चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दिल्ली के पास पूर्ण राज्य का दर्जा न होने के कारण बहुत सारी शक्तियां उपराज्यपाल के पास हैं। ऐसे में उसे इन मुद्दों पर उपराज्यपाल की सहमति को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। नियमों की अनदेखी की वजह से दिल्ली सरकार को कई बार अदालतों की फटकार भी सुननी पड़ी है। दिल्लीवासियों की भलाई के लिए यह आवश्यक है कि सरकार उपराज्यपाल से टकराव न लेकर, उनके साथ समन्वय बनाने का प्रयास करे और जिन विषयों में उनकी अनुमति की आवश्यकता है, उनमें उनकी अनुमति अवश्य ले।

[ स्थानीय संपादकीय: दिल्ली ]