आज हमारे समाज में बुजुर्गों की हालत कुछ ऐसी है-अपने ही बाग में बागबां अकेला है। वृद्धावस्था की व्यथा सुनने व समझने वाला कोई नहीं है। ऐसे में यदि कोई बुजुर्गों के लिए हाथ बढ़ा कर मदद करे तो उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। आज भाग-दौड़ की जिंदगी में किसी के पास वक्त नहीं है। पिता को बेटे के लिए तो बेटे को मां-बाप के लिए समय नहीं है। ऐसे में वृद्ध मां या पिता को देखने वाला कोई नहीं है। इसीलिए अब उन बुजुर्गों के लिए पहली बार कोलकाता में स्वयंवर आयोजित हो रहा है। जो एकाकी जीने को मजबूर हैं, उन्हें भी हमसफर चुनने का मौका दिया जा रहा। 22 अप्रैल को कलकत्ता स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट क्लब में एकाकी रहने वाले बुजुर्गों के लिए स्वयंवर आयोजित होगा। इस स्वयंवर में भागीदारी के लिए वृद्धाओं से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। अपने जीवन साथी का चयन करनेवाले बुजुर्ग पुरुष व महिला बतौर पति-पत्नी या लिव-इन-रिलेशन में रह सकते हैं। स्वयंवर का उद्देश्य एकाकी जीवन जी रहे वृद्ध-वृद्धाओं को जीवन के आखिरी पड़ाव में उपयुक्त साथी चुनने का मौका देना है। मनोचिकित्सक एवं स्वयंवर आयोजक अमिताभ देसरकार का कहना है कि जीवन साथी की मृत्यु व संतानों के विदेशों में रहने के कारण जिंदगी में एकाकी की मार झेल रहे बुजुर्गों को नया जीवन व ऊर्जा प्रदान करना ही स्वयंवर का मुख्य उद्देश्य है।

उनका तर्क है कि एकाकी होने के कारण बुजुर्गों में जीने की इच्छा खत्म होने लगती है, जिससे उम्र घटती है। साथ ही विभिन्न तरह की शारीरिक एवं मानसिक बीमारियां घेरने लगती है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक 10 फीसद बुजुर्गों में एकाकी के कारण जीने की चाह खत्म हो जाती है। कुछ तो खुदकशी का रास्ता भी चुन लेते हैं। ऐसे लोगों में फिर से जीने का जज्बा पैदा करने के लिए यह कदम उठाया गया है। आयोजक का तर्क कुछ हद तक सही है, लेकिन इसका स्याह पक्ष भी है। उम्र के इस पड़ाव में व्यक्ति खुद को संभाल नहीं पाता है तो वह अपने अंतिम वक्त में एक-दूसरे का कैसे सहारा बनेंगे? उनके लिए वृद्धाश्रम या फिर अपनों के बीच रहना सही है यह भी देखने की जरूरत है। 

[ स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल ]