जैसी आशंका थी, वैसा ही हुआ, संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत हंगामे से हुई। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने अदाणी मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी से कराने की मांग को लेकर संसद नहीं चलने दी। कांग्रेस ने इस मांग को लेकर कई शहरों में प्रदर्शन भी किया। इन शहरों में जयपुर भी शामिल है। बहुत दिन नहीं हुए, जब जयपुर में आयोजित निवेशक सम्मेलन में अदाणी समूह के प्रमुख गौतम अदाणी ने भागीदारी की थी और राजस्थान में साठ हजार करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की थी। उनकी इस घोषणा का स्वागत स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किया था।

यदि कांग्रेस को अदाणी समूह से इतनी ही परेशानी है तो फिर क्या उसके लिए यह उचित नहीं होगा कि वह अपने शासन वाले राज्यों से उसे बाहर करे? जहां तक अदाणी समूह के कामकाज को लेकर अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के संदर्भ में संयुक्त संसदीय समिति का गठन किए जाने की मांग है, इसका औचित्य इसलिए नहीं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने एक छह सदस्यीय समिति का गठन कर दिया है। इस समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश कर रहे हैं।

इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि कुछ समय पहले तक विपक्ष यही मांग कर रहा था कि अदाणी मामले की जांच या तो संयुक्त संसदीय समिति से कराई जाए या फिर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में। स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने छह सदस्यीय जांच समिति गठित कर विपक्ष की मांग पूरी कर दी है।

सुप्रीम कोर्ट की ओर से समिति बनाए जाने के बाद भी विपक्ष की ओर से संयुक्त संसदीय समिति गठित करने की मांग केवल देश का ध्यान बंटाने और समय बर्बाद करने वाली ही है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित समिति में शामिल सदस्य वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ हैं और उन्हें कारपोरेट जगत के साथ शेयर बाजार की भी गहन जानकारी हैं। विपक्षी नेता कुछ भी दावा करें, उनके पास वैसी विशेषज्ञता नहीं हो सकती, जैसी सुप्रीम कोर्ट की समिति के सदस्यों की है।

एक तथ्य यह भी है कि अभी तक शेयर बाजार से जुड़े जितने भी मामलों की जांच जेपीसी से हुई है, उसमें जांच के नाम पर या तो लीपापोती हुई है या फिर दलगत राजनीति। इसके चलते किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका। संयुक्त संसदीय समितियों की ओर से किसी भी मामले की जांच का अनुभव ऐसा नहीं रहा कि यह कहा जा सके कि वे दूध का दूध और पानी का पानी करने में सफल रहती हैं। किसी भी मामले की जांच उन्हें ही करनी चाहिए, जो उस विषय के विशेषज्ञ हों। सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित समिति के संदर्भ में इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि शीर्ष अदालत ने उसका गठन अपनी मर्जी से किया है।