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उत्तराखंड में किसानों की आय को दोगुना करने में फूलों की खेती एक बड़ा माध्यम हो सकती है, लेकिन इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित करना होगा।

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राजभवन में पुष्प प्रदर्शनी के अवसर पर राज्यपाल केके पॉल ने कहा कि प्रदेश में पुष्प उत्पादन किसानों की आय दोगुना करने के लिए एक बड़ा माध्यम हो सकता है। निसंदेह उनके इस कथन में अतिश्योक्ति नहीं है। जरूरत है तो किसानों को इस दिशा में समुचित प्रोत्साहन की। आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते प्रतीत हो रहे हैं। वर्ष 2000 में उत्तराखंड राज्य के गठन के वक्त प्रदेश में महज 150 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फूलों की खेती होती थी, जो आज करीब 1500 हेक्टयर में हो रही है। हालांकि रकबे में भले ही दस गुना की वृद्धि हुई हो, लेकिन इस क्षेत्र में जितनी संभावनाएं है अभी उनका दोहन किया जाना बाकी है। देखा जाए तो देश में फूलों का कारोबार लगभग 6500 करोड़ का है और इसमें प्रदेश को हिस्सा महज 200 करोड़ रुपये है। पैदावार पर नजर दौड़ाएं तो 2073 मीट्रिक टन लूज फ्लावार (गुलाब आदि की पंखुडिय़ां) और 15.65 करोड़ कट फ्लावर के स्पाइक (जरबेरा, कारानेशन, ग्लेडिया) के तौर पर उगाया जा रहा है। दरअसल, इतना सब कुछ होने के बाद भी किसान फूलों की खेती में उतनी रुचि नहीं दिखा रहा, जितनी होनी चाहिए। इसकी खास वजह दो हैं। पहली परेशानी है फूलों के लिए स्थानीय बाजार का न होना।

असल में उत्तराखंड से फूलों को दिल्ली की मंडी में भेजा जाता है और यहां कमीशन एजेंट औने-पौने दामों में किसानों से इनकी खरीद करते हैं। पैकिंग के बाद दिल्ली की मंडी से यह फूल जब स्थानीय बाजार में वापस आते हैं तो इनकी कीमत तीन से चार गुना बढ़ चुकी होती है। विशेषज्ञों के अनुसार उत्तराखंड की मंडियों में पैकिंग से जुड़ी अच्छी सुविधाएं अभी नहीं हैं। जाहिर इन सुविधाओं को विकसित किए बिना किसानों को अच्छा लाभ मिलने की उम्मीद भी नहीं रहेगी। दूसरा सबसे बड़ा कारण है फूल जल्दी खराब हो जाते हैं, इन्हें लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता। ऐसे में वितरण व्यवस्था दुरुस्त न हो तो नुकसान की आशंका बनी रहती है। यही वजह है कि फूलों की ज्यादातर खेती अभी भी मैदानी इलाकों तक सीमित है। पहाड़ी इलाकों में इस खेती को ज्यादातर किसान नहीं अपना पा रहे हैं। बावजूद इसके कि पहाड़ों में अनुकूल वातावरण मौजूद है। जाहिर है विपणन की सुविधा मिले तो किसानों के लिए यह फायदे का सौदा साबित हो सकता है। हकीकत यही है कि कृषि के लिए व्यावसायिक नजरिए को विकसित करने के साथ ही जरूरी सुविधाएं जुटानी होंगी।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]