अस्पतालों में अव्यवस्था और खासकर ऑक्सीजन की कमी को लेकर कोरोना मरीजों की मौतों पर विभिन्न उच्च न्यायालयों की ओर से जो नाराजगी प्रकट की जा रही है, वह उचित ही है, लेकिन उनकी ओर से सरकारों को फटकारने के साथ जो अनावश्यक टिप्पणियां की जा रही हैं, उनसे हालात सुधारने में शायद ही कोई मदद मिले। ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौत को नरसंहार बताने अथवा केंद्र सरकार को शुतुरमुर्ग की संज्ञा देने से आम जनता की पीड़ा भले ही व्यक्त हो जाए, समस्याओं का समाधान नहीं होने वाला। शायद इसी कारण कि उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से केंद्र सरकार को जारी अवमानना नोटिस पर रोक लगाते हुए यह सवाल किया कि आखिर चार अधिकारियों को जेल में डालने से क्या होगा? यह वह सवाल है, जिस पर उन उच्चतर अदालतों को चिंतन-मनन करना चाहिए, जो हालात की गंभीरता से परिचित होते हुए भी तीखी टिप्पणियां करने में लगी हुई हैं। डांट-फटकार का सिलसिला स्थितियां सुधारने के बजाय उस सरकारी अमले का मनोबल प्रभावित करने का काम कर सकता है, जिसे हालात पर काबू पाना है। बेहतर हो कि उच्चतर अदालतें सरकारों और उनके प्रशासन की ढिलाई को इंगित करने के साथ-साथ समस्या के समाधान के उपाय भी सुझाएं।

इसमे संदेह नहीं कि सरकारें कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर की आशंका से अवगत होते हुए भी समय रहते जरूरी तैयारी नहीं कर सकीं, लेकिन आखिर अब किया क्या जाए? स्पष्ट है कि इसी प्रश्न का उत्तर खोजने और उसके अनुरूप कदम उठाने की सख्त जरूरत है और वह भी युद्धस्तर पर। यह ठीक नहीं कि ऑक्सीजन संकट को सिर उठाए हुए 15 दिन बीत गए हैं और फिर भी संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। यह तब है, जब नए ऑक्सीजन प्लांट लगाने और ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाने के साथ अन्य अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, उनके प्रशासन और अस्पतालों के बीच आवश्यक तालमेल कायम नहीं हो पा रहा है। सरकारों को यह समझना होगा कि ऑक्सीजन का संकट तब दूर होगा, जब उसके कारणों की पहचान कर उनका निवारण किया जाएगा। लगता है सरकारें और उनका प्रशासन अभी तक इस संकट के मूल कारणों की ही पहचान नहीं कर सका है और संभवत: इसी कारण ऑक्सीजन की कालाबाजारी और उसके सिलेंडरों की जमाखोरी की खबरें आ रही हैं। यह सब तत्काल प्रभाव से रोकने के साथ जो एक और काम प्राथमिकता के साथ करने की जरूरत है, वह है टीकाकरण की रफ्तार तेज करने का। टीकाकरण में ढिलाई बरती गई तो हालात पर काबू पाना और कठिन होगा।