राजधानी के तमाम कारोबारियों ने भी माना कि कैश की किल्लत से होली के बाजार की रंगत फीकी रही। दरअसल, खरीदार तो थे लेकिन उनके पास कैश की किल्लत थी।

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बैंकों की अदूरदर्शिता व लचर व्यवस्था होली के दौरान लोगों को छकाती नजर आई। एक तो होली जैसा बड़ा त्योहार माह की शुरुआत में पड़ गया, वहीं बैंकों की खाली एटीएम ने लोगों को खूब परेशान किया। इससे होली की खरीदारी लोगों के लिए खासी परेशानी वाली रही। इसका सीधा असर बाजार पर पड़ा। अकेले राजधानी रांची में ही 70 फीसद से अधिक एटीएम होली के दौरान खाली रही। स्थिति यह थी कि में राशि डालने के कुछ ही घंटे बाद एटीएम ड्राई हो जा रही थी और बाहर नो कैश के बोर्ड लटक जा रहे थे। इतना ही नहीं, इस दौरान तमाम एटीएम में लिंक फेल होने या तकनीकी गड़बड़ी की वजह से 'एटीएम बंद है' के बोर्ड टांग दिए गए थे। लेकिन वास्तविकता यह थी कि इन एटीएम में कैश ही नहीं थे, किसी तरह का कोई बवाल न हो इसलिए यह तख्तियां टांग दी गई थीं। सबसे खराब स्थिति देश के सबसे बड़े राष्ट्रीयकृत बैंक एसबीआइ की रही। जिसके राजधानी ही नहीं राज्य भर में सर्वाधिक ग्राहक हैं। बैंक दावा भी करता है कि उसका नेटवर्क सबसे बड़ा है। लेकिन सारे दावे होली के दौरान हवा-हवाई ही साबित हुए। पैसों के लिए सबसे ज्यादा भटकते इसी बैंक के ग्राहक दिखे। यानी दावे व व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त दिखी। ऐसे में कल्पना की जा सकती है कि जब सबसे बड़े बैंक का यह हाल था तो अन्य बैंकों की क्या स्थिति रही होगी।

राजधानी के तमाम कारोबारियों ने भी माना कि कैश की किल्लत से होली के बाजार की रंगत फीकी रही। दरअसल, खरीदार तो थे लेकिन उनके पास कैश की किल्लत थी। हास्यास्पद बात यह कि किसी भी जिम्मेदार को इसके कारणों का पता नहीं है। कभी मशीन काम नहीं करती तो कभी इंटरनेट की समस्या रही। कई व्यवसायियों की स्वाइप मशीनें भी धोखा दे गईं। ऐसे में एक बात तो साफ है कि होली के दौरान अपने ग्राहकों के लिए बैंक तनिक भी जागरूक नहीं थे। बैंक अब इसका ठीकरा आरबीआइ पर यह कहकर फोड़ रहे हैं कि उसकी ओर से पैसे ही नहीं आ रहे हैं। बैंकों का कैश फ्लो भी प्रभावित हुआ है। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि इस दौरान बैंक लगातार झूठ पर झूठ बोलते रहे कि वे बाजार में बढ़ रहे सिक्कों के फ्लो पर समुचित कदम उठाएंगे, लेकिन नतीजा ठन-ठन गोपाल ही रहा। पर्व-त्योहार के मौकों पर बैंक को पहले से जागरूक रहना होगा ताकि उपभोक्ताओं को परेशानी न हो।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]