झारखंड में गरीबों के बीच सर्दियों में मुफ्त बांटे जाने वाले कंबल को सखी मंडलों के माध्यम से तैयार कर महिलाओं को रोजगार का प्लेटफार्म उपलब्ध कराने की सरकार की योजना आखिरकार विवादों में पड़ गई है। आरोप है कि सखी मंडलों ने जितने कंबल तैयार नहीं किए उससे अधिक बांट दिए गए। इससे जुड़े और भी मामले होंगे जिनका खुलासा आगे होता रहेगा। राज्य में कंबल घोटाला हुआ है या नहीं यह तो जांच में सामने आएगा लेकिन यह स्पष्ट है कि इस पूरे प्रकरण में सबकुछ ठीक नहीं है। पूरे प्रकरण में झारक्राफ्ट और उसकी सीईओ की भूमिका संदेह के दायरे में हैं। सीईओ ने इस्तीफा दे फौरी तौर पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की है। महालेखाकार द्वारा मामला उजागर करने के बाद विकास आयुक्त ने पूरे मामले की जांच एंटी करप्शन ब्यूरो से कराने की अनुशंसा की थी। एसीबी जांच से पहले विभागीय स्तर पर मामले की जांच के लिए जांच कमेटी का गठन किया गया। प्रकरण के तूल पकड़ने के बाद सात कमेटियों का ताबड़तोड़ गठन कर दिया गया। यह शायद राज्य का पहला ऐसा मामला होगा जिसमें जांच के लिए सात कमेटियों का एक साथ गठन कर दिया गया है।

कमेटियों की जांच रिपोर्ट आने के बाद यह तय होगा कि इस प्रकरण की एसीबी जांच होगी या नहीं। जाहिर है प्रथम दृष्टया यह साफ उजागर होता है कि मामले की लीपापोती की तैयारी शुरू हो गई है और यह मामला सालों खिंचने वाला है। इधर, मंत्री सरयू राय ने इसे चारा घोटाले सरीखा मामला बता विवाद को तूल दे दिया है। विपक्ष जो अब तक मौन साधे बैठा है, इस टिप्पणी के बाद रेस होगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली सरकार का ऐसे मामले में ढीला रुख अपनाना कतई उचित नहीं होगा। बेहतर यही होता कि महालेखाकार द्वारा मामला उठाने के बाद तत्काल इसकी जांच एसीबी को दे दी जाती। एसीबी तथ्यों के आधार पर अपनी जांच शुरू करती। जांच में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता। लेकिन फिलहाल इसे प्रक्रियागत जांच के दायरे में रखा जा रहा है जो विपक्ष को आरोप लगाने का मौका देगा। घपले-घोटाले जब उजागर हो जाते हैं तो दबते नहीं हैं। देर-सबेर उनका खुलासा होता ही है। चारा घोटाला इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। बेहतर होगा कि सक्षम एजेंसी से इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराई जाए ताकि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]