अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर हम एक ऐसे नए कालखंड में प्रवेश करने जा रहे हैं जहां चुनौतियों के साथ असीम संभावनाएं हमारे भाग्य का निर्धारण करने के लिए प्रतीक्षारत हैं। हमें न केवल यह सुनिश्चित करना होगा कि इन संभावनाओं के अनुरूप ही आगे बढ़ें, बल्कि यह भी कि अपने अधिकारों को लेकर हम जितने सजग हैं उतने ही कर्तव्य के लिए भी हों। ऐसा करके ही हम उन सभी लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं जो अब कहीं अधिक निकट और आसान दिख रहे हैं।

यह एक तथ्य है कि भारत अब एक बलशाली और वैभवशाली राष्ट्र है। विश्व समुदाय के बीच भारत की प्रतिष्ठा भी बढ़ी है और महत्ता भी। वस्तुत: इसी करण विश्व समुदाय अब भारत के प्रति कहीं अधिक आशावान है। यह सहज-सामान्य बात नहीं कि विश्व के प्रमुख राष्ट्र अब प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय मामले में भारत का सहयोग और समर्थन लेना आवश्यक समझने लगे हैं। इसे हमने कोविड महामारी के रूप में सदी के सबसे बड़े संकट के समय भी देखा और यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से उपजीं परिस्थितियों के दौरान भी।

नि:संदेह यह स्थिति इसीलिए बनी, क्योंकि बीते 75 वर्षों में भारत अपने को विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के साथ-साथ एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में भी स्थापित करने में सक्षम रहा है। एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में पिछले 75 वर्षों में हमने जो उपलब्धियां अर्जित की हैं, उन पर गर्व करने के साथ हमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि हम हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता एवं संस्कृति के वारिस हैं और भविष्य के भारत का निर्माण करते समय अपने उन उदात्त मूल्यों से विरत नहीं हो सकते जिनके कारण हमने विश्व में अपनी एक विशिष्ट छाप छोड़ी है। अब वे सपने साकार होते दिख रहे हैं जो राष्ट्र्र निर्माताओं ने देखे थे और जिनसे आज की हमारी पीढ़ी भी प्रेरित है।

किसी व्यक्ति और समाज की तरह राष्ट्र के समक्ष कुछ चुनौतियां सदैव उपस्थित रहती हैं। इन चुनौतियों का सामना तभी आसानी से किया जा सकता है जब राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में देश की जनता भी भागीदार बनेगी और इस मूल मंत्र को आत्मसात करेगी कि कोई भी राष्ट्र तभी सबल और सफल बनकर विश्व को राह दिखा सकता है जब वहां के लोग एकजुट होकर उन समस्याओं के निदान में सहायक बनते हैं जो उनकी प्रगति में बाधक बनती रहती हैं।

कोई भी देश हो, सब कुछ सरकार नहीं कर सकती। यह बात विश्व के अन्य देशों की तरह से भारत पर भी लागू होती है। ऐसे में आम जनता को अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति सक्रिय होना ही होगा। वास्तव में तभी स्वच्छ भारत और आत्मनिर्भर भारत सरीखे अभियान सही तरह से अंजाम तक पहुंच सकते हैं। हम भारत के लोगों के मन में राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव न केवल होना चाहिए, बल्कि वह दिखना भी चाहिए। इस क्रम में सभी लोगों को यह आभास होना चाहिए कि राष्ट्र के उत्थान में हर व्यक्ति का योगदान आवश्यक होता है- फिर वह चाहे कोई श्रमिक हो अथवा उद्योगपति।

निश्चित रूप से हम अभी भी अशिक्षा और गरीबी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, लेकिन आज यह कहीं अधिक भरोसे के साथ कहा जा सकता है कि हम इन सभी समस्याओं से पीछा छुड़ाने के कहीं अधिक करीब पहुंच चुके हैं। जिस तरह हमें गरीबी, अशिक्षा और अन्य समस्याओं से पार पाना है उसी तरह भ्रष्टाचार से भी। भ्रष्टाचार दीमक की तरह राष्ट्र को न केवल खोखला कर रहा है, बल्कि उसके उत्थान को रोकने का भी काम कर रहा है।

भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए जितनी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की है, उतनी ही आम नागरिकों की भी। यदि आम नागरिक यह ठान लें कि भ्रष्टाचार का समूल नाश करना है तो ऐसा किया जाना असंभव नहीं। जिस तरह देश के नीति-नियंताओं को उन शक्तियों से सावधान रहने की आवश्यकता है जो देश की आंतरिक सुरक्षा और सद्भाव को क्षति पहुंचाने के लिए नित नए कुचक्र रचती रहती हैं उसी तरह आम लोगों को भी ऐसी शक्तियों से सावधान रहना होगा।

वास्तव में इन शक्तियों को आम नागरिकों की एकजुटता और सजगता ही पराजित कर सकती है। यह कठिन कार्य नहीं, बशर्ते देश का हर नागरिक यह संकल्प ले कि उसे राष्ट्रीय हितों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी है। देश के सभी नागरिकों में इस भाव की व्याप्ति ही आजादी का अमृत होगी।