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एक तरफ थोड़े से फायदे के लिए पेड न काटने से परहेज नहीं किया जाता, वहीं ऐसे भी लोग है, जिनके लिए पेड़ मुनाफे की वस्तु नहीं है
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वन संपदा पहाड़ी प्रदेश हिमाचल की रीढ़ है और इस पर प्रहार के व्यापक असर हैं, जिसे समझा जाना चाहिए। प्रदेश में वन संपदा पर प्रहार आए दिन सुर्खियां बनते हैं। यह सीधे तौर पर वन संपदा व पर्यावरण संरक्षण सरोकार पर प्रहार भी है। पिछले कुछ समय से ऐसे मामले प्रदेश के लगभग हर जिले से सामने आ रहे हैं, जहां लोगों ने पेड़ों का अवैध तरीके से कटान कर दिया। बार-बार ऐसे मामले सामने आने का सीधा सा अर्थ है कि कहीं न कहीं व्यवस्था की कमजोरी वनकाटुओं को मजबूती प्रदान कर रही है। लेकिन कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं, जो बेहतर भविष्य की उम्मीद जगाते हैं। कुल्लू जिले के आठ जंगलों से लोग लकड़ी नहीं काटते क्योंकि वे पेड़ों की पूजा करते हैं और उन्हें देवता का दर्जा देते हैं। देव आदेश मानते हुए लोग इन जंगलों से लकड़ी तो दूर घास-पत्ती तक नहीं लाते। यह अपनी तरह की अनूठी परंपरा है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में दूसरों के लिए प्रेरणादायक है। एक तरफ जहां थोड़े से फायदे के लिए पेड़ों को काटने से परहेज नहीं किया जाता, दूसरी तरफ ऐसे भी लोग है, जिनके लिए पेड़ मुनाफे की वस्तु नहीं है। प्रदेश का करीब 65 फीसद हिस्सा वन से ढका है। इस प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने के लिए ही सैलानी हिमाचल का रुख करते हैं। इससे साफ है कि वन हमारी आर्थिकी की मजबूत कड़ी है। एक पेड़ का कटना जितना नुकसान हमारे पर्यावरण को पहुंचाता है, उतनी ही क्षति आर्थिक भी है। एक पौधा कई साल की देखभाल के बाद पेड़ बनकर पर्यावरण को संबल देने लायक होता है। लेकिन थोड़े से मुनाफे के लालच में इसे बिना सोच-समझे काटना किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं है। अंधाधुंध कटान भूमि कटाव जैसी बड़ी समस्या का भी बड़ा कारण है। पहाड़ की जान तभी तक है जब तक पेड़ उसे थामे हुए हैं। इसलिए ऐसे लोगों को हतोत्साहित करने की जरूरत है, जो प्रदेश की संपदा को अपने फायदे के लिए गलत तरीके से नुकसान पहुंचा रहे हैं। अवैध वन काटुओं को रोकना समय की मांग है, वहीं पेड़ों के संरक्षण के लिए सार्थक कदम उठाने की भी जरूरत है। वन रक्षा के लिए सिर्फ सरकार की ओर ताकना ही काफी नहीं है। लोगों को भी इसमें योगदान देना होगा। तभी हम भावी पीढ़ी को वैसा हिमाचल दे सकते हैं, जैसा हमें विरासत में मिला है। आशा है कि कुल्लू की परंपरा का निर्वहन प्रदेश के अन्य जिलों में भी लोग करेंगे व इसे हरा-भरा बनाने में योगदान देंगे।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]