आयकर विभाग की ओर से बसपा प्रमुख मायावती के भाई आनंद कुमार की चार सौ करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति जब्त किए जाने पर शायद ही किसी को हैरानी हो। अभी हाल में फिर से बसपा उपाध्यक्ष बनाए गए आनंद कुमार जिस तरह कुछ ही समय में अकूत संपदा के स्वामी बन गए थे उसके चलते इसके आसार थे कि एक न एक दिन वह आयकर विभाग अथवा प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई की चपेट में आ सकते हैैं। आखिरकार वह चपेट में आए। आयकर विभाग के अलावा प्रवर्तन निदेशालय भी उनके खिलाफ जांच कर रहा है। पता नहीं यह जांच किस नतीजे पर पहुंचेगी, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में ढेरों ऐसे आनंद कुमार हैैं जिनके पास अकूत संपत्ति है।

किसी ने स्वयं के राजनीतिक रसूख के बल पर संपदा बटोरी है तो किसी ने अपने सगे-संबंधी के राजनीतिक असर के जरिये। इनमें से ज्यादातर ने बेनामी संपत्ति भी एकत्र कर रखी है। करोड़ों-अरबों रुपये की बेनामी संपत्ति एकत्र करने वालों में नेताओं और नौकरशाहों की बड़ी संख्या यही बताती है कि ये लोग मौका मिलने पर दोनों हाथों से संपदा लूटते हैैं। बेनामी संपत्ति वालों के खिलाफ कार्रवाई का सिलसिला न केवल कायम रहना चाहिए, बल्कि उसमें तेजी और सख्ती भी आनी चाहिए। वास्तव में हर उस शख्स के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए जिसने बेनामी संपत्ति हासिल कर रखी है। चूंकि बेनामी संपत्ति हासिल किया जाना अपने आप में भ्रष्टाचार का परिचायक है इसलिए ऐसी संपत्ति के धारकों पर कोई रहम नहीं किया जाना चाहिए।

हालांकि बेनामी संपत्ति के खिलाफ कानून पहले भी था, लेकिन उसे मजबूती तब मिली जब 2016 में मोदी सरकार ने इस कानून में संशोधन किया। कालेधन के खिलाफ अभियान छेड़ने के बाद बेनामी संपत्ति को लेकर कोई प्रभावी कानून बनाना समय की मांग थी। नि:संदेह बेनामी संपत्ति संबंधी कानून में संशोधन के बाद इस तरह की संपत्ति रखने वालों के खिलाफ कार्रवाई का सिलसिला बढ़ा है और बीते दो साल में सैकड़ों करोड़ रुपये की बेनामी संपदा जब्त भी की गई है, लेकिन अभी उपयुक्त माहौल का निर्माण नहीं हो सका है।

मोदी सरकार को ऐसे किसी माहौल का निर्माण करने के लिए सक्रिय रहना चाहिए जिससे बेनामी संपत्ति रखने वाले भय खाएं। ऐसे किसी माहौल का निर्माण तभी होगा जब बेनामी संपत्ति रखने के कुछ दोषियों को सजा देकर जेल भेजा जाएगा। इस आंकड़े से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि लगभग सात हजार करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति जब्त की जा चुकी है। इतने बड़े देश में दो-ढाई साल में केवल सात हजार करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति जब्त किया जाना पर्याप्त नहीं।

संपत्ति जब्ती के साथ जुर्माना वसूलने और जेल भेजने का काम इसलिए आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि बेनामी संपत्ति हासिल करने वाले नेता यह प्रचारित करने में जुटे हुए हैैं कि उनके खिलाफ राजनीतिक बदले की भावना के तहत कार्रवाई हो रही है। यह किसी से छिपा नहीं कि इस जुमले को उछाल कर चुनावी लाभ लेने की भी कोशिश की जाती है। यह कोशिश यही बताती है कि बेनामी संपत्ति वाले जनता की आंखों में धूल झोंकने की फिराक में हैैं।