हरेंद्र प्रताप : आम तौर पर इस तथ्य से सभी अवगत हैं कि बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत आए लोगों ने असम, बंगाल आदि राज्यों के अनेक हिस्सों में जनसंख्या के असंतुलन को बढ़ाने का काम किया है, लेकिन ऐसी ही स्थिति बिहार और झारखंड में भी बन रही है। चिंता की बात यह भी है कि बांग्लादेशी नागरिकों के साथ रोहिंग्या लोगों की भी देश में घुसपैठ हो रही है। नेपाल और बंगाल से लगा बिहार का सीमावर्ती जिला पूर्णिया विभाजित होकर चार जिलों में बंट गया है। इसमें से एक किशनगंज मुस्लिम बहुल जिला है और कटिहार एवं अररिया में जिस प्रकार मुस्लिम जनसंख्या में वद्धि हो रही है, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में ये जिले भी मुस्लिम बहुल हो जाएंगे।

कटिहार जिले के बारसोई प्रखंड में 1961 में हिंदू जनसंख्या 43,549 थी, जो 1971 में बढ़ने के बजाय घटकर 40,969 रह गई। अगस्त 1979 में असम में जब बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ वहां के लोगों ने आंदोलन छेड़ा, तब बिहार में भी हो रही घुसपैठ पर यहां के लोगों का ध्यान गया। 22 जुलाई, 1981 को बिहार विधानसभा में एक चर्चा में तब जनता पार्टी के विधायक रहे गणेश प्रसाद यादव ने कहा था, ‘पूर्णिया में बांग्लादेशी घुसपैठियों का आना जारी है और वे ऊंची कीमतों पर जमीन खरीद कर बसते जा रहे हैं।’ 19 जुलाई, 1982 को भाजपा के जनार्दन तिवारी के एक प्रश्न पर तत्कालीन सरकार ने यह स्वीकार किया था कि कुछ घुसपैठियों को बांग्लादेश लौटाया गया है। बिहार सरकार ने यह भी स्वीकार किया था कि केंद्र सरकार के निर्देश पर उसने घुसपैठियों की पहचान एवं उनके निष्कासन की योजना बनाकर उन्हें भेज दिया है।

एक समय पूर्णिया से माकपा के पूर्व विधायक अजीत सरकार ने भी बिहार में हजारों की संख्या में घुसपैठियों के आने की बात स्वीकारी थी। जुलाई 1992 में विधानसभा में घुसपैठ का प्रश्न उठाते हुए सुशील कुमार मोदी ने बिहार के 12 जिलों में घुसपैठ की बात कही थी, लेकिन 2009 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्णिया की एक सभा में घुसपैठ को नकार दिया था। हालांकि पिछली सदी के अंतिम दशक में घुसपैठ विरोधी संघर्ष समिति के बैनर तले बिहार में बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन चला, लेकिन बाद में यह विषय ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

केंद्र सरकार ने 2020 में जब राष्ट्रीय नागरिकता पंजीयन यानी एनआरसी बनाने की बात कही तब बिहार विधानसभा में एक प्रस्ताव रखा गया कि ‘बिहार में राष्ट्रीय नागरिकता पंजीयन की कोई आवश्यकता नहीं है।’ वर्ष 1951 से 2011 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम जनसंख्या में 4.31 प्रतिशत की वद्धि हुई, जबकि संयुक्त पूर्णिया जिले में उनकी आबादी में 13.58 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 1956 में राज्य पुनर्गठन के बाद कुछ मुस्लिम बहुल प्रखंडों एवं पंचायतों को बंगाल को दे दिया गया। 1961 से 2011 तक के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इस दौरान राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम जनसंख्या में 3.52 प्रतिशत की वद्धि हुई, पर इस अवधि में पूर्णिया में मुस्लिम जनसंख्या 8.26 प्रतिशत बढ़ी।

1961 में वर्तमान किशनगंज के सात प्रखंडों में से दो प्रखंडों में हिंदू बहुमत में थे, जिसमें से एक प्रखंड अब नए जिले का न केवल मुख्यालय है, बल्कि यह पूर्वोत्तर के राज्यों को भारत से जोड़ने का एकमात्र रेलवे एवं सड़क मार्ग है। यहां पांच दशकों में मुस्लिम जनसंख्या 14.19 प्रतिशत बढ़ी है। इसे ही ‘चिकन नेक’ कहा जाता है और यह अब मुस्लिम बहुल प्रखंड हो गया है। घुसपैठ के कारण मुस्लिम बहुल हुए इस प्रखंड को ही भारत से काटने की धमकी जेल में बंद शरजील इमाम ने दी थी।

किशनगंज की ही तरह कटिहार जिले का बारसोई प्रखंड आवागमन की दृष्टि भारत के लिए महत्वपूर्ण है। यह रेलवे का जंक्शन है। उपरोक्त पांच दशकों में बारसोई प्रखंड में मुस्लिम जनसंख्या में 16.33 प्रतिशत वृद्धि हुई। सितंबर 2021 में बिहार सरकार में मंत्री रहे रामसूरत राय ने जब यह कहा था कि घुसपैठिए आकर मठ, मंदिर और भूदान की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं तो उन्हें नीतीश सरकार से बाहर करने की मांग जदयू के लोगों ने भी उठाई थी। न केवल घुसपैठिए, बल्कि बांग्लादेश के किन्नर भी पटना में आकर भारतीय किन्नरों के रोजगार छीन रहे हैं। पिछले साल पटना में भारतीय किन्नरों ने इसे लेकर प्रदर्शन भी किया था।

पिछले महीने कटिहार रेलवे स्टेशन पर कई रोहिंग्या युवतियां पकड़ी गईं, जिन्हें बांग्लादेशी नजरूल दिल्ली भेज रहा था। पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली में पकड़े गए पाकिस्तानी अशरफ के पास से जो पासपोर्ट मिला था, उसे किशनगंज के एक सरपंच ने बनवाया था। आधार कार्ड, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र बनवाकर देश की सुरक्षा को खतरे में डालने के इस षड्यंत्र को रोकने में सरकार असफल रही है। पूर्णिया जिले के मुस्लिम बहुल बायसी प्रखंड में गत वर्ष मई में अनुसूचित जाति के लोगों के घरों को एक भीड़ ने जला दिया था और उन्हें गांव छोड़ने की धमकी दी थी। जिले का माहौल कैसा है, इसका एक प्रमाण यह है कि पटना उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी सीमावर्ती जिलों में घुसपैठियों के बारे में सूचना देने के लिए कुछेक को छोड़कर किसी जिले के प्रशासन ने न तो कोई विज्ञापन दिया और न ही किसी ने यह कहा कि उसके यहां बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। साफ है बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार तथा अररिया के अनेक प्रखंड मुस्लिम बहुल प्रखंड हो गए हैं। इससे हिंदू पलायन को बाध्य हैं।

(लेखक बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे हैं)