[ मधुरेंद्र सिन्हा ]: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार के आम बजट में कृषि, सिंचाई और ग्रामीण विकास के लिए कुल 2.83 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया है। इसके लिए कृषि एवं किसान विकास मंत्रालय को कुल 1,42,761 करोड़ रुपये की राशि दी गई है जो पिछले वर्ष की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक है। सबसे अधिक राशि 75,000 करोड़ रुपये पीएम किसान निधि योजना के लिए दी गई है। इसके बाद नंबर है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का, जिसके लिए इस बार 15,695 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। वहीं रासायनिक उर्वरक वगैरह के लिए कुल राशि में 9,000 करोड़ रुपये से भी अधिक की कमी की गई है। इसके अलावा वित्त मंत्री ने कृषि को तकनीक प्रधान बनाने के लिए 500 करोड़ रुपये का आवंटन किया है।

देश में बढ़ती कृषि मजदूरी को लेकर वित्त मंत्री ने किसानों के लिए खोला बजट पिटारा

भारत में कृषि और कटाई के काम अधिकांशत: मानव श्रम आधारित हैं। देश में श्रम की बढ़ती लागत यानी बढ़ती मजदूरी और समय पर श्रमिकों के नहीं मिलने की समस्या के मद्देनजर यह एक महत्वपूर्ण आवंटन है। किसानों के लिए भी यह जरूरी होता जा रहा है कि वे अपनी लागत कम करें। इसका सीधा तरीका है कि कृषि यंत्रों का अधिक से अधिक इस्तेमाल हो। हालांकि पूरे देश को देखते हुए यह राशि छोटी लगती है, लेकिन यह एक अच्छी शुरुआत मानी जा सकती है।

कृषि अनुसंधान के लिए मिली 8,362 करोड़ रुपये की राशि

वित्त मंत्री ने कृषि अनुसंधान के लिए भी 8,362 करोड़ रुपये की राशि दी है जो पहले से कहीं अधिक है। कृषि में अनुसंधान की सफलता के कारण ही भारत आज अनाज उत्पादन के मामले में दुनिया के पांच शीर्ष देशों में है। इसी कारण आज भी देश की कुल कामगार आबादी का 50 प्रतिशत कृषि में लगा हुआ है। सरकार ने खेती पर से कामगारों की निर्भरता कम करने के लिए पशुपालन, डेयरी, मत्स्य पालन वगैरह को बढ़ावा देना शुरू किया है। इस बजट में उनके लिए आवंटन बढ़ाकर 3,289 करोड़ रुपये किया है। इससे इन क्षेत्रों में तरक्की होगी और रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे। केंद्रीय बजट को अगर ध्यान से देखा जाए तो यह साफ है कि राशि में बढ़ोतरी वैज्ञानिक ढंग से हुई है और कुछ क्षेत्रों को सरकार ने वरीयता दी है।

किसानों की मदद केवल बड़े बजट से नहीं हो सकती, राज्यों को भी हाथ बंटाने होंगे

सवाल है कि क्या बड़े बजट से ही इस देश के किसानों का भला होगा? नहीं। किसानों की मदद केवल बजट में बहुत बड़ी राशि आवंटित करने से ही नहीं हो सकती। इसके लिए और भी कई उपाय करने होंगे। देखा जाए तो कृषि राज्यों का विषय है। ऐसे में इसकी बेहतरी के लिए उन्हें भी काफी कुछ करना चाहिए। सच्चाई है कि जहां कुछ प्रांत इस पर काफी कुछ कर रहे हैं तो वहीं कई इसमें विफल भी रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय बढ़ाकर दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन यह राज्योंं की मदद के बिना हो नहीं सकता। इसके लिए जरूरी है कि किसानों को कर्ज से तो मुक्त कराया ही जाए, साथ ही उनकी फसल का उचित मूल्य समय पर दिलाया जाए।

किसानों को कर्ज देने के बजाय उनकी उपज का उचित मूल्य सही समय पर दिया जाए- चरण सिंह

किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह इस पर बहुत जोर देते थे कि किसानों को कर्ज देने के बजाय उनकी फसल या उपज का उचित मूल्य सही समय पर दिया जाए। इससे उनकी आर्थिक समस्याओं का हल निकल जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। अगर हम देखें तो पाएंगे कि किसानों की सबसे बड़ी समस्या यही है। इसमें राज्य सरकारों की भूमिका सबसे बड़ी है।

गन्ना किसानों का 9,000 करोड़ रुपये बकाया, चीनी मिलों से उपज का पैसा नहीं मिला

इस समय गन्ने की पेराई चल रही है। अभी भी कई राज्योंं के किसानों को उनकी उपज का पैसा नहीं मिला है। पंजाब में तो इस मुद्दे पर आंदोलन भी हुए हैं। उत्तर प्रदेश देश में गन्ना और चीनी उत्पादन में सबसे आगे है। देश के कुल चीनी उत्पादन में उसकी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है। वहां एक समय चीनी मिलों के पास किसानों के 19,000 करोड़ रुपये बकाया थे। योगी आदित्यनाथ की सरकार के अथक प्रयासों से अब यह राशि घट गई है। हालांकि कुछ बड़ी मिलें उधार चुकाने में अभी भी आनाकानी कर रही हैं। ऐसा नहीं कि ये मिलें घाटे में चल रही हैं। ये मुनाफे में ही हैं, लेकिन अभी भी गन्ना किसानों के पिछले साल के 1,000 करोड़ रुपये तथा इस साल के लगभग 9,000 करोड़ रुपये बकाया हैं।

सरकारी बैंक किसानों को उनका बकाया दिलवाने में मददगार साबित नहीं हो रहे

यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि चुनिंदा बड़ी चीनी कंपनियों में सरकारी बैंकों का काफी पैसा लगा है। उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी कंपनी में सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी तो बढ़कर 40 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है। इसके बावजूद ये बैंक किसानों को उनका बकाया दिलवाने में मददगार साबित नहीं हो रहे हैं। अगर सरकारी बैंक किसानों की मदद करें तो वे अपनी उपज का सही मूल्य सही समय पर पा लेंगे और अगले सत्र के लिए कर्ज लेने से भी बच जाएंगे। किसानों की मदद करना बैंकों का सामाजिक उत्तरदायित्व है, लेकिन इस समय ऐसा नहीं हो रहा है।

कृषि के विकास के लिए राज्यों को केंद्र सरकार के साथ आना होगा

कृषि के विकास के लिए राज्यों को केंद्र सरकार के साथ आना होगा, लेकिन कुछ राज्य इसके विपरीत काम कर रहे हैं। हमने देखा है कि कैसे बंगाल सरकार ने प्रधानमंत्री किसान निधि योजना के तहत हर किसान को मिलने वाली सालाना 6,000 रुपये की राशि को बांटने में अड़ंगा लगा दिया। कुछ राज्योंं ने तो अभी तक किसानों की पूरी सूची तक नहीं बनाई गई है जिससे किसान इस राशि से वंचित हैं। ऐसी और भी कई योजनाएं हैं जिनमें प्रांतीय सरकारों का योगदान कुछ खास नहीं रहता। इससे किसानों का हित पूरा नहीं हो पाता। कुल मिलाकर किसानों की स्थिति सुधारने और कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर चलना होगा।

( लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं )