लोकमित्र। आज दुनिया भर में चीन का रवैया जिस प्रकार से लोग देख व महसूस कर रहे हैं, उससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि अधिकांश देश उससे दूरी कायम करने के बारे में सोचने लगे हैं। भारत के लिए भी बीते दो-तीन माह से चीन ने जिस प्रकार युद्ध की चुनौतियां पैदा की हैं, उससे एक बार फिर यह साबित हो चुका है कि हमें उससे हमेशा ही सतर्क रहने की आवश्यकता है। चीन को सबक सिखाने के लिए आज सबसे जरूरी यह है कि हम उसके सामान का पूर्ण बहिष्कार करें। हालांकि जानकारों का यह कहना भी गलत नहीं है कि फिलहाल बहुत से मामलों में हमारी निर्भरता चीन पर कायम है, लेकिन स्वयं इन उत्पादों का अपने यहां उत्पादन करते हुए हम उसे जवाब दे सकते हैं। इसके लिए हमें अपनी इच्छाशक्ति को विकसित करना होगा।

कुछ विशेषज्ञ भले ही यह कहें कि चीन को झुकाना आसान नहीं, लेकिन इतना तय है कि चीनी सामान का बहिष्कार करके उसे झुकाया जा सकता। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले दो दशकों में चीन का वैश्विक प्रभाव इसलिए बना है, क्योंकि चीन दुनिया की अर्थव्यवस्था का सबसे ताकतवर इंजन बनकर सामने आया है। इन्हीं दो दशकों में चीन ने बुनियादी ढांचा विकास में महारत हासिल की है, तकनीक का अगुआ बना है और उसका विदेशी मुद्रा भंडार दुनिया के कई बड़े देशों के समग्र जीडीपी के समान हो गया है। यानी चीन को 21वीं सदी में जो सम्मान और प्रभुत्व प्राप्त हुआ है, वह सब उसे इसी आर्थिक ताकत की बदौलत ही प्राप्त हुआ है।

इस बात में कोई संदेह नहीं कि चीन की जान उसके आर्थिक प्रभुत्व में है, इसलिए भारत को चीन के आर्थिक हितों पर पलीता लगाने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। यह केवल रणनीतिक मोर्चेबंदी के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि चीन के खिलाफ आर्थिक मोर्चेबंदी भारत के लिए एक कारोबारी प्रेरणा का बड़ा स्रोत बन सकती है। चीन को छोड़कर दुनिया के किसी भी देश में 20 करोड़ मध्यवर्गीय उपभोक्ता नहीं हैं। यह एक बडी खासियत है भारत की जिसके बूते उसे जवाब दिया जा सकता है। वैसे चीन के समूचे अंतरराष्ट्रीय कारोबार में भारत की हिस्सेदारी महज तीन प्रतिशत ही है, परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वैश्विक स्तर पर आज भारत की आवाज पहले से कहीं अधिक बुलंद है, और दुनिया भर में भारत की बात को न केवल सुना जाता है, बल्कि उसे अमल में भी लाया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि भारत चीन का कारोबारी बहिष्कार करता है तो चीन को अभी बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होगा, लेकिन धीरे धीरे यह अभियान तेज होगा और दुनिया के अनेक देश इस अभियान से जुडते जाएंगे, जो चीन के लिए चिंता पैदा करेगा। लिहाजा चीन की कमर धराशायी हो सकती है।

आज चीन ने जिन 70 देशों में –ओबीओआर- का जाल बिछा रखा है उसमें भी करीब 50 देश या तो उससे नाराज हैं या वे ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। लेकिन उनके पास ऐसी कोई ताकत नहीं है, जिससे वे चीन का विरोध कर सकें। अगर भारत चीन के आर्थिक विरोध की व्यवस्थित अगुवाई करता है तो ओबीओआर से परेशान तमाम देश भारत के साथ आ सकते हैं या बिना साथ आए वो चीन पर एक दबाव बना सकते हैं। इसलिए अगर कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया टेडर्स ने चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम को महत्वपूर्ण मानकर शुरुआत की है तो वास्तव में यह फर्क डाल सकती है। सीएआइटी ने तीन हजार उपभोक्ता सामानों की सूची बनाई है जिनका विरोध करके हम चीन के विरुद्ध आर्थिक बहिष्कार की एक सार्थक मुहिम चला सकते हैं। आरंभिक तौर पर जो सूची बनाई गई है वह वास्तव में ऐसे सामानों की है, जो भारत में भी बनते हैं और बनाए भी जा सकते हैं। इसलिए चीनी उत्पादों के विरोध को मामूली या प्रभावहीन बताना अपनी ही ताकत को बहुत कम करके आंकना है। (ईआरसी)

[वरिष्ठ पत्रकार]