[ संतोष त्रिवेदी ]: वोट डालने की नौबत आने के पहले ही होली आ गई। मतलब नेताओं को ही नहीं जनता को भी मजाक करने की छूट मिल गई है। चुनाव में भले आचार-संहिता लागू हो गई हो, होली में कोई संहिता नहीं चलती। कोई किसी पर कितना भी कीचड़ पोते, वह बुरा नहीं मानता। होली ही ऐसा मौका है जब दाग भी अच्छे लगते हैं। चुनाव में रंग बदलना भले ‘देशहित’ में जरूरी हो, होली में रंगहीन रहना असामाजिक अपराध माना जाता है। होली है तो रंग बदलने के लिए गिरगिट बनना जरूरी नहीं है। इससे गिरगिट को भी इस बार तसल्ली मिलेगी। राजनीति में ‘अंतरात्माएं’ ठीक समय पर जग जाती हैं। खूंटे से बंधे लोग बंधन तोड़कर दूसरे तंबू में घुस लेते हैं। यह आत्माओं का पुनर्जागरण काल है। चुनावी वक्त में ‘आचार-संहिता’ की तलवार भले सिर पर लटकती हो, पर ‘नैतिकता’ और ‘सिद्धांत’ की मजबूत ढाल बंदे का बाल भी बांका नहीं होने देती।

होलियाने मौसम में कोई किसी बात का बुरा नहीं मानता। गाल पे गुलाल हो या चेहरे पर कालिख पुती हो, होली सबको एकसा बना देती है। सारी सूरतें एक जैसी लगती हैं। चूंकि इस बार चुनाव का पर्व होली से ही शुरू हो रहा है, इसलिए सबको कीचड़ करने का पर्याप्त मौका मिल रहा है। जहां सत्तापक्ष चाहता है कि जितना ज्यादा कीचड़ होगा, वह उतना ही ‘खिलेगा’, वहीं विपक्ष का मानना है कि कीचड़ में खिलने का अधिकार किसी एक को नहीं है। उसके पास क्वालिटी कीचड़ है। प्रमाण-स्वरूप दोनों तरफ से जहरीली-ज़ुबानें सक्रिय हो उठी हैं। होली में गुझिया के साथ-साथ एक-दूसरे को गालियों से भरा डिब्बा भी डिस्पैच किया जा रहा है। विरोधी पर बयानों की जितनी तगड़ी ‘स्ट्राइक’ होगी, कुर्सी की संभावना उतनी ही प्रबल होगी। होली के इसी हुड़दंग के बीच जनसेवक जी राफेल लेकर खुलेआम सड़क पर आ गए। उनको देखकर लोग तितर-बितर होने लगे। जनसेवक जी ने सबको आश्वस्त किया कि यह उसकी गायब हुई फाइल है, मिसाइल से लैस विमान नहीं।

लोग फिर भी आशंकित होकर दूर खड़े देखते रहे। अब जनसेवक जी से रहा नहीं गया। वह जोर-जोर से ‘अपना टाइम आएगा’ गाना गुनगुनाने लगे। तभी एक अनहोनी हो गई। जनसेवक जी अभी नए गाने पर ठीक से सुर भी नहीं लगा पाए थे कि तभी पीछे से किसी ने ‘भारत माता की जय’ कर दी। जनसेवक जी एकदम से सन्न रह गए। राफेल हाथ से छूट गया। हालात बिगड़ते देखकर हाथी साइकिल पर चढ़कर भागा। यह देखकर जनसेवक जी का गला सूख गया। मौके की नजाकत देखते हुए पास खड़े शुभचिंतक ने शर्बत से भरे लोटे को उनके आगे कर दिया। जनता का इत्ता प्यार देखकर उनका गला भर आया। एक ही झटके में जनसेवक जी ने पूरा लोटा गटागट गले के पार कर दिया। बगल में खड़े असल शुभचिंतक ने रहस्य खोला कि यह तो बनारसी भांग वाला महामिलावटी-शर्बत है। बिना असर किए उतरेगा ही नहीं।

यह सुनते ही नशा चढ़ने लगा। सड़क पर कौतूहल बढ़ते देख मजमा लग गया। सही समय पर हम भी वहीं पहुंच गए। जनसेवक जी ने कांफ्रेंस का एलान कर दिया। हम कोई सवाल-जवाब शुरू करते तभी शोर सुनाई देने लगा। जनसेवक जी को लगा कि उनके चाहने वाले होली खेलने आए हैं। उनकी आशंका तभी निर्मूल साबित हो गई जब उनके करीबी ने बताया कि वे लोग होली नहीं चुनाव खेलने आ रहे हैं। यह सुनकर जनसेवक जी उसी ओर ताकने लगे। जब वे लोग पास आए तो सलाहकार ने जनसेवक जी को बताया कि ये तीन लोग उनसे महामिलावट करने आए हैं। तीनों अपने-अपने क्षेत्र के पहुंचे हुए लोग हैं। जनसेवक जी ने कहा कि आज कीप्रेस कांफ्रेंस का यही हासिल है कि इनका परिचय सरेआम हो।

सलाहकार ने लाइन से तीनों हस्तियों को बिठाकर बोलना शुरू किया, ‘यह जो पहले नंबर पर बैठे हैं, मीडिया को मसाला यही देते हैं। सोशल मीडिया में ये जो भी लिखते हैं, ट्रेंड करने लगता है। फिर मीडिया उसी पर ‘डिबेट’ शुरू कर देता है। चुनाव में हमें इनकी बड़ी मदद मिलने वाली है। यह जो दूसरे नंबर पर सज्जन बैठे हैं, क्या कमाल की नजर रखते हैं! ये इतने दूरदर्शी हैं कि दूर देश में किसी घर की छत पर यदि कोई बनियान टंगी हो तो भी इनकी निगाह से बच नहीं पाती। ये होने वाले चुनाव के परिणाम को भी देख चुके हैं।

अबकी बार गजब की मिलावट होने वाली है। और ये जो तीसरे नंबर पर विनम्रता की मूर्ति बने बैठे हैं, इनके बारे में जितना कहा जाए उतना कम है। यह सटीक निशानेबाज हैं। विरोधी पर टूटते हैं तो उसे टूटने का मौका भी नहीं देते। यह हमारे दल में ‘जूतामार’ विंग के प्रमुख होंगे। जूता-उद्योग को इनसे बड़ी उम्मीद है।’ इतना सुनते ही जनसेवक जी के अंदर का बनारसी शर्बत उबल पड़ा। जोर से बोल पड़े-‘अब होली है तो मुमकिन है!’

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]