अभिजीत मोहन। यह स्वागतयोग्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आइएसए) में शामिल 62 देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने और समाज के वंचित वर्ग की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सौर ऊर्जा बढ़ाने की प्रतिबद्धता जाहिर की है, लेकिन दुनियाभर में ऊर्जा की जरूरतें तभी पूरी होंगी जब सौर ऊर्जा के साथ-साथ पवन ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने की दिशा में भी ठोस पहल होगी। मौजूदा समय में भारत में पवन ऊर्जा का उत्पादन 32.56 गीगावाट होता है। सरकार ने 2022 तक अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 1,75000 मेगावाट करने का लक्ष्य सुनिश्चित किया है। पवन ऊर्जा की दृष्टि से तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, केरल और पश्चिम बंगाल शीर्ष पर हैं।

बहती वायु से उत्पन्न की गई ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं। इसे बनाने के लिए हवादार जगहों पर पवन चक्कियों को लगाया जाता है, जिनके द्वारा वायु की गतिज ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। फिर इस यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि वायु का ऊर्जा उत्पादन करने हेतु उपयोग में न तो किसी प्रकार की प्रदूषण की समस्या आती है, न ही इसके कारण विस्तृत क्षेत्र में फैली भूमि को किसी तरह नुकसान पहुंचता है। कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए उपलब्ध कुछ एक तकनीकी विकल्पों में पवन ऊर्जा महत्वपूर्ण है।

पवन ऊर्जा में गैसीय प्रदूषकों के उत्सर्जन जैसी कोई समस्या नहीं है जो ग्रीन हाउस प्रभाव को उत्पन्न करके पर्यावरणीय समस्याओं को बढ़ाते हैं। ऐसे में गौर करें तो विद्युत उत्पादन हेतु पवन ऊर्जा सबसे अधिक स्वीकृत स्नोतों में से एक है। जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह यह कि पवन नि:शुल्क तथा प्रचुरता में उपलब्ध है। यह सरलता से प्राप्य और कभी न समाप्त होने वाला है। पवन पर किसी भी देश या वाणिज्यिक प्रतिष्ठान का एकाधिकार नहीं है जैसा कि जीवाश्मीय ईंधनों के साथ है। चूंकि ऊर्जा की मांग सतत रूप से बढ़ती ही जाएगी, इसलिए पवन ऊर्जा ही एकमात्र आसान विकल्प साबित होगा। ध्यान देने वाली बात यह कि जहां जीवाश्मीय ईंधन सीमित है वहीं पवन कभी समाप्त नहीं होने वाला है।

जीवाश्मीय ईंधनों की तुलना में पवन ऊर्जा संयंत्रों का परिचालन भी अति सुरक्षित है। आधुनिक एवं उन्नत माइक्रोप्रोसेसर्स के प्रयोग से जहां समस्त संयंत्र पूर्ण रूप से स्वचालित हो गए हैं वहीं संयंत्रों के परिचालन के लिए अधिक श्रमिकों की जरूरत भी नहीं रह गई है। निर्माण तथा रखरखाव की दृष्टि से भी यह अति सुरक्षित है। ध्यान दें तो यह बात तापीय या नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों पर लागू नहीं होती। आधुनिक पवन संयंत्रों में प्रयुक्त प्रभावी सुरक्षा यांत्रिकी से यहां तक संभव हो गया है कि इन्हें सार्वजनिक स्थलों पर भी स्थापित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए इसे पहाड़ी के शिखर पर, समतल सपाट भू-प्रदेश, वनों तथा मरुस्थलों तक में लगाया जा सकता है। संयंत्र को अपतटीय क्षेत्रों तथा छिछले पानी में भी लगाया जा सकता है। यदि पवन संयंत्रों को कृषि भूमि में लगाया जाता है तो मीनार के आधार स्थान तक खेती की जा सकती है।

हालांकि पवन ऊर्जा की बढ़ती जरूरत और उपयोगिता के बावजूद भी कुछ पर्यावरणविदों का तर्क है कि पवन ऊर्जा से कई तरह की समस्याएं उत्पन हो रही हैं। मसलन क्षैतिज अक्ष वाले पवन चालित टरबाइनों के घूमते हुए ब्लेड दूरदर्शन संकेतों में व्यवधान उत्पन कर रहे हैं। अनेक विकसित देशों में शोर की समस्या को पवन ऊर्जा के विकास के विरुद्ध हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। अनेक प्रकृति प्रेमियों को आशंका है कि पवन चालित संयंत्रों की उपस्थिति प्रवासी पक्षियों तथा सामान्य पक्षियों को भयभीत करती है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि पक्षी टकराने की घटनाएं निचली उड़ान के स्तर पर ही होती हैं और ऐसे पक्षियों की संख्या बहुत ही कम होती है। सच तो यह है कि ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए पवन ऊर्जा अति सुरक्षित व महत्वपूर्ण विकल्प है।