अवधेश कुमार : गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की रिकार्ड जीत पर हैरान होने का कोई कारण नहीं है। गुजरात में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी यानी आप को झटका लगा है तो इसी कारण कि उन्होंने वस्तुस्थिति का गलत आकलन किया था। अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था कि 27 साल बाद यहां परिवर्तन होगा। जनादेश ने बता दिया कि राज्य राजनीतिक परिवर्तन के पक्ष में बिल्कुल नहीं है। कांग्रेस तो चुनाव अभियान में भाजपा के समकक्ष कहीं दिख ही नहीं रही थी। आप ने जोर तो लगाया, लेकिन उसके पास संगठन नहीं है। दूसरी ओर, भाजपा के पास सरकार, सशक्त संगठन के साथ ही अमित शाह जैसे चुनावी रणनीतिकार और इन सबसे बढ़कर नरेन्द्र मोदी जैसे लोकप्रिय नेता हैं। जहां तक हिमाचल की बात है तो यहां पिछले 37 वर्षों से हर चुनाव में सरकार बदलती रही है। केंद्रीय नेतृत्व के बिना अगर कांग्रेस की प्रदेश इकाई हिमाचल में अच्छा प्रदर्शन कर पाई तो इसका मतलब है कि भाजपा वहां कल्पना से ज्यादा रोगग्रस्त है। भाजपा के 21 विद्रोहियों का खड़ा होना बताता है कि पार्टी की स्थिति क्या है? भाजपा विद्रोहियों द्वारा काटे गए मतों के कारण ही हारी है।

इसके विपरीत गुजरात में भाजपा ने 1995 में अपने उत्थान के बाद मतों का सर्वोच्च शिखर छुआ है तो राज्य बनने के बाद गुजरात में सबसे ज्यादा सीट पाने का रिकार्ड भी बना दिया। इससे पहले माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में कांग्रेस ने रिकार्ड 149 सीटें जीती थीं। 53 प्रतिशत से ज्यादा मत पाने का अर्थ है कि यह विश्लेषण सही नहीं कि आप नहीं होती तो कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती और भाजपा का ग्राफ नीचे आता। सीटों और मतों की दृष्टि से यह असाधारण विजय है।

हर अंकगणित के राजनीतिक मायने होते हैं। 2017 का चुनाव अलग माहौल में हुआ था। वह नोटबंदी, जीएसटी के बाद का पहला चुनाव था और प्रदेश का माहौल पाटीदार आंदोलन से गरम था। इन सबका असर हुआ और भाजपा सत्ता में आने के बाद सबसे कम 99 सीटों तक सिमट गई। 2022 आते-आते हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर भाजपा में आ गए। भूपेंद्र पटेल के मुख्यमंत्री होने के बाद यह प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई। भाजपा ने आदिवासी नेताओं के कुछ प्रमुख चेहरों को भी शामिल किया। निमिषा सुथार को मंत्री बनाया और उन्हें पार्टी स्तर पर आदिवासी चेहरे के रूप में आगे बढ़ाया। भाजपा का प्रदर्शन उन क्षेत्रों में भी काफी अच्छा रहा, जिनमें वह पिछली बार पिछड़ गई थी।

गुजरात एक सामान्य राज्य नहीं है। यह मोदी के एक संपूर्ण राजनेता के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर निखारने और उभारने की आधार भूमि है। यह कल्पना निरर्थक है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राजनीति की जो धारा राष्ट्रीय धारा बन गई, वह अपनी आधारभूमि पर ही कमजोर पड़ जाएगी। गुजरात का मोदी माडल-हिंदुत्व, राष्ट्रभाव के सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक विकास और परिवर्तन के संतुलन का माडल रहा है। मोदी ने गुजरात में क्षेत्रीयता को राष्ट्रीयता के भाव से जोड़ दिया। दुर्भाग्य से, विपक्षी कांग्रेस या आप इस परिवर्तन को समझ नहीं पाईं। कांग्रेस अभी भी मानती है कि हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विचार लोगों का केवल भावनात्मक शोषण है, जिसका आर्थिक-सामाजिक उन्नति से कोई लेना देना नहीं, लेकिन सच इसके विपरीत है।

मोदी माडल का एक मुख्य तत्व आंतरिक और बाह्य सुरक्षा भी है। 2002 के पहले गुजरात में दादाओं की चलती थी और उसके बाद से गुजरात शांत है। इसका असर आम लोगों पर होना ही था, क्योंकि शांति और सुरक्षा की दृष्टि से 2002 के पहले और बाद के गुजरात में जमीन-आसमान का अंतर है। भाजपा, कांग्रेस और आप तीनों के घोषणापत्रों को देखें तो सुरक्षा का पहलू मुख्य रूप से भाजपा में ही दिखेगा। पहली बार कहा गया है कि कट्टरता की समाप्ति के लिए एक विशेष इकाई बनेगी, जो धार्मिक क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर मजहबी आतंकवाद की दिशा में जाने वाले युवाओं के मानस परिवर्तन के लिए काम करेगी। इतना ही नहीं, गुजरात के सभी भौगोलिक क्षेत्रों के समग्र विकास की रूपरेखा बनाने का काम भी भाजपा ने किया। उसके घोषणापत्र में ब्लू इकोनमी कारिडोर की बात है। मछुआरों के लिए किसी ने भी इस दृष्टि से नहीं सोचा कि उनके लिए एक अलग कारिडोर भी हो सकता है। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का माडल विकास की श्रेष्ठ अवधारणा से अलग नहीं है। चुनावी विजय के लिए शेष बातें साथ चलती हैं।

चुनाव पूर्व का माहौल देखिए तो सर्वाधिक प्रभावी चुनाव अभियान भाजपा का ही था। मोदी, शाह से लेकर केंद्रीय नेताओं की रैलियां और रोड शो से लेकर घर-घर संपर्क तक में कोई पार्टी मुकाबले में नहीं थी। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का तो लगा ही नहीं कि गुजरात चुनाव से उसका बहुत वास्ता है। मोदी के प्रति वितृष्णा के कारण चुनाव प्रक्रिया आरंभ होते ही मधुसूदन मिस्त्री ने मोदी को ‘औकात दिखाने’ की बात की तो मलिकार्जुन खरगे ने उनकी तुलना रावण से कर दी। कर्नाटक के एक कांग्रेस नेता ने उन्हें आधुनिक भस्मासुर कह दिया। इसकी प्रतिकूल प्रतिक्रिया तो होनी थी और भाजपा ने इसे मोदी के अपमान के रूप में पेश भी किया। इसका परिणाम सामने है। कांग्रेस इतिहास की अब तक की सबसे कम सीटों और वोटों तक सिमट गई है। आप ने आरंभ में इवेंट प्रबंधन से यह दिखाया कि माहौल उसके अनुरूप है, किंतु जमीन पर ऐसी स्थिति नहीं थी। उसने वहां खाता जरूर खोला, लेकिन वोट केवल कांग्रेस का ही काटा। कांग्रेस सही तरीके से लड़ाई लड़ते दिख ही नहीं रही थी। इस तरह गुजरात का चुनाव परिणाम बिल्कुल स्वाभाविक है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)