नई दिल्ली, कैलाश बिश्नोई। भारतीय राजनीति में एक नई प्रवृत्ति पैदा हुई है जिसके तहत राजनीतिक पार्टियां जिताऊ होने की दलील देकर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट दे देती हैं। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने तमाम राजनीतिक दलों से कहा है कि जब भी कोई पार्टी किसी दागी उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारे तो 48 घंटे के भीतर सार्वजनिक रूप से यह बताए कि ऐसा क्यों किया? भारतीय राजनीति को अपराध मुक्त बनाना, खासकर अपराधियों को संसद और विधानसभाओं में पहुंचने से रोकना, पिछले कुछ दशकों से देश के लिए गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। ऐसे में राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ सर्वोच्च अदालत की यह पहल सराहनीय एवं उत्साहवर्धक है।

पिछले चार आम चुनावों में (2004, 2009, 2014 और 2019) राजनीति के अपराधीकरण में चिंताजनक बढ़ोतरी देखने को मिली है। हालांकि अधिकतर सांसदों पर ‘मानहानि’ जैसे अपेक्षाकृत छोटे अपराधों के मामले दर्ज हैं, लेकिन असल चिंता का विषय यह है कि मौजूदा लोकसभा सदस्यों में सर्वाधिक (29 प्रतिशत) सदस्यों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि पिछली लोकसभा में यह आंकड़ा तुलनात्मक रूप से कम था।

नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, जहां एक ओर वर्ष 2009 में गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या 76 थी वहीं 2019 में यह बढ़कर 159 हो गई। इस प्रकार 2009-19 के बीच गंभीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों की संख्या में कुल 109 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली। बीते कुछ वर्षों में यह प्रवृत्ति देखी गई कि जेल की सलाखों के पीछे से कोई चुनाव लड़ रहा है, तो कोई सजा काटकर चुनावी मैदान में उतरा है। किसी पर गंभीर आरोप है, लेकिन वह लोकसभा या विधानसभा का सदस्य बना है। इन सबको राजनीति में आई गिरावट से जोड़ा गया, नैतिकता, शुचिता की दुहाइयां दी गईं।

देश में इसे लेकर लंबे वक्त से चिंता व्यक्त की जाती रही है। कई बार कानूनन प्रतिबंधित करने के मामले उठे हैं, परंतु अब तक इस मसले पर कोई ठोस नियमन आकार नहीं ले सका है। अपराधियों के चुनाव लड़ने पर कोई रोक न होने के कारण हत्या जैसे जघन्य अपराधों में संलिप्त लोग भी केवल इस आधार पर चुनाव लड़ने और जीतने में सफल हो जाते हैं कि मामला न्यायालय में लंबित है। न्याय प्रणाली की निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक की न्यायिक प्रक्रिया में अक्सर 15 से 20 वर्ष का समय लग जाता है। इस संदर्भ में राजनीतिक दल सिर्फ यही दलील देते आए हैं कि जब तक कोई आरोपी दोषी करार नहीं दे दिया जाता, उसे अपराधी नहीं माना जा सकता। दागदार नेता इसी का फायदा उठा रहे हैं, क्योंकि लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया के चलते मुकदमों के निपटान में बरसों गुजर जाते हैं और आरोपी के लिए दोषी साबित नहीं होने तक चुनाव लड़ने और जीतने पर सदन में पहुंचने का रास्ता खुला रहता है।

राजनीतिक लड़ाई में ईमानदारी, सिद्धांतों और साफ-सुथरी कार्यप्रणाली के दावे सभी दलों द्वारा किए जाते हैं, पर जब चुनाव जीतने की बात आती है तो हर पार्टी जीतने योग्य व्यक्ति पर नजर रखती है और उसकी पृष्ठभूमि को नजरअंदाज करती है। जब तक सभी राजनीतिक दलों के नेता एक मत नहीं हों तो क्या राजनीति के अपराधीकरण को कम किया जा सकता है? स्पष्ट उत्तर है नहीं। इसके लिए सभी दलों को आगे आना होगा तथा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट न देने के लिए संकल्पबद्ध होना होगा।

अगस्त 2018 में भी राजनीति के अपराधीकरण के हालात पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भी कहा था कि यह संसद की जिम्मेदारी है कि वह राजनीति के अपराधीकरण को रोकने की दिशा में आवश्यक कदम उठाए। ऐसे में संसद कानून बनवा कर यह सुनिश्चित करे कि गंभीर आपराधिक मामलों में फंसे लोग राजनीति में न आ सकें। राजनीति का अपराधीकरण भारतीय लोकतंत्र का एक स्याह पक्ष है, जिसके मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय और निर्वाचन आयोग ने कई कदम उठाए हैं, किंतु इस संदर्भ में किए गए सभी नीतिगत प्रयास समस्या को पूर्णत: संबोधित करने में असफल रहे हैं।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश एमएन वेंकटचलैया ने बहुत पहले ही ‘नेशनल कमीशन टू रिव्यू द वर्किंग ऑफ द कांस्टीट्यूशन’ की अध्यक्षता करते हुए पांच साल से अधिक की सजा की स्थिति में चुनाव लड़ने से रोकने और हत्या, दुष्कर्म, तस्करी जैसे जघन्य मामलों में दोषी ठहराए जाने पर ताउम्र प्रतिबंध का सुझाव दिया था। चुनाव आयोग ने भी काफी पहले स्पष्ट किया था कि निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराया जाना ही चुनाव लड़ने से अयोग्य करने को पर्याप्त होगा। समय की मांग है कि राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या पर रोक लगाने के लिए कानूनी ढांचे को मजबूत किया जाए। इस दिशा में गंभीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अपराध में दोषी करार दिए जा चुके राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाना भारतीय राजनीति को स्वच्छ बनाने की दिशा में एक दूरगामी एवं महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है, लेकिन इस पर एक बड़ी चिंता यह है कि इस प्रकार के कठोर प्रावधानों का दुरुपयोग न हो।

यदि गंभीर आपराधिक प्रवृत्ति वाले दोषियों पर आजीवन प्रतिबंध की व्यवस्था लागू की जाती है तो भविष्य में चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले उम्मीदवारों के लिए यह एक निवारक कारक की तरह कार्य करेगा और वे किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल होने से बचेंगे। संसद और विधानसभाओं में स्वच्छ पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का प्रवेश होगा। इससे आम जनता का राजनीतिक व्यवस्था में विश्वास मजबूत होगा और लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होंगी।

[अध्येता, दिल्ली विश्वविद्यालय]