आशीष व्यास। दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी के संदर्भ में अब तक मिले अवशेषों से यह प्रमाणित होता है कि नदियों के किनारे समृद्ध हुई मानव-सभ्यता, तब अधिक फली-फूली जब व्यापार-व्यवसाय का रास्ता भी खुला। बताया यह भी जाता है कि दुनिया में सबसे पहले कपास हड़प्पावासियों ने ही उगाया था। उसी कपास से सूती कपड़े बने, कालांतर में उद्योग के रूप में भी कपास का उपयोग हुआ। हो सकता है कि सिंध-पंजाब, जम्मू-कश्मीर, बलूचिस्तान से लेकर राजस्थान, गुजरात होते हुए नर्मदा के मुहाने तक फैली इस सभ्यता के कुछ अंश मध्य प्रदेश तक भी पहुंचे हों! इतिहास के ऐसे ही पन्नों पर मध्य प्रदेश को खोजते हुए एक संदर्भ यह भी मिलता है कि देश के हृदय प्रदेश का कपास से पुराना नाता है। हो सकता है प्रदेश की पहचान बन चुकी कपास की उन्नत खेती के बीज भी उसी समय बो दिए गए हों! यहां ‘कपास’ केवल फसल नहीं, बल्कि समृद्धि-संपन्नता का प्रतीक भी है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधि प्रदेश अब औद्योगिक निवेश के माध्यम से भी विकास के नए पड़ाव पार करना चाहता है।

दीप उत्सव शुरू होने के साथ ही लक्ष्मीजी के आगमन की प्रतीक्षा की जा रही है। दिवाली की रात भी दरवाजा खुला रखने की परंपरा इसीलिए है कि लक्ष्मी जी जब आएंगी, तो सुख-संपत्ति, सतत उन्नति और ऐश्वर्य की भी आमद होगी। मैग्निफिसेंट एमपी के जरिये प्रदेश ने भी इस दिवाली पर अपने दरवाजे खोल रखे हैं। संभवत: 31 अक्टूबर को इसकी आहट सुनाई देगी, जब कैबिनेट बैठक में 10 हजार करोड़ रुपये के निवेश वाले मेगा प्रोजेक्ट्स का अनुमोदन होगा। स्वाभाविक है इन आंकड़ों को सरकारी बही-खाते में भी चढ़ा लिया जाएगा। जब सभी तरफ से मंदी का शोर सुनाई दे रहा है, बाजार एक अनावश्यक आशंका से घिरता चला जा रहा है, ऐसे में निवेश का यह क्रम मध्य प्रदेश के लिए संजीवनी के समान है।

‘इंडिया इनक्रेडिबल बनाम मध्य प्रदेश क्रेडिबल’ के नारे पर भरोसा किया जाए, तो निवेश के साथ-साथ 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों को रोजगार दिए जाने का वादा भी हो गया है। यदि इसे ईमानदारी से निभाया जाता है, तो यह दिवाली आने वाले वर्षो के लिए उन्नति का दरवाजा खोल सकती है। मध्य प्रदेश के पास अभी एक अवसर भी है। निवेश की संभावनाओं को व्यावहारिक धरातल पर उतारकर नई मांग पैदा की जा सकती है। कंपनियों से रोजगार के साधन उपलब्ध करवाने की शर्त का पालन करवाकर, लोगों तक पैसा पहुंचाया जा सकता है। आइसीएआइ, इंदौर के अध्यक्ष और चार्टर्ड एकाउंटेंट पंकज शाह मध्य प्रदेश में समृद्धि के भविष्य को लेकर आशान्वित हैं।

उनका मानना है- ‘मैग्निफिसेंट एमपी से निवेश लाने की कोशिश के साथ केंद्र द्वारा कम किए कॉरपोरेट टैक्स का असर भी अब नजर आएगा। दिवाली के बाद नई कंपनियां स्थापित होती दिखेंगी। विनिर्माण सेक्टर को बढ़ावा मिलेगा। कॉरपोरेट को पहले जो पैसा एडवांस टैक्स में जमा करना था, वे अब उसका उपयोग विस्तार के लिए करेंगे।’ हालांकि प्रदेश को करीब से देखने-समझने और ऐसे कई प्रयोगों के भागीदार रहे मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा की बातों पर भी गौर करने की आवश्यकता है। वे कहते हैं- ‘अब पूरा दारोमदार क्रियान्वयन पर है। जब तक निवेश जमीन पर नहीं उतरेगा, तब तक इसका फायदा अर्थव्यवस्था पर नजर नहीं आएगा। मैग्निफिसेंट एमपी में जो प्रस्ताव आए हैं, उन पर तेजी के साथ काम करना होगा। इसके लिए कार्यक्रम बनाने होंगे और पुख्ता निगरानी भी करनी होगी। जब उद्योग लगेंगे तो आसपास संबंधित उद्योग भी आएंगे। लोगों को काम मिलेगा और अर्थव्यवस्था गतिशील होगी।’

वैसे मुख्यमंत्री कमलनाथ यह विश्वास दिला चुके हैं कि निवेश का यह नया परिदृश्य योजनाबद्ध नीतियां बनाने के बाद ही दिखाई दे रहा है। मैग्निफिसेंट एमपी का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा भी था कि- यह कोई मेला नहीं है, न ही सिर्फ एमओयू करने के लिए रखा गया एक कार्यक्रम। यह प्रदेश के युवाओं के लिए रोजगार सृजित करने का एक मंच है। चूंकि आंकड़ों में मेरा विश्वास नहीं है, दो वर्ष बाद मध्य प्रदेश ‘इमजिर्ग’ प्रदेश न रहे हम इस पर काम कर रहे हैं। नए उद्योगों को 70 फीसद रोजगार मध्य प्रदेश के लोगों को देना होगा।’

इसीलिए ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के वाइस चेयरमैन आलोक खरे आग्रह कर रहे हैं- ‘निवेश की नीति और प्रक्रियाओं में कई बार सरकारों द्वारा बैंक प्रबंधन को बाहर कर दिया जाता है, जबकि फंडिंग उन्हीं के जरिये होती है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार, निवेशक और बैंक के बीच एक त्रिकोणात्मक संवाद स्थापित किया जाए।’

बहरहाल, मैग्निफिसेंट एमपी के बहाने समृद्धि ने मध्य प्रदेश के दरवाजे पर दस्तक दे दी है। शासन-प्रशासन ने अपनी पूरी क्षमता से उद्योगपतियों का स्वागत-सत्कार किया और वास्तविक निवेश के लिए प्रोत्साहित भी किया। इच्छाओं-अपेक्षाओं का नया आधार अब यह है कि योजनाओं-घोषणाओं के बाद अब क्रियान्वयन पर भी तेजी से काम किया जाए। दिवाली के पहले प्रदेश ने इसी उम्मीद से अपने दरवाजे खोले हैं कि निवेश के बहाने प्रदेश में ‘लक्ष्मी’ आएं।

झाबुआ की जीत से सुरक्षित हुई सरकार

झाबुआ विधानसभा उपचुनाव की जीत से कांग्रेस उत्साहित है। आंकड़ों की दौड़ में अब खुद को सुरक्षित भी महसूस कर रही है। हार के बाद भाजपा में थोड़ी निराशा है, वहीं कांग्रेस गदगद है, क्योंकि उसने अब विधानसभा में एक तरह से बहुमत हासिल कर लिया है। पहले से ही जीत का दावा कर रहे मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस जीत को झाबुआ की जनता की ओर से दिया गया दिवाली का तोहफा बताया। यह संकल्प भी दोहराया कि जनता से किए सभी वादों को पूरा कर हम झाबुआ की तस्वीर बदलेंगे। पिछले चुनाव में हार से अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया ने भी इस जीत से राहत की सांस ली है। माना जा रहा है प्रदेश की राजनीति में वे अब एक बड़े आदिवासी नेता के रूप में सामने आ सकते हैं।

(लेखक नई दुनिया, मध्य प्रदेश के संपादक हैं)