जीएन वाजपेयी : सफलता और गौरव की यात्रा बड़े सोच से ही आरंभ होती है। इसी दृष्टिकोण के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया है। इस संकल्प पूर्ति के लिए अर्थव्यवस्था को 20 ट्रिलियन (लाख करोड़) डालर के स्तर पर ले जाना होगा। यानी आर्थिकी को मौजूदा दायरे से करीब छह गुना बढ़ाना होगा। वास्तव में, किसी भी देश की जोरदार आर्थिक वृद्धि जनसांख्यिकीय वितरण, राजनीतिक स्थिरता, वैश्विक सहयोग और आर्थिक प्राथमिकताओं पर निर्भर होती है। व्यापक अर्थों में आर्थिक वृद्धि के दो प्रमुख स्रोत होते हैं। एक कामकाजी आबादी के आकार में वृद्धि और दूसरा उत्पादकता में बढ़ोतरी। वहीं भूमि, श्रम, पूंजी और उद्यमिता आर्थिक वृद्धि के चार पहलू हैं। शुभ संकेत यही हैं कि प्रधानमंत्री ने उक्त उद्घोषणा एक ऐसे समय में की है जब भारत के संदर्भ ये सभी पहलू सकारात्मक दिखते हैं।

भारत एक उद्यमी समाज है और हाल के दौर में राष्ट्रीय नीतियां एवं कार्यक्रम भी अर्थव्यवस्था पर शीर्ष स्तरीय नियंत्रण से निजी क्षेत्र प्रवर्तित आर्थिक वृद्धि की ओर केंद्रित हुए हैं। फिर भी, 25 वर्षों में छह गुना वृद्धि के लिए बड़े स्तर पर उद्यमियों के उभार की आवश्यकता होगी। यह चमत्कारिक कारोबारी सफलता गाथाओं से ही संभव है। इस मोर्चे पर यूनिकार्न (सौ अरब डालर मूल्यांकन वाली कंपनियां) प्रेरणा पुंज की भूमिका निभा सकती हैं।

देश के कोने-कोने में यूनिकार्न का फैलाव उद्यमियों की बड़ी खेप तैयार करेगा। ऐसे में 10,000 यूनिकार्न बनाए जाने का लक्ष्य तय किया जाए। यह मुश्किल अवश्य है, किंतु असंभव नहीं। इस वर्ष जुलाई के पहले पखवाड़े तक देश में यूनिकार्न की संख्या 105 तक पहुंच गई थी। भारत के प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश को अगले 25 वर्षों में यूनिकार्न स्थापित करने में उत्प्रेरक-सहायक बनने की दिशा में तत्पर होना जाना चाहिए। जिलेवार योजना बनाएं और वार्षिक स्तर पर उनके लिए भिन्न-भिन्न लक्ष्य तय करें। राज्य अपनी ताकत के आधार पर क्षेत्रों को चिह्नित करें। प्रत्येक स्तर पर समन्वय सुनिश्चित हो। यूं तो दुनिया भर में करीब सभी क्षेत्रों में यूनिकार्न उभर रही हैं, लेकिन उनमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी कारोबार प्रबंधन समाधान, वित्तीय सेवाओं, खुदरा, स्वास्थ्य सेवाओं, लाजिस्टिक्स, परिवहन, शिक्षा, आतिथ्य सत्कार, ऊर्जा और खाद्य एवं पेय जैसे क्षेत्रों की है। मेरा मानना है कि किसी भी क्षेत्र में यूनिकार्न बनाई जा सकती है।

यूनिकार्न क्रांति चार अनुकूल पहलुओं-व्यक्तियों, तकनीक, पूंजी और बुनियादी ढांचा से संचालित होगी। आकांक्षी पुरुष-महिलाएं, मार्गदर्शक और इनक्युबेटर (नए उद्यमों को विकसित करने वाले) इसके पहले बिंदु में शामिल हैं। सहयोगी सेवा प्रदाताओं में वकील, अकाउंटेंट, आडिटर्स, निवेश बैंकर, लाजिस्टिक सुविधाएं उपलब्ध कराने वाले और मानव संसाधन जुटाने में कुशल पेशेवर आते हैं। उद्योग संस्थाओं और राज्य को लोगों से जुड़ी इस कड़ी को मजबूत करने के लिए मिलकर काम करना होगा। दूसरा पहलू तकनीक का है, जिसमें हार्डवेयर, डाटा सहित संसाधन साझेदारी और नवाचार सुगमता जैसे बिंदु शामिल हैं। बेंगलुरु में यूनिकार्न के बड़े जमावड़े के पीछे तकनीकी सहयोग एक महत्वपूर्ण कारक है। वस्तुत: तकनीक एक मजबूत जन स्तंभ की ओर उन्मुख करती है।

पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता किसी भी उपक्रम की सफलता के मूल में होती है। चूंकि किसी नए प्रयास में सफलता की सीमित गुंजाइश को देखते हुए नए विचार को वित्तीय आधार मिलने में हमेशा हिचक देखने को मिलती है। पिछले कुछ समय से यही दिखा है कि एंजेल निवेशक शेयर बाजार में पैसे लगाकर स्थापित उद्योगों की वृद्धि में कहीं ज्यादा तत्पर हैं। इससे नए विचारों के कारोबारी रूपांतरण की राह में पूंजी की किल्लत हो गई है। इसी आवश्यकता को भांपते हुए भारत सरकार ने कुछ इनक्युबेशन केंद्रों को वित्तीय संसाधन आवंटित किए हैं। साथ ही सिडबी के माध्यम से वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था की जा रही है।

अब कोई दो साल से कम पुराना स्टार्टअप 20 लाख रुपये का अनुदान ले सकता है। साथ ही वह बिना कुछ गिरवी रखे साढ़े चार प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर पांच वर्षों के लिए 50 लाख रुपये का कर्ज भी ले सकता है। हालांकि यूनिकार्न बनने की राह में ऐसी मदद अपर्याप्त ही कही जाएगी। सिडबी की पहुंच और क्षमताएं भी सीमित हैं। ऐसे में देश के प्रत्येक जिले तक इससे जुड़े संस्थागत ढांचे का समग्रता में विस्तार करना होगा। वित्तपोषण की प्रकिया और मानसिकता पूरी तरह बदलनी होगी। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को केंद्र सरकार के प्रयासों के साथ ताल मिलानी होगी। उन्हें बड़े स्तर पर जोखिम पूंजी में साझेदार बनना होगा।

जहां तक बुनियादी ढांचे की बात है तो उसके तीन घटक हैं, भौतिक स्थान, कनेक्टिविटी और सहयोगी सेवाएं जैसे कि स्वास्थ्य, शिक्षा और मनोरंजन इत्यादि। उद्यमी सुसंगठित, स्वच्छ और बेहतर सुविधाओं वाले शहरों में रहने के आकांक्षी हैं। सभी मौजूदा भारतीय शहर भीड़भाड़ से भरे हैं। वहां रहने के लिए परिवेश भी उतना सहज नहीं है। इसलिए बेहतर होगा कि एक्सप्रेसवे के आसपास अत्याधुनिक सुविधाओं वाली टाउनशिप विकसित की जाएं। इससे महानगरों और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों तक उनकी पहुंच भी आसान होगी। साथ ही ये नई टाउनशिप तीन प्रकार से मददगार होंगी। इनसे शहरों पर भीड़भाड़ का बोझ घटेगा। आधुनिक पर्यावास का सृजन विकसित देश का प्रतीक होगा और ये सतत आर्थिक वृद्धि में सहायक होंगी। हालांकि ऐसी परियोजनाओं से पहले सभी सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को सुलझाना बहुत आवश्यक होगा, क्योंकि आंध्र प्रदेश की प्रस्तावित राजधानी अमरावती का उदाहरण हमारे सामने है।

ऐसे उपायों के साथ-साथ योजनाओं का समग्रतापूर्ण नियोजन और समयबद्ध क्रियान्वयन रोजगार सृजन, असमानता घटाने, समृद्धि विस्तार करने और भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में सफल होगा।

(लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं)