[ संतोष त्रिवेदी ]: साधक जी गहरे सदमे में थे। उनके प्रिय लेखक का निधन हो गया था और यह खबर उन्हें पूरे बत्तीस मिनट की देरी से मिली। अब तक तो सोशल मीडिया में कई लोग बाजी मार ले गए होंगे। फिर भी उन्होंने खुद को संभाला। ऐसा करना जरूरी था, अन्यथा क्षति और व्यापक हो सकती थी। पहले तो उन्होंने इस खबर की पुष्टि की। इस बार पक्की सूचना थी कि उनके ‘प्रिय लेखक’ साहित्यिक यात्रा के बजाय अंतिम यात्रा पर ही निकले हैं। इससे इत्मिनान हुआ। पहले वह दो बार ‘फेक-न्यूज’ से गच्चा खा चुके थे। वरिष्ठ लेखक से नजदीकी दिखाने की जल्दबाजी में उनके स्वर्गारोहण से पहले ही सोशल मीडिया की ‘दीवार’ पर वह उनका ‘शोकोत्सव’ मना चुके थे। अचानक लेखक जी की निगाह जब अपनी ही ‘जीवित श्रद्धांजलि’ पर पड़ी तो सोशल मीडिया पर साधक जी द्वारा अर्जित की गई सारी संपत्ति पल भर में स्वाहा हो गई।

सोशल मीडिया पर ‘फेक-न्यूज’

उस सबक को याद कर साधक जी तुरंत सोशल मीडिया पर आए। वहां कोहराम मचा हुआ था। एक नवोदित कवि ‘ट्रेंड’ कर रहा था। उसने लेखक जी के शव के साथ ही सेल्फी ले ली थी। उसे वायरल होते देख उनका दिल बैठ गया, पर उन्हें अपनी प्रतिभा पर पूरा भरोसा था। ऐसे झटके खाने का उनका तजुर्बा रहा है। उन्होंने जल्दी से पुराने अलबम खंगाले। कभी वह लेखक के बड़े खास थे। सो उनके साथ खींचे गए चित्रों का खासा स्टॉक था। उन्होंने एक दुर्लभ फोटो को ‘प्रिय लेखक से आखिरी आशीर्वाद का सौभाग्य इस नाचीज को’ कैप्शन के साथ परोसा ही था कि पूरी साहित्यिक बिरादरी उस पर टूट पड़ी। लोगों ने अंतत: उनके दुख को मान्यता दे दी। वह बराबर हर श्रद्धांजलि को ‘लाइक’ कर रहे थे। इससे उनका दुख लगातार ‘अपडेट’ हो रहा था। उन्होंने एक घंटे में ही उस नवोदित कवि के दुख को पटखनी दे दी।

स्वर्गवासी लेखक की श्रद्धांजलि देखकर लगा कि साहित्य में जीवित रहने से अच्छा है मौत

स्वर्गवासी लेखक की ऐसी श्रद्धांजलि देखकर कई वरिष्ठ भीतर ही भीतर ‘कलपने’ लगे। सोचने लगे कि साहित्य में ऐसे जीवित रहने से अच्छा है कि इस तरह की मौत ही आ जाए। कम से कम एक दिन के लिए ही सही, वे चर्चित तो होंगे। पर प्रकटत: यह सब तो नहीं कह सकते थे। आखिर लोकलाज भी कोई चीज होती है। साहित्यकार होने के नाते सभी पर्याप्त रूप से संवेदनशील थे। जिस लेखक का शोक इतना वायरल हो चुका हो, उस पर कुछ तो लिखना होगा। यही सोचकर एक वरिष्ठ ने मर्मांतक संस्मरण लिखा, ‘वह कहते रहे कि साहित्य की सद्गति होने तक लिखते रहेंगे। अब किसको पता था कि साहित्य से पहले उनको ही सद्गति मिलेगी। जीवन भर वह न जाने कहां-कहां पड़े रहे, किस-किसको पकड़े रहे! ईश्वर अब उन्हें अपने चरणों में स्थान दे!’

‘उदारवाद’ के बिना साहित्य आज अनाथ महसूस कर रहा

दूसरे वरिष्ठ उनसे भी ज्यादा आहत दिखे जो स्वर्गीय लेखक के समकालीन थे। पिछले महीने ही ‘पचहत्तर पार’ का उत्सव मनाया था। उन्होंने कहा, ‘मेरा उनसे गहरा लगाव था। जब वह नवोदित लेखक थे तब मेरे ही किरायेदार थे। किराया तो छोड़िए, हमने कभी भी उनको उधारी देने से मना नहीं किया। मांगने के मामले में वह शुरू से ही उदार थे। यहीं से साहित्य में ‘उदारवाद’ की नींव पड़ी। ऐसी पूंजी के बिना साहित्य आज स्वयं को अनाथ महसूस कर रहा है।’

प्रिय लेखक की याद में ‘लेखक उठाओ सम्मान’

ऐसे-ऐसे संस्मरण पढ़कर साधक जी घबराने लगे। नवोदित कवि को तो वह निपटा चुके थे, पर ये तो उनकी ही तरह प्रतिभा से ‘लैस’ थे। उन्होंने अतिरिक्त दुख से आखिरी वार किया, ‘अपने प्रिय लेखक की याद में हम हर वर्ष ‘लेखक उठाओ सम्मान’ देंगे। इसके लिए हमारे साहित्यिक गिरोह के दस सदस्य त्याग के लिए तैयार हैं। ये अगले दस वर्षों तक एक-दूसरे को यह सम्मान लेते-देते रहेंगे। इससे साहित्य में सद्भाव भी बना रहेगा। जीवन भर उनको जो सम्मान नहीं मिले, हम सब उन्हें हथियाने का संकल्प लेते हैं। उस पुण्यात्मा के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।’

लेखक जी की ‘मौत’ को साधक जी ने सुपरहिट कर दिया

साधक जी ने ‘मौत’ को सुपरहिट कर ही दिया। उधर लेखक जी की आत्मा स्वर्ग से यह देखकर तड़प रही थी कि आभासी दुनिया में मिले इतने ‘सम्मान’ को काश उनकी रूह भी ‘लाइक’ कर पाती!

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]