[ निर्मल गुप्त ]: एक लंबी चुनावी चकल्लस के बाद आखिरकार मतदान भी संपन्न हो लिया। ऐसे तो मुल्क में जाने क्या-क्या होता ही रहता है। वैसे अखिल भारतीय स्तर पर डिजिटल वोटतंत्र का यह शून्यकाल चल रहा है। चले ही जा रहा है। चारों ओर जीरो ऑवर नामक रहस्यमय शांति छाई हुई है। इसे चाहें तो तूफान आने से पहले का ऑर्गेनिक सन्नाटा भी कह सकते है। एक ओर लोकतंत्र के चूल्हे पर बीरबल की खिचड़ी निर्विघ्न पक रही है। बतकही में तो चुनावी नतीजे लगभग आ ही चुके हैं, पर वे अभी आधिकारिक रूप से प्रकट होने शेष हैं।

वैज्ञानिक सोच के अनुसार जब तक कुछ इधर से उधर नहीं होता, तब तक कार्य का संपन्न हो जाना नहीं माना जाता। जनता रहीम की तरह चुपचाप बैठी दिनन के फेर देख रही है। सबको पता है कि चुनाव भी राजकाज का हिस्सा ही है और इसमें कोई काज कभी तुरत-फुरत नहीं होता। वे जब होते हैं पूरे विधि-विधान के साथ होते हैं। बड़ी नजाकत के साथ, हौले -हौले। अनेक चरणों में। जैसे बिल्ली धीरे-धीरे चूहे को दबोचने के लिए चुपचाप आगे बढ़े। जैसे दुल्हन विवाह मंडप की ओर दूल्हे के गले में वरमाला डालने चले। नेपथ्य में गीत बज उठे ‘बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है।’ और पार्श्व में कोई गाए ‘चल-चल रे नौजवान चल।’

एक्जिट पोल के परिणाम भी समय रहते आ चुके हैं। 50 प्रतिशत कौतुहल का निबटारा हो लिया है। शेष जो बचा है, उसमें थोड़ा गम है, थोड़ी खुशी है और बहुतायत में खीझ है। अंदर की बात यह है कि सात तालों में रखीं ईवीएम मारे डर के थर-थर कांप रही हैं। उसे अपने संभावित चरित्र हनन की चिंता सता रही है। उनके भीतर से तयशुदा समय पर जो कुछ निकलेगा वह तो निकलेगा ही पर उससे पहले तो उनमें से मासूम आहें निकल रही हैं।

अनजाने भय से थरथराती एक ईवीएम ने दूसरी ईवीएम से पूछा, क्या तेरे पास ब्ल्यू टूथ है?

-मेरे पास नीला या पीला या किसी भी तरह का कोई दांत नहीं। सिर्फ टेक्नोलॉजी है। तुरंत जवाब आया।

-वाईफाई का कोई संपर्क सूत्र? जिरह जारी रही।

-नहीं, मेरे आसपास सिर्फ घटाटोप अंधेरे का आलम है। इतनी ठंड है कि दांत किटकिटाने को जी चाहता है। उसने कहा।

-ओह, तो तेरे पास दांत हैं। बहस में से गोपन संकेत नमूदार हुआ।

-मैंने ऐसा कब कहा? अचरज सवाल बन गया।

-अपनी बात से पलटो नहीं। दांत हैं तभी तो तुमने उन्हें किटकिटाने की इच्छा व्यक्त की। पूछताछ आगे बढ़ी।

ईवीएम हंसी। हो -हो ,हा -हा करते हुए उसने जो किया तो लगा कि उसने ठहाका लगाया है। हालांकि उसने हंसने जैसा कोई आधिकारिक काम नहीं किया था। बस वही काम किया जो आदमी डर दूर भगाने के लिए करते हैं। ऐसी स्थिति में वे या तो हंसने का अभिनय करते हैं या गाना गाते हैं। शायद ईवीएम ने हंसी-हंसी में गाना गाकर डर से बचने की कोशिश की थी। आदमी की सोहबत ने उसे इतना तो सिखा ही दिया है।

-हंसी उड़ाकर बात को टालो मत। जो कहना हो वह दो टूक कहो। विमर्श में अब तुर्शी दिखी।

- मेरे हंसने भर से अब क्या बनने वाला है। मेरे अंतर्मन का डाटा तो जस का तस रहेगा। उसने सफाई दी।

-मूर्खतापूर्ण बातचीत तुम्हारे ‘फूलप्रूफ’ होने का सुबूत नहीं। ज्यादा नादान न बनो। आवाज में उस पुलिसिया शैली के शुरुआती संकेत दिखे जो आखिर में थर्ड डिग्री की ओर मुखातिब होते जाते हैं।

-तुमने पूछा था कि ब्ल्यू टूथ है तो मैंने कहा कि नहीं। और देखो, मेरे पास जो है, सो है ही। तुम्हारे भीतर जो है वह है। वही वक्त आने पर दिखेगा।

-मेरे पास तो स्पष्ट जनादेश है, लेकिन तुम्हारे पास क्या है। साफ-साफ बताओ?

-मेरे पास भी हॉर्स ट्रेडिंग लायक वोट तो हैं ही। हम मशीन हैं, इसलिए वही हैं जिसके लिए हमें प्रोग्राम किया गया है।

हां, यदि हम मशीन न होते तो मैं बड़े मजे से यह कहकर तुम्हारी बोलती बंद कर देती कि मेरे पास मां है।

मां का जिक्र सुनते ही पहले एक ईवीएम की आंखें नम हुईं फिर दूसरी ईवीएम की। इसके बाद गोदाम में रखी तमाम ईवीएम के इर्दगिर्द आर्द्रता का स्तर बढ़ने लगा।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]