[ प्रदीप सिंह ]: कोरोना संकट के बीच मंगलवार को प्रधानमंत्री ने देश को पांचवीं बार संबोधित किया। उनके संबोधन और हावभाव में इतने बड़े संकट से जूझते परेशान नेता का चित्र नहीं दिखा। इसके विपरीत उनकी बातें, बोलने का लहजा और भावभंगिमा बता रही थीं, बल्कि कहना चाहिए कि घोषणा कर रही थीं कि संकट से निकलने का रास्ता उन्होंने खोज लिया है। यह भी कि इतने बड़े संकट से उनका आत्मविश्वास डिगा नहीं है, बल्कि और दृढ़ हुआ है। उन्हीं के शब्दों में ‘थकना, हारना, टूटना और बिखरना मंजूर नहीं।’

प्रधानमंत्री मोदी का संकल्प संकट से भी बड़ा है

प्रधानमंत्री का संबोधन एक स्वप्नदर्शी का था। जिसमें सपने देखने और उन सपनों को साकार करने की सामर्थ्य है। जब पूरी दुनिया जिंदगी बचाने की जंग लड़ रही हो तब कोई दृढ़ इच्छाशक्ति वाला व्यक्ति ही कह सकता है कि उसका संकल्प संकट से भी बड़ा है। संकल्प की यह विराटता, संकल्प को सिद्धि में बदलने की क्षमता और विश्वास सामान्य नेता और स्टेट्समैन का फर्क बताता है। संकल्प को सिद्धि में बदलने में मोदी की महारत का ही कमाल है कि देश इतने बड़े संकट से निपटने के लिए तैयार है। कल्पना कीजिए कि यदि जनधन बैंक खाते, आधार और मोबाइल की त्रिर्मूित नहीं होती तो क्या होता? गरीबों को पैसे या तो भेज ही न पाते या भेजने का प्रयास होता भी तो पता नहीं कि वह किसकी-किसकी जेब में पहुंचता?

देश में गरीबों के लिए व्यवस्थाएं बनना  2014 से ही शुरू हुईं

यह तंज तो सही है कि देश 2014 से शुरू नहीं हुआ, पर सही यह भी है कि देश में व्यवस्थाएं बनना और खासतौर से गरीब के लिए निश्चित रूप से 2014 से ही शुरू हुईं। इससे पहले की व्यवस्था में गरीब का सिर्फ इतना स्थान था कि विकास होगा तो छनकर कुछ उसके पास भी पहुंच ही जाएगा। मोदी ने इस पूरी सोच को शीर्षासन करवा दिया। एक व्यक्ति कितना बड़ा फर्क ला सकता है इसका उदाहरण हैं, प्रधानमंत्री मोदी।

अच्छे आदमी के हाथ में राजनीति आ जाए तो अभूतपूर्व परिवर्तन हो सकते हैं

आचार्य रजनीश से एक बार किसी ने पूछा कि अच्छे आदमी के हाथ में राजनीति आ जाए तो क्या परिवर्तन हो सकते हैं? रजनीश का जवाब था, ‘अभूतपूर्व परिवर्तन हो सकते हैं। बुरा आदमी बुरा सिर्फ इसलिए होता है कि वह अपने स्वार्थ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं सोचता। अच्छा आदमी इसलिए अच्छा होता है कि वह अपने स्वार्थ पर दूसरों के स्वार्थ को वरीयता देता है। अच्छा आदमी इसलिए अच्छा है कि वह अपने लिए नहीं जीता, सबके लिए जीता है। इससे बड़ा फर्क पड़ेगा। अभी राजनीति व्यक्तियों का निहित स्वार्थ बन गई है। तब राजनीति समाज का स्वार्थ बन सकती है।’ मोदी ने यही किया है।

मोदी की अपील पर दुनिया का सबसे बड़ा लॉकडाउन सफल रहा

मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले भला आदमी होना असफलता की गारंटी बन गया था। मोदी ने इस नियम को बदल दिया। उन्होंने देश के युवाओं, शोधकर्ताओं, उद्यमियों में नवोन्मेष की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया। उद्यमिता को प्रोत्साहित और पुरस्कृत किया। नतीजा यह हुआ कि जिस देश में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की सुरक्षा के लिए जरूरी एक भी पीपीई किट नहीं बनती थी, वहां अब दो लाख पीपीई किट रोज बन रही हैंं। यह मोदी में विश्वास का ही नतीजा है कि उनकी अपील पर दुनिया का सबसे बड़ा लॉकडाउन सफल रहा। कतिपय अपवादों को छोड़कर एक सौ तीस करोड़ लोग अपने घरों में रहे।

मोदी ने कहा- कुछ राज्यों ने लॉकडाउन का ठीक से पालन नहीं कराया

पिछले करीब दो महीनो में सबसे दुखद और कई बार हृदयविदारक दृश्य प्रवासी मजदूरों के एक वर्ग की हालत का नजर आया। वे जिन राज्यों में थे वहां की सरकारें अपना दायित्व निभाने में नाकाम रहीं। मुख्यमंत्रियों से बातचीत में प्रधानमंत्री ने कहा भी कि कुछ राज्यों ने लॉकडाउन का ठीक से पालन नहीं कराया। इसी वजह से इस रणनीति में बदलाव करना पड़ा कि जो जहां है वहीं रहे।

पीएम मोदी ने कहा- गरीबों ने बहुत कष्ट झेले हैं, अब उन्हें ताकतवर बनाने का समय है

प्रवासी मजदूरों के लिए बसें और ट्रेन चलाने का फैसला करना पड़ा। सबसे ज्यादा निराश उन नियोक्ताओं ने किया जिन्होंने ज्यादातर कामगारों का न केवल मार्च का वेतन/मजदूरी रोक ली, बल्कि संपर्क भी तोड़ लिया। निराश कामगारों को घर-परिवार की याद आनी स्वाभाविक थी। इन गरीबों का दर्द प्रधानमंत्री के इन शब्दों में छलका, ‘इस बड़े संकट के दौर में देश ने गरीब की संघर्ष और संयम की शक्ति के दर्शन किए। गरीबों ने बहुत कष्ट झेले हैं। अब उन्हें ताकतवर बनाने का समय है।’

पीएम ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज घोषित किया

प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बीस लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। विभिन्न क्षेत्रों से जो मांग थी उससे ज्यादा। प्रधानमंत्री ने भविष्य की आर्थिक नीति का नया स्वरूप और रोडमैप भी बताया। उन्होंने यह साफ किया कि इस संकट से निकलने का एक ही रास्ता है-आत्मनिर्भर भारत। आत्मनिर्भरता के लिए जरूरी है कि लोकल उत्पादों के लिए देशवासी वोकल (मुखर) हों। इस लोकल को ग्लोबल बनाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि आज की वैश्विक व्यवस्था में आत्मनिर्भरता की परिभाषा बदल गई है। अर्थव्यवस्था को अर्थ केंद्रित होने के बजाय व्यक्ति केंद्रित होना पड़ेगा। पर भारत की आत्मनिर्भरता आत्मकेंद्रित नहीं होगी। इस देश की संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम की है।

आर्थिक पैकेज जीडीपी के दस फीसद के बराबर है

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के दस फीसद के बराबर आर्थिक पैकेज से उद्योग और आर्थिक जगत में उत्साह और विश्वास का माहौल बना है। संकट से निकलने के लिए इन दोनों का होना जरूरी है। वरना इससे भी बड़ा पैकेज प्रभावी नहीं हो पाएगा। आर्थिक संकटों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि जिस देश के लोगों में उनसे निकलने का विश्वास था वही पहले निकले। विश्वास नहीं होगा तो जिसके पास पैसा है वह खरीदने नहीं निकलेगा। इससे मांग घटेगी और फिर अर्थव्यवस्था एक दुष्चक्र में फंस जाएगी।

भूमि और श्रम कानून में सुधार रखेंगे देश की नई अर्थव्यवस्था की नींव

पैकेज के साथ प्रधानमंत्री ने भूमि, श्रम कानून में सुधार की बात की है। ये सुधार नई अर्थव्यवस्था की नींव रखेंगे। इसके बावजूद निंदा तो होगी ही। वह शुरू भी हो गई है। इस बारे में हरिशंकर परसाई ने लिखा है, ‘कुछ लोगों को जानता हूं जो सारा काम छोड़कर मेरी निंदा में लगाते हैं और खुश रहते हैं। उन्हेंं मैं खुश रहने देता हूं। अगर सूअर मैला खाकर परम आनंद अनुभव करता है तो मैं उसे फल खाने की सलाह देकर उसका मजा किरकिरा नहीं करना चाहता। दुख इतना ही है कि दिन भर मैले की तलाश में रहकर सूअर कोई रचनात्मक काम नहीं कर पाता।’ ध्यान रहे आलोचना निंदा नहीं है। परसाई के ही शब्दों में आलोचना स्वस्थ्य प्रवृत्ति है और निंदा कैंसर है।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)