[रमेश कुमार दुबे]। बीते दिनों मोदी सरकार ने कृषि क्षेत्र में उदारीकरण लागू करने के लिए दो अध्यादेशों को मंजूरी दी। कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) कानून में संशोधन संबंधी अध्यादेश से अब किसान बिचौलियों के बिना सीधे अपनी उपज बेच सकेंगे। दूसरे शब्दों में किसानों के लिए अब एक देश एक बाजार की अवधारणा साकार हो गई है। आवश्यक वस्तु अधिनियम और मंडी कानून में संशोधन से कृषि उत्पादों के भंडारण की सीमा खत्म कर दी गई है।

ध्यान रहे कोरोना संकट के चलते दबाव में आई खेती-किसानी को उबारने के लिए केंद्र सरकार ने कृषि और सहायक गतिविधियों हेतु पैकेज का जो एलान किया था उसमें कृषि उपज के रखरखाव, भंडारण, विपणन संबंधी बुनियादी ढांचा बनाने के लिए एक लाख करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान है। इसके अलावा मछलीपालन, पशुपालन, हर्बल की खेती आदि को बढ़ावा देने के लिए पैकेज घोषित किए गए हैं। इस प्रकार कुल 1.63 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। सबसे अहम सुधार है कृषि क्षेत्र में बाजार अर्थव्यवस्था का आगाज। इसमें आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन, कृषि उपज की अंतरराज्यीय व्यापार बाधाओं को दूर कर ई-ट्रेडिंग को बढ़ावा देने जैसे उपाय शामिल हैं ताकि किसान अपनी उपज कहीं भी बेच सकें।

किसान अपनी उपज बेचने के लिए आजाद नहीं

कृषि उपज की बिक्री में सबसे बड़ी बाधा 1953 का कृषि उपज विपणन समिति यानी एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी संबंधी कानून है। इसके तहत किसान अपनी उपज बेचने के लिए आजाद नहीं। उसे बिचौलियों-आढ़तियों को सहारा लेना ही होगा। इस कानून के कारण न तो नए व्यापारियों को आसानी से लाइसेंस मिलते हैं और न ही किसी नई मंडी का निर्माण हो पाता है। मौजूदा मंडियों को भी न केवल अलग-अलग लाइसेंस की जरूरत होती है, बल्कि उनकी फीस भी अलग-अलग होती है। तकनीक के कम इस्तेमाल के चलते कारोबार में पारदर्शिता भी नहीं।

एक से दूसरे राज्य की मंडी में बेचना कठिन

2004 में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि 80 वर्ग किमी में एक मंडी होनी चाहिए, जबकि उस समय 487 वर्ग किमी पर एक मंडी थी। मंडियों की जटिलता के कारण कृषि उपज को दूसरे देश में निर्यात करना आसान है, लेकिन एक से दूसरे राज्य की मंडी में बेचना कठिन। यही कारण है कि किसान से उपभोक्ता तक पहुंचने में हर उपज को पांच-छह बिचौलियों से होकर गुजरना पड़ता है।

मॉडल एपीएमसी कानून बनाया गया

राजग सरकार ने 2003 में एपीएमसी कानून में संशोधन कर मॉडल एपीएमसी कानून बनाया था। यह कानून निजी और कॉरपोरेट घरानों को विपणन नेटवर्क स्थापित करने की अनुमति देता है, लेकिन राजस्व नुकसान और आढ़तियों की मजबूत राजनीतिक लॉबी के चलते अधिकतर राज्यों ने अपने एपीएमसी कानून में संशोधन नहीं किया। इसके बाद से कई बार मंडी कानून में संशोधन के लिए मॉडल मंडी कानून राज्यों को भेजा गया, लेकिन राज्यों का रवैया जस का तस रहा। बाद में मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में एपीएमएसी कानून में संशोधन किए गए। अब अध्यादेश के बाद व्यापारी देश में कहीं भी सीधे किसानों से उपज खरीद सकेंगे। इससे न सिर्फ अंतरराज्यीय व्यापार की सीमा खत्म होगी, वरन इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना यानी ई-नाम में तेजी आएगी।

एक लाख करोड़ रुपये की उपज बेची गई

2016 में शुरू इस योजना से अब तक 1.66 करोड़ किसान, 1.31 लाख व्यापारी, 73151 कमीशन एजेंट और 1012 किसान उत्पादक संघ जुड़ चुके हैं। 14 मई, 2020 तक किसान इसके जरिये एक लाख करोड़ रुपये की उपज बेच चुके हैं। आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन भी अहम सुधार है। यह तब बना था जब देश में खाद्यान्न का संकट था, पर अब कुदरती आपदाओं के चलते कभी-कभार होने वाली आलू-प्याज की कमी को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर कृषि उत्पादों के मामले में आधिक्य की स्थिति रहती है।

खेती में बढ़ेगा निवेश

इसीलिए इस अधिनियम के दायरे से दलहनी-तिलहनी फसलों और आलू-प्याज को बाहर करने की घोषणा की गई। अब इन उपज के मामले में भंडारण सीमा खत्म कर दी गई है। इससे न केवल किसानों को बेहतर कीमत मिलेगी, बल्कि खेती में निवेश भी बढ़ेगा। इसी तरह सरकार ने अनुबंध कृषि अध्यादेश जारी किया है, जिसके तहत किसान की जमीन पर कोई कब्जा नहीं कर पाएगा। खरीदार और विक्रेता के बीच कोई विवाद होने पर विक्रेता किसान की जमीन जब्ती का फैसला अवैध होगा। फिलहाल अनुबंध कृषि पर एक मॉडल अधिनियम है, लेकिन बहुत कम राज्यों ने इसे लागू किया है। घरेलू कृषि उत्पादों को ब्रांड बनाने और दुनिया भर के बाजारों में पहुंचाने के लिए चुनिंदा कृषि उत्पादों के लिए क्लस्टर बनाए जाएंगे जैसे उत्तर प्रदेश में आम, बिहार में मखाना, जम्मू-कश्मीर में केसर।

एक देश-एक बाजार का सपना होगा साकार

किसानों को अपनी उपज बेचने में परेशानी न हो, इसके लिए ऑपरेशन ग्रीन का दायरा बढ़ाकर सभी फसलों तक कर दिया गया है। इसके तहत अब 50 प्रतिशत सब्सिडी माल ढुलाई में और 50 प्रतिशत सब्सिडी कोल्ड स्टोरेज में भंडारण पर दी जाएगी। भले ही केंद्र सरकार ने अध्यादेश जारी कर दिया हो, लेकिन इस राह में बाधाएं भी कम नहीं हैं। सबसे बड़ी बाधा है संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत कृषि का राज्यों का विषय होना। चूंकि कृषि उपज मंडियां राज्यों के लिए कमाऊ पूत हैं इसलिए वे आसानी से अपना कब्जा नहीं छोड़ेंगे। इन सबके बावजूद उम्मीद की किरण यह है कि संविधान के अनुसार कृषि कारोबार के नियम बनाने का अधिकार केंद्र के पास है। यदि इन प्रगतिशील सुधारों को लागू करने में राज्यों का सहयोग मिला तो न सिर्फ एक देश-एक बाजार का सपना साकार होगा, बल्कि गांवों की दुनिया बदल जाएगी। सबसे बढ़कर खेती-किसानी कर्जमाफी की चुनावी बीमारी से मुक्त हो जाएगी।

(लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी हैं)