लखनऊ, सद्गुरु शरण। जामो (अमेठी) की मां-बेटी सोफिया और गुड़िया की दर्दनाक कहानी संकेत देती है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति का हताश खेमा गहरे अवसाद में डूबकर अब आग लगाने के खेल पर उतर आया है। लखनऊ में तीन दिन पहले शाम को मुख्यमंत्री कार्यालय (लोक भवन) के सामने विधानसभा मार्ग पर दो महिलाएं अपने शरीर में आग लगाकर दौड़ने लगीं। कुछ ही क्षण में इनमें एक महिला खुद को लपटों से मुक्त करके दूसरी महिला को बचाने का प्रयास करने लगी। कुछ राहगीर भी मदद को आए, पर तब तक वह महिला बुरी तरह जलकर सड़क पर गिर गई। दोनों को तुरंत अस्पताल ले जाया गया।

कुछ देर बाद पता चला कि ये अमेठी जिले की मां-बेटी हैं जिन्होंने दबंगों की प्रताड़ना और पुलिस के असहयोग से आजिज आकर आत्मदाह का प्रयास किया। बाद में पता चला कि विवाद की जड़ दो पड़ोसियों का नाली का झगड़ा है। पहली नजर में ही मामला संदिग्ध प्रतीत होने लगा। नाली के झगड़े में मुख्यमंत्री कार्यालय के सामने आत्मदाह करने का फैसला अस्वाभाविक लगने लगा। बहरहाल कई वजहों से प्रकरण को संवेदनशील मानते हुए शासन ने तुरंत संबंधित थाने के चार पुलिसकíमयों को निलंबित कर दिया। इसके बाद गुड़िया से पूछताछ और छानबीन से हादसे के पीछे की जो साजिश सामने आई, वह शर्मनाक और चिंताजनक है।

पड़ोसी से नाली के झगड़े में पुलिस का सहयोग न मिलने से परेशान मां-बेटी को अमेठी के दो नेताओं ने मुख्यमंत्री कार्यालय के सामने आत्मदाह करने के लिए उकसाया। इनमें एक जिला कांग्रेस का पूर्व प्रवक्ता, जबकि दूसरा एआइएमआइएम का जिला अध्यक्ष है। पुलिस ने दोनों को जेल भेज दिया है। सोफिया बुरी तरह जल चुकी हैं। डॉक्टर उनकी जीवनरक्षा का प्रयास कर रहे। यूपी की सियासत पिछले कुछ महीनों से आग से खेलने की शौकीन हो गई है। मौजूदा घटना में पात्रों और स्थान का चयन सोच-समझकर किया गया ताकि मामले को तूल दिया जा सके, पर मां-बेटी के जिंदा बच जाने से साजिश का भंडाफोड़ हो गया। इससे पहले दिसंबर में भी राजधानी की सड़कों पर आग का खेल हुआ था और उपद्रवियों ने बच्चों-महिलाओं को आगे करके शहर को आग की लपटों में झोंक दिया था। कुछ दिन बाद इस हिंसा में भी बड़ी साजिश सामने आई थी।

यूपी की सरकार को बदनाम करने के लिए दिल्ली और बंगाल समेत देश के कई स्थानों से गुंडे-अपराधी बुलाकर लखनऊ में आग लगाई गई थी। इसमें भी प्रदेश के राजनीतिक दलों की भूमिका पर अंगुलियां उठी थीं। इस प्रकरण में आरोपित एक सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी के घर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी भी पहुंची थीं। बाकी गैर-भाजपा दलों की भी प्रतिक्रिया उपद्रवियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण थी।

देश के सबसे बड़े राज्य में विपक्षी राजनीति का यह चेहरा भयभीत और चिंतित करने वाला है। सोफिया और गुड़िया जैसे भोले-भाले लोग समझ ही नहीं पाते कि वे कितनी बड़ी साजिश का मोहरा बन गए। यूपी की राजनीति पिछले तीन दशकों से वेाटबैंक के आधार पर टिकी थी। 2014 के बाद केंद्र सरकार की योजनाओं ने जब 2017 विधानसभा चुनाव में वोटबैंक की परंपरागत किलेबंदी में दरारों के संकेत दिए तो इस राजनीति के आदी दलों में हड़कंप मच गया। 2017 के बाद यूपी सरकार भी केंद्र के ही र्ढे पर चलने लगी आर जाति-धर्म विशेष के तुष्टीकरण के बजाय हर जाति और हर धर्म के गरीबों को केंद्र में रखकर कल्याणकारी योजनाएं बनने लगीं जिसका व्यापक प्रभाव 2019 लोकसभा चुनाव में दिखा।

अभेद्य मानी जाने वाली सपा-बसपा जुगलबंदी के बावजूद भाजपा ने शानदार जीत हासिल करके विपक्षी खेमे में खलबली पैदा कर दी। विपक्ष इसलिए भी चिंतित है कि तीन तलाक, धारा 370 और राम जन्मभूमि फैसलों को सभी सामाजिक वर्गो ने स्वीकार कर लिया। स्थानीय वर्गो का सहयोग न मिलने के कारण ही लखनऊ में दिल्ली और बंगाल से अराजक तत्व बुलाकर दंगा करवाया गया। दो साल बाद यूपी विधानसभा चुनाव होंगे। लंबे समय से फुर्सत में बैठे नेताओं की परेशानी समझी जा सकती है। भाजपा जो वादे करके केंद्र और राज्य में सत्तासीन हुई थी, उनमें अधिकतर पूरे किए जा चुके हैं जबकि बाकी प्रक्रियाधीन हैं। तमाम चुनौतियों के बावजूद मोदी-योगी की जोड़ी इसलिए लोकप्रिय है, क्योंकि आम आदमी को इन दोनों नेताओं की मंशा पर रत्तीभर संदेह नहीं है। यूपी में किसानों और सभी धर्म-जातियों के लोगों के लिए जो कार्य हुए, वे अभूतपूर्व हैं।

[स्थानीय संपादक]