इसके पूरे आसार हैं कि गुलाम कश्मीर में आतंकियों के ठिकानों पर भारतीय सेना के हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते नए समीकरणों पर चलने शुरू होंगे। इस सटीक सैन्य अभियान के जरिये भारत ने पाकिस्तान को यह संदेश कहीं अधिक ऊंचे स्वरों में सुना दिया है कि भारत न केवल इस तरह के हमले करने में सक्षम है, बल्कि वह अनंतकाल तक पाकिस्तान की भारत विरोधी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेगा। कई दशकों बाद यह पहला अवसर है जब भारत ने पाकिस्तान को इतना स्पष्ट संदेश सुनाया है। इस्लामाबाद को कम से कम अब तो यह समझ ही लेना चाहिए कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते। यह एक बहुत बड़ी बात है कि भारत ने यह साबित करने में संकोच नहीं किया कि वह सीमा पार कर आतंकियों के ठिकानों पर हमले करने में सक्षम है। भारत का इरादा यह जाहिर करने का भी था कि चूंकि पाकिस्तान अपने स्तर पर पीओके में चल रहे आतंकी कैंपों पर काबू नहीं पा सका अथवा उसकी ऐसा करने की कोई इच्छा ही नहीं है इसलिए यह जिम्मेदारी भारत की है कि वह इन शिविरों में चल रही भारत विरोधी गतिविधियों को समाप्त करे। आखिरकार यह भारत का ही इलाका है।
भारत अब तक अगर पाकिस्तान के प्रति नरमी दिखाता रहा है तो इसकी सबसे बड़ी वजह उसकी सहनशक्ति थी और यह उम्मीद भी कि एक न एक दिन पाकिस्तान को दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्तों की अहमियत समझ आ जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भारत की हर सरकार ने पाकिस्तान की तरफ यही सोचकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, लेकिन हर बार भारत को धोखा ही मिला। चूंकि पाकिस्तान ने भारत की इस सदाशयता को उसकी कमजोरी समझा इसलिए वह आतंकवाद के माध्यम से बार-बार भारत को रक्तरंजित करने की अपनी नीति पर आगे बढ़ता रहा। पहले पाकिस्तान में पले-बढ़े आतंकवादी घुसपैठ कर नागरिक ठिकानों को निशाना बनाते थे और निदरेष लोगों की जान लेते थे, लेकिन पिछले कुछ समय में उनकी हिम्मत इतनी बढ़ गई कि वे भारत के सैन्य ठिकानों पर हमले करने लग गए। यह भारत विरोधी आतंकी संगठनों और उनका पालन-पोषण करने वाली पाकिस्तानी सेना तथा आइएसआइ के दुस्साहस की पराकाष्ठा थी। पहले पठानकोट और फिर उड़ी में इस दुस्साहस का प्रदर्शन किया गया। यह आवश्यक था कि आतंकियों और उनके आकाओं के इस दुस्साहस का दमन किया जाता।
भारत ने सीमा पार अपनी सैन्य कार्रवाई से पाकिस्तान के इस अहंकार को भी तोड़ दिया है कि उसके नाभिकीय हथियारों के डर के कारण भारतीय सेना इस तरह का कोई अभियान छेड़ने के पहले सौ बार सोचेगी। सच यह है कि भारत को एक बार भी सोचने की जरूरत नहीं थी। वह तो अपने संयम और सहनशीलता के कारण अब तक बातचीत के जरिये पाकिस्तान पर दबाव डालने की कोशिश में लगा रहा। यह काम अभी भी किया जाएगा और शायद यही सबसे अच्छा तरीका है। यह कतई अनायास नहीं है कि पाकिस्तान को सही रास्ते पर लाने के लिए भारत ने सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार आरंभ कर दिया है। पिछले दिनों इस संधि की समीक्षा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं। इसी के तहत भारत ने इस संधि के जरिये अपने हिस्से के पानी का अधिकतम इस्तेमाल करने की बात कही है। यह भारत का अधिकार है और अगर इतना ही काम सही तरह से किया जा सका तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा। इतना ही नहीं भारत ने पाकिस्तान को व्यापार में तरजीही राष्ट्र का जो दर्जा दे रखा है उसकी समीक्षा भी की जानी है। अब तक पहली समीक्षा बैठक हो भी गई होती, लेकिन पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक के कारण इसे अगले सप्ताह के लिए टाल दिया गया। देर-सबेर पाकिस्तान को यह दर्जा गंवाना होगा और यह भी उसकी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका होगा।
इसी तरह पाकिस्तान में नवंबर में होने जा रहे दक्षेस शिखर सम्मेलन से जिस तरह भारत के साथ-साथ बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और श्रीलंका ने अपने आप को अलग कर लिया और नेपाल ने भी यह कहा कि मौजूदा माहौल इस सम्मेलन के आयोजन के अनुकूल नहीं है उससे पाकिस्तान को क्षेत्रीय स्तर पर भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ी है। एक देश के लिए इससे अधिक शर्मनाक और क्या हो सकता है कि उसके पड़ोसी देश उससे संपर्क न रखना चाहें। पाकिस्तान को अब अपनी रीति-नीति पर नए सिरे से विचार करना होगा, क्योंकि भारत की तरह बांग्लादेश और अफगानिस्तान ने भी उस पर यह आरोप लगाया है कि वह उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है। यह पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा झटका है। उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो कूटनीतिक झटके लग रहे हैं वे उस दर्द से कहीं ज्यादा हैं जो भारत की सैन्य कार्रवाई से उसे हुआ होगा। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के कश्मीर राग को किसी ने नहीं सुना। लेकिन इसी महासभा में भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपने संबोधन से पाकिस्तान के सभी दावों को तार-तार कर दिया। सुषमा स्वराज ने स्पष्ट शब्दों में दुनिया को बताया कि एक देश ने किस तरह आतंकियों का शौक पाल लिया है। उनका इशारा साफ रूप से पाकिस्तान की तरफ था। उन्होंने दुनिया से ऐसे देशों का बहिष्कार करने की अपील की जो मानवता के शत्रु आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं। इसके साथ ही भारत ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र के मंच से बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना की ज्यादतियों की ओर दुनिया का ध्यान दिलाया।
अब यह साफ है कि भारत ने कई स्तर पर और कई मोर्चो के जरिये पाकिस्तान को घेरने का फैसला कर लिया है। अच्छी बात यह है कि मौजूदा समय लगभग पूरी दुनिया आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ है। चीन और अमेरिका की प्रतिक्रिया भी भारत के पक्ष में ही है। दोनों देशों ने भारत और पाकिस्तान से तनाव घटाने की अपील की। इस अपील में ऐसा कुछ नहीं है जिससे यह प्रतीत हो कि अमेरिका और चीन भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। चीन पाकिस्तान का करीबी मित्र रहा है, लेकिन मौजूदा हालात में वह भारत के खिलाफ कितनी दूर तक जा सकता है, यह सोचने वाली बात है। आर्थिक कारणों से भी चीन ज्यादा आक्रामक रुख नहीं दिखा पाएगा और रणनीतिक कारणों से भी। वह खुद दक्षिण चीन सागर में घिरा हुआ है। इन सब को देखते हुए इसके आसार कम ही हैं कि वह पाकिस्तान के पक्ष में खुलकर बोलेगा-इस्लामाबाद में बैठे लोग चाहे जैसे दावे क्यों न करें। अब पाकिस्तान की सेना और सरकार भारत की कार्रवाई के बाद सोच-विचार कर रही होंगी। अच्छा हो कि वे इस सोच-विचार के बाद सही नतीजे पर पहुंचें।

[लेखक शशांक, पूर्व विदेश सचिव हैं]