[ विवेक कौल ]: अर्जित पटेल थोड़ा कम बोलते हैं। जितने दिन वह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे उन्होंने बहुत कम भाषण दिए और किसी भी प्रेस कांफ्रेंस को 15-20 मिनट से अधिक नहीं चलने दिया। इसलिए यह आश्चर्र्य की बात बिल्कुल भी नहीं थी कि इस्तीफे संबंधी उनका बयान बहुत ही छोटा था? इस बयान में उन्होंने देश को यही बताया कि वह रिजर्व बैंक के गवर्नर पद को व्यक्तिगत कारणों से तत्काल प्रभाव से छोड़ रहे हैं। यह बात तो जगजाहिर ही है कि जब लोग वरिष्ठ पदों से इस्तीफा देने की वजह व्यक्तिगत बताते हैं तो अमूमन वजह कुछ और ही होती है। उर्जित पटेल के मामले में रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के बीच चल रही रस्साकशी थोड़ी अधिक चल गई थी इसलिए पटेल ने रिजर्व बैंक छोड़ना ही ठीक समझा।

उर्जित पटेल के पद छोड़ते ही सरकार ने एक दिन के अंदर शक्तिकांत दास को रिजर्व बैंक का गवर्नर नियुक्त कर दिया। दास आइएएस अफसर रह चुके हैं और मई 2017 में सेवामुक्त होने से पहले वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के सचिव थे। यह पहली बार नहीं है कि वित्त मंत्रालय से कोई रिजर्व बैंक गया हो। इससे पहले कई गवर्नर, जैसे बिमल जालान, वाईवी रेड्डी, डी सुब्बाराव भी वित्त मंत्रालय में सचिव रह चुके हैं। गौरतलब है कि रघुराम राजन गवर्नर बनने से पहले वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार थे। इसलिए वित्त मंत्रालय से रिजर्व बैंक जाने की परंपरा रही है। इससे दो चीजें पता चलती हैैंं-एक आइएएस लॉबी की सरकार पर पकड़ और दूसरी हर सरकार की यह चाह कि गवर्नर किसी ऐसे आदमी को बनाया जाए जो सरकारी महकमों का ख्याल रख सके।

एक जमाना था जब रिजर्व बैंक के अधिकतर गवर्नर वित्त मंत्रालय से ही आते थे। दास की नियुक्ति भी कुछ ऐसी ही वजहों से देखी जा रही है। पिछले दो गवर्नरों से सरकार की पटी नहीं। रघुराम राजन को मनमोहन सिंह सरकार ने नियुक्त किया था, परंतु उर्जित पटेल नरेंद्र मोदी सरकार की नियुक्ति थे। शक्तिकांत दास की नियुक्ति करकेसरकार जैसा कि अंग्रेजी में कहते हैं, एक ‘नोन डेविल’ के साथ जाना चाहती है। इसलिए 20 साल में पहली बार एक ऐसे आदमी की रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में नियुक्ति हुई है जिसके पास अर्थशास्त्र में पीएचडी नहीं है। शक्तिकांत दास की शिक्षा इतिहास में एमए तक हुई है। एक जमाने में विश्वभर में ज्यादातर केंद्रीय बैंकों को नौकरशाह ही चलाया करते थे, परंंतु अब वह जमाना लद गया है। आज विशेषज्ञता का जमाना है। दास को रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाकर मोदी सरकार इस नए जमाने के खिलाफ जा रही है।

भारत के पिछड़े रहने की एक बड़ी वजह उसके नौकरशाह हैैं जो एक परीक्षा पास करने के बाद अगले तीन से चार दशकों तक देश को चलाते हैं। यह प्रवृत्ति ब्रिटिश राज के जमाने से चली आ रही है। अंग्रेजों को देश भर में जिला चलाने के लिए प्रशासक चाहिए थे। इसलिए नौकरशाहों का थोड़ा बहुत हरफनमौला होना चल जाता था, लेकिन आज के जमाने में भारत की जटिल समस्याओं को सुधारने के लिए विशेषज्ञता की जरूरत है। फिर चाहे वह रिजर्व बैंक का गवर्नर हो या फिर किसी जिले का जिलाधिकारी। अगर इसे बिल्कुल ही सरल भाषा में कहा जाए तो जब आपके कान में दर्द होता है तो तब आप दांत के डॉक्टर के पास नहीं जाते।

यहां एक समस्या यह भी है कि काफी अर्थशास्त्रियों ने मोदी सरकार का साथ छोड़ा है। रघुराम राजन और उर्जित पटेल के अलावा इस फेहरिस्त में अरविंद पानगड़िया, अरविंद सुब्रमण्यम और सुरजीत भल्ला भी शामिल हैं। इसकी वजह से यह भी कहा जा सकता है कि अर्थशास्त्रियों में मोदी सरकार के लिए काम करने को लेकर अधिक उत्साह नहीं है। शक्तिकांत दास के खिलाफ एक नकारात्मक कारक यह भी है कि वह विमुद्रीकरण के दौरान आर्थिक मामलों के सचिव थे। नोटबंदी के दौरान विभिन्न संवाददाता सम्मेलनों मेंं उन्होंने विमुद्रीकरण का जमकर समर्थन किया था। सेवानिवृत्ति के बाद भी यह समर्थन चलता रहा। अब विमुद्रीकरण के दो साल बाद उनके उस वक्त के कई बयान हास्यास्पद नजर आते हैैं।

किसी भी देश के लिए यही अच्छा होता है कि उसके केंद्रीय बैंक और वित्त मंत्रालय में थोड़ी बहुत रस्साकशी बनी रहे। इससे अर्थव्यवस्था को फायदा होता है। सरकारें हमेशा यह चाहती हैं कि केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को घटाए रखे, परंतु केंद्रीय बैंक को यह भी देखना पड़ता है कि अगर ब्याज दरें हमेशा कम रहेंगी तो पर्याप्त मात्रा में बचत नहीं होगी और अगर बचत नहीं होगी तो फिर पूंजी निवेश के लिए पैसा कहां से आएगा? रिजर्व बैंक के नए गवर्नर को यह भी ध्यान रखना है कि आज की दुनिया एक वैश्वीकृत दुनिया है।

अगर रिजर्व बैंक ब्याज दरों को घटाता है, जैसा कि सरकार चाहती है तो इससे शायद भारतीय कंपनियों को थोड़ा-बहुत फायदा होगा, लेकिन इससे विदेशी निवेशकों की भारतीय ऋण बाजार से पैसा निकालने की आशंका बढ़ जाती है। जब विदेश निवेशक बहुत सारा पैसा निकाल कर भारत से बाहर ले जाएंगे तो डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य गिरने की आशंका बढ़ जाएगी। इसका अपना प्रभाव होगा। साफ है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर को इन सारे अंदेशों को दिमाग में लेकर चलना पड़ता है। वह आंख मूंद कर सरकार के लिए बल्लेबाजी नहीं कर सकता।

अभी नए गर्वनर के रुख-रवैये को लेकर काफी अस्पष्टता है। वैसे ऐसी अस्पष्टता का सामना नौकरशाह अमूमन नहीं करते हैं और यहां पर अर्थशास्त्र की उचित शिक्षा भी महत्वपूर्ण हो जाती है। जैसा कि पहले कहा, शक्तिकांत दास इतिहास के छात्र हैैं इसलिए उन्हें अपने डिप्टी गवर्नरों पर काफी भरोसा करना पड़ेगा। इस भरोसे को बनाने के लिए उन्हें पहले डिप्टी गवर्नरों के साथ एक विश्वास का स्तर बनाना पड़ेगा। अगले कुछ दिनों में यह उनका सबसे जरूरी काम होना चाहिए। चूंकि दास अर्थशास्त्री नहीं हैैं इसलिए यह बहुत जरूरी है कि रिजर्व बैंक में जो विशेषज्ञता है वह उसका अच्छी तरह से इस्तेमाल करें।

और अंत में उनकी नियुक्ति को थोड़ी आशावादी नजरों से भी देखना जरूरी है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद उस पर बैठे व्यक्ति से बड़ा होता है। शक्तिकांत दास के लिए यह समझना सबसे जरूरी है। इस पद पर बैठने के बाद एक गवर्नर को यह समझना भी जरूरी होता है कि वह जो निर्णय लेगा या नहीं लेगा उससे ही उसकी विरासत बनेगी। इतिहास गवाह है कि विरासत बनाने का जो डर होता है वह गवर्नर के लिए एक प्रेरक शक्ति बन जाती है और रिजर्व बैंक के गवर्नर को ऐसे निर्णय लेने पर मजबूर करता है जो दीर्घावधि तक देश के लिए अच्छा हो, न कि सिर्फ सरकार के लिए। अब बस यही उम्मीद है कि दास भी इसी नजरिये के हामी हों।

( लेखक ‘इजी मनी ट्राइलॉजी’ केरचनाकार हैैं )