सूडान से संबंधित क्या हैं भारत के व्यापारिक हित जो वहां राजनीतिक स्थिरता चाहते हैं
आज अधिकांश देशों के बीच वस्तुओं के आयात-निर्यात का प्रमुख माध्यम समुद्री मार्ग है। स्वेज नहर भूमध्य सागर और हिंद महासागर को जोडऩे के कारण सूडान की स्थिति भारत के व्यापार संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है। ऐसे में इस देश में राजनीतिक स्थिरता का होना हमारे लिए आवश्यक है
हिरक ज्योति दास । आज भारत समेत विश्व के अधिकांश देशों के बीच वस्तुओं के आयात-निर्यात का प्रमुख माध्यम समुद्री मार्ग है। इसलिए समुद्री मार्ग के सुरक्षित होने की महत्ता निरंतर बढ़ती जा रही है। भारत के हितों के संदर्भ में सूडान में जारी राजनीतिक घटनाक्रम को देखा जाए तो भौगोलिक रूप से वह स्वेज नहर और भूमध्य सागर एवं हिंद महासागर को जोडऩे के कारण भारत के व्यापार संबंधों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने की भारत की नीति में सूडान समेत नाइजीरिया और अंगोला उसके अभिन्न अंग हैं, जिनके साथ संबंध विकसित करके उस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
इस संबंध में उल्लेखनीय यह भी है कि सूडान को भारत ने राजनीतिक और राजनयिक समर्थन दिया है, जिससे उसे ऊर्जा क्षेत्र में विशेष रूप से महत्वपूर्ण पैठ बनाने की इजाजत मिली है। भारत को सूडान ने अपने प्रति पश्चिमी अलगाव और चीन के बढ़ते प्रभुत्व से उबरने के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखा है। इन घटनाक्रमों के मद्देनजर भारत ने भी सतर्क रुख बनाए रखा है और उसके सार्वजनिक बयान भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और भारतीय रणनीतिक निवेश और ऊर्जा संपत्तियों की रक्षा पर ही केंद्रित होते हैं।
हालांकि पिछले कुछ दशकों से सूडान गृह युद्ध, आतंकवाद, सामूहिक हत्याएं, विरोध-प्रदर्शन, विभाजन और तख्तापलट का गवाह रहा। मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, और खराब आर्थिक दशा ने दिसंबर 2018 से ही सूडान में विरोध प्रदर्शनों का एक ज्वार पैदा किया। लोगों के असंतोष की शुरुआत तो आर्थिक मुद्दों को लेकर हुई थी, लेकिन इसने राष्ट्रव्यापी आंदोलन का रूप धर लिया। फिर तो राष्ट्रपति उमर अल बशीर को पद से हटाए जाने एवं देश की राजनीतिक संरचना को दोबारा से गठित करने की मांग जोर-शोर से उठने लगी। अप्रैल 2019 में सेना ने अल-बशीर को गिरफ्तार कर लिया। इस घटना ने लोगों के मन में सूडान के लोकतांत्रिक एवं समृद्ध भविष्य के लिए एक उम्मीद जगा दी।
हालांकि 2019 में हुई राजनीतिक संक्रमण की प्रकिया न केवल नागरिक और सेना के बीच, बल्कि कई राजनीतिक किरदारों, पार्टियों और सशस्त्र विद्रोही समूहों के बीच प्रतिस्पर्धा से घिरी हुई है, जो खुद को नई राजनीतिक-सैन्य व्यवस्था के भीतर स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। सूडानी सेना ने अल-बशीर के निष्कासन को राजनीतिक सत्ता पर खुद के एकाधिकार के एक अवसर के रूप में देखा।
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बने प्रबल दबाव ने सेना को नागरिक और विद्रोहियों के गठबंधन फोर्सेस आफ फ्रीडम एंड चेंज (एफएफसी) को सत्ता में हिस्सा देने के लिए सहमत होने पर मजबूर कर दिया। इसी आलोक में सेना, राजनेताओं और तकनीकी विशेषज्ञों को मिला कर एक सरकार बनाई गई ताकि 2023 में होने वाले चुनावों के बाद लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया जा सके।
इस सरकार ने देश में छाए आर्थिक संकट को दूर करने के लिए मुद्रा का अवमूल्यन करने सहित कई उपाय किए। इन सबके बावजूद देश की आर्थिक स्थिति नाजुक ही बनी रही, जो 2020 में कोविड संक्रमण से और 2021 में बाढ़ से बुरी तरह तबाह हो गई। इन आपदाओं से नागरिकों को अल्पकालिक आर्थिक राहत प्रदान करने में शासन के विफल रहने, राजनीतिक संस्थानों के सुधार में देरी करने और 2019 में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की हत्या किए जाने सहित सुरक्षा बलों द्वारा किए गए दुव्र्यवहारों के मामलों में न्याय दिलाने में विलंब के लिए संक्रमणकालीन सरकार को जबरदस्त आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
इस संक्रमण काल के दौरान ही देश के विभिन्न हिस्सों में राजनीतिक और सुरक्षा अस्थिरता का दौर जारी है। सूडान की सेना डीप स्टेट का एक अभिन्न अंग है, जिसका बड़ी संख्या में उद्यमों एवं व्यापार नेटवर्क पर अपना दखल है। सेना लोकतांत्रिक परिवर्तन को लेकर काफी सतर्क है, जिसकी जिम्मेदारी का दायरा काफी विस्तृत हो सकता है।
संक्रमणकालीन सरकार की विफलताओं के बाद लोगों का उससे मोहभंग हो गया। 16 अक्टूबर को सेना के कुछ समर्थक या उसके प्रति सहानुभूति रखने वाले कुछ लोगों जिनमें कुछ असैन्य नेताओं और विद्रोही नेता भी शामिल थे, उन सबने सूडान में सैन्य शासन का आह्वान किया। इसके बाद से सैन्य शासन के पक्ष और विपक्ष में राष्ट्रव्यापी सार्वजनिक प्रदर्शनों ने देश के विभिन्न हिस्सों में बवाल कर दिया, जो वर्तमान में भी जारी है।
सूडान के नागरिक आंदोलनों के इतिहास को देखते हुए इस बात की संभावना अधिक है कि राजनीतिक-आर्थिक मामलों में सेना की भूमिका को सीमित करने के लिए जनता का दबाव आने वाले दिनों में और भी सघन होगा। ऐसे में सेना अपने राजनीतिक और वित्तीय हितों की रक्षा के प्रयासों पर फोकस करेगी। इसलिए आने वाले महीनों में राजनीतिक व्यवस्था पर दखल रखने और उसे व्यवस्थित करने में सेना की अहमियत जताने के लिए सुरक्षा संबंधी घटनाओं और नागरिक-सैन्य टकरावों की संभावना काफी अधिक है।इसलिए निकट भविष्य में, सूडान में राजनीतिक अनिश्चितता बनी रहने की संभावना है, जो उसके परिकल्पित लोकतंत्र के मार्ग को अवरुद्ध करेगी।
फिलहाल भारत ने सूडान के संदर्भ में घटनाक्रम पर नजर रखते हुए इंतजार करने की नीति अपना रखी है। वैसे भारत को इन सबके बीच वहां पर क्षमता निर्माण की परियोजनाओं को जारी रखना चाहिए। साथ ही सूडान के लोगों की मदद करने के लिए खाद्य आपूर्ति और अन्य आवश्यक वस्तुएं प्रदान करनी चाहिए तथा वहां सद्भावना कायम करने वाले उपायों को बढ़ावा देना चाहिए।
( लेखक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं)