[अवधेश कुमार]। शाहीन बाग धरना, दिल्ली में हुए दंगों और इसके पूर्व जामिया हिंसा को लेकर हुई हाल की तीन गिरफ्तारियों ने एक बार फिर इस खतरनाक सच को साबित किया है कि इनके पीछे देश विरोधी जिहादी-आतंकवादी-सांप्रदायिक शक्तियां सक्रिय हैं। दिल्ली पुलिस ने आठ मार्च को ओखला विहार के जामिया नगर इलाके से इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रॉविंस (आइएसकेपी) मॉड्यूल से जुड़े एक कश्मीरी दंपती को गिरफ्तार किया। कश्मीर निवासी जहांजेब सामी और उसकी पत्नी हिना बशीर बेग गिरफ्तार होने के पहले शाहीन बाग और जामिया के प्रदर्शन में लगातार सक्रिय थे। इसके एक दिन बाद त्रिलोकपुरी से दानिश अली नाम के एक युवा को गिरफ्तार किया गया, जो पीएफआइ का सक्रिय सदस्य है। यह भी शाहीन बाग से लेकर जामिया आंदोलन में सक्रिय था। हालांकि इसकी गिरफ्तारी दिल्ली दंगों के संदर्भ में थी। उससे पूछताछ के आधार पर पीएफआइ के अध्यक्ष परवेज अहमद और सचिव मोहम्मद इलियास को गिरफ्तार किया गया। उन पर दिल्ली दंगों को फंडिंग करने का आरोप है।

शाहीन बाग में IS जैसे संगठनों के शामिल होने की सूचना

अभी तक सामने आई जानकारी के अनुसार पुलिस को शाहीन बाग में ऐसे लोगों के शामिल होने की सूचना मिली थी जिनका संबंध आइएस जैसे संगठन से है और जो नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए विरोधी प्रदर्शनों का इस्तेमाल मुस्लिम युवाओं को भड़काकर हिंसा के लिए करना चाहते थे। दरअसल आइएसकेपी अफगानिस्तान में आइएस का सहयोगी संगठन है। खुरासान मॉड्यूल का मूल आधार पाक-अफगान सीमा पर है। तालिबान अमेरिका समझौते के बाद इसने अफगानिस्तान में बड़े हमले किए हैं। यह धन जुटाने के लिए अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से सीधे जुड़ा है। इसे भारत से भी धन भेजे जाने की खबरें आती रही हैं। खुरासान अफगानिस्तान का वह ऐतिहासिक क्षेत्र है, जिसमें अफगानिस्तान और ईरान के हिस्से शामिल थे। यहां ध्यान रखने की बात है कि आइएस ने विश्व इस्लामी साम्राज्य का जो नक्शा जारी किया था उसमें भारत के काफी क्षेत्र को शामिल किया था। आइएस ने इस क्षेत्र के लिए अपने कमांडर की नियुक्ति की भी घोषणा कर दी थी। खुरासान में तालिबान छोड़ने वाले और विदेशी लड़ाके दोनों शामिल हैं। इसे बेहद क्रूर माना जाता है। इसके लिए भर्ती दक्षिण एशिया से हो रही है।

सोशल मीडिया के जरिए रची जा रही आतंकी साजिश

जहांजेब और हिना से पूछताछ के आधार पर कुछ जगहों पर छापेमारी की गई है। उससे कुछ और नई जानकारियां सामने आ सकती हैं। ये दोनों सोशल मीडिया के माध्यम से संगठन की गतिविधियां फैला रहे थे। सीएए-एनआरसी के विरोध को कायम रखने के लिए दोनों आरोपी प्रदर्शनकारियों से जिहाद की बातें करते थे। दोनों सोशल मीडिया और वॉट्सएप कॉल के जरिये लगातार अफगानिस्तान के आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के संपर्क में थे। सीएए के खिलाफ भी सड़क पर उतरने के लिए इन्होंने मुसलमानों को उकसाया। इसके खिलाफ भड़काने वाली सामग्री भी ये लोग तैयार करके फैला रहे थे। ये दोनों टेलीग्राम, फेसबुक, श्योर स्पॉट, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक्टिव थे। किसी कंपनी में सामान्य सॉफ्टवेयर का काम करने वाला इतने प्लेटफॉर्म पर और कई नामों से इतना सक्रिय नहीं रहता जितने ये थे। यही नहीं दोनों पति-पत्नी इंडियन मुस्लिम यूनाइट नाम का एक सोशल अकाउंट चला रहे थे। क्यों? वास्तव में ये आइएस की जिहादी विचारधारा से युवाओं को प्रभावित कर जिहादी गतिविधियां करने को प्रेरित कर रहे थे।

दिल्ली के अलावा मुंबई और उत्तर प्रदेश में रच रहे थे साजिश

जांच में यह बात भी सामने आई है कि ये सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों से फ्री कश्मीर के नारे लगवाते थे। ये दिल्ली के अलावा मुंबई और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में भी लोगों को सीएए का डर दिखाते तथा उन्हें कौम के खिलाफ बड़ी साजिश बताते थे। पूछताछ में दोनों ने बताया कि वे आइएस की पत्रिका स्वात-अल-हिंद के फरवरी महीने के संस्करण को प्रकाशित कराने में शामिल थे। इस पत्रिका को 24 फरवरी को ऑनलाइन जारी किया गया था। इसमें सीएए का विरोध कर रहे लोगों से जिहादी रास्ता अपनाने की अपील की गई थी। इसमें लिखा था कि लोकतंत्र आप लोगों को नहीं बचा पाएगा।

यूपी व असम हिंसा के पीछे भी PFI की संलिप्तता

अभी इनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए, 153, 120बी के तहत मामला दर्ज किया गया है। इतने विवरण के बाद शाहीन बाग धरना और देश के अलग-अलग स्थानों पर शाहीन बाग सरीखे विस्तारित धरने, प्रदर्शनों को लेकर क्या किसी को संदेह रह जाता है कि इसके पीछे व्यापक गहरी साजिश है? उत्तर प्रदेश एवं असम की हिंसा में पीएफआइ की संलिप्तता के इतने प्रमाण मिले हैं कि केंद्रीय गृह मंत्रलय के पास इसको प्रतिबंधित करने की अनुशंसाएं विचाराधीन हैं। जामिया हिंसा के बारे में भी पुलिस ने जो आरोप पत्र न्यायालय में डाला है उसमें भी पीएफआइ का नाम है।

शाहीन बाग धरना खत्म करने में समस्या क्या है

शाहीन बाग में जिस तरह के भड़काऊ भाषण हो रहे थे, वहां जिस तरह हर प्रकार के संसाधन उपलब्ध रहे हैं उनसे किसी भी निष्पक्ष व्यक्ति के अंदर कई प्रकार के संदेह पैदा होते हैं। यह सहज ही समझा जा सकता है कि जो नागरिकता कानून तीन देशों से धार्मिक रूप से उत्पीड़ित और अपना सम्मान गंवाकर शरण के लिए आए लोगों को नागरिकता देने के लिए है उसे छल-कपट और दुष्प्रचार के सहारे मुसलमानों के खिलाफ बताने का एक प्रभावी तंत्र अवश्य होगा। अब जब पीएफआइ के बाद आइएस तक की भूमिका सामने आ गई है तो फिर यह समझने में देर नहीं लगनी चाहिए किस तरह की शक्तियां भारत को अशांत करने के लिए सक्रिय हैं। पुलिस प्रशासन को इसका जवाब देना चाहिए कि आखिर इतने भयानक तत्वों की भूमिका सामने आने के बाद भी शाहीन बाग जैसे अवैध धरने को खत्म करने में समस्या क्या है?

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(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)