[ भरत झुनझुनवाला ]: वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए संयुक्त राष्ट्र ने आकलन किया है कि भारत की जीडीपी विकास दर 1.2 प्रतिशत सकारात्मक रह सकती है। इसके विपरीत वित्तीय सेवाएं प्रदान करने वाली वैश्विक संस्था ब्लूमबर्ग ने ऋणात्मक (-)0.4 प्रतिशत, फिच, स्टैंडर्ड एंड पूअर एवं इकरा नामक रेटिंग एजेंसियों ने (-)5 प्रतिशत, पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने (-)10 प्रतिशत और ग्लोबल कंसल्टेंसी संस्था आर्थर बी लिटिल ने (-)11 प्रतिशत रहने का आकलन किया है। अधिकतर विद्वानों की सहमति (-)5 प्रतिशत पर दिखती है। मेरे आकलन में गिरावट इससे भी अधिक हो सकती है।

जीएसटी की वसूली में गिरावट

इस वर्ष फरवरी में जीएसटी की वसूली 105 हजार करोड़ रुपये हुई थी। अप्रैल में 30 और मई में 60 हजार करोड़ रुपये की वसूली बताई जा रही है। इन दो माह में 71 प्रतिशत और 43 प्रतिशत गिरावट हुई है। वर्तमान संकेतों के अनुसार जून में गिरावट का दौर जारी है। मई में 2.54 करोड़ ई-वे बिल जारी हुए थे जिन पर 60 हजार करोड़ रुपये की जीएसटी की वसूली हुई। 1 से 10 जून तक 87 लाख ई-वे बिल जारी हुए। इस रफ्तार से पूरे जून में 2.61 करोड़ ई-वे बिल जारी होने की संभावना है। इसके आधार पर जून में जीएसटी की वसूली 62 हजार करोड़ रुपये होने के आसार हैं जो फरवरी के मुकाबले (-)41 प्रतिशत होगी। मान लें कि जुलाई में सुधार हो जाएगा और केवल (-)20 प्रतिशत की गिरावट होगी और अगस्त 2020 से मार्च 2021 तक विकास दर शून्य रहे तो भी पूरे वर्ष का औसत (-)14.6 प्रतिशत गिरावट का रहेगा।

जीडीपी विकास दर लगातार गिर रही है

अगस्त 2020 से मार्च 2021 की विकास दर को शून्य मानने का कारण यह है कि पिछले 4 वर्षों में हमारी जीडीपी विकास दर लगातार गिर रही है। वर्ष 2017 में यह 10 प्रतिशत थी, 2018 में 8 प्रतिशत, 2019 में 5 प्रतिशत और 2020 में मात्र 4 प्रतिशत रह गई। वर्तमान संकेतों के अनुसार कोरोना का प्रकोप जुलाई तक रहने का अंदेशा है।

कोरोना प्रकोप का दूसरा दौर भी आने की आशंका

चूंकि प्रकोप का दूसरा दौर भी आने की आशंका है इसलिए अगस्त के बाद विकास दर सकारात्मक रहने की संभावना कम ही है और हम इसे शून्य मान सकते हैं। जीएसटी के अनुपात में ही जीडीपी में भी परिवर्तन हो रहा है। 2019 और 2020 के बीच जीएसटी की वसूली में 3.6 प्रतिशत वृद्धि हुई थी, जबकि जीडीपी में 4 प्रतिशत की। अत: 2020-21 में जीएसटी की वसूली में (-)14.6 प्रतिशत गिरावट से जीडीपी में भी इतनी ही गिरावट आ सकती है।

अप्रैल 2020 में बिजली उत्पादन में 30 फीसद की गिरावट

दूसरा मानदंड बिजली का है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के अनुसार अप्रैल 2020 में अपेक्षित उत्पादन की तुलना में 30 प्रतिशत की गिरावट आई और मई में 23 प्रतिशत की। मान लें कि जून में 15 प्रतिशत और जुलाई में 10 प्रतिशत की गिरावट आएगी तो र्वािषक गिरावट 6.5 प्रतिशत की बैठेगी। अप्रैल में बिजली के उत्पादन में 30 प्रतिशत की गिरावट से जीएसटी में (-)71 प्रतिशत की गिरावट आई थी। इसी अनुपात में पूरे वर्ष में बिजली के उत्पादन में 6.5 प्रतिशत की गिरावट से जीडीपी में (-)15.4 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान बनता है। उपरोक्त दोनों आधार पर इस वर्ष जीडीपी में कम से कम (-)15 प्रतिशत गिरावट आ सकती है, लेकिन सरकार रेटिंग एजेंसियों के (-)5 प्रतिशत के गिरावट के अनुमान के आधार पर चल रही दिखती है।

जीडीपी में गिरावट अल्पकालीन होगी 

रेटिंग एजेंसियों का मानना है कि जीडीपी में गिरावट अल्पकालीन होगी और अगस्त के बाद आर्थिक विकास चल पड़ेगा। कोरोना संकट की अवधि को पार करने के लिए सरकार ने जो अतरिक्त ऋण लिए हैं उस पर ब्याज अगस्त के बाद की राजस्व में तीव्र वृद्धि से अदा कर दिया जाएगा। इस आकलन में सरकार पिछले चार वर्षों से विकास दर में आ रही गिरावट को अनदेखा कर रही है।

गिरती अर्थव्यवस्था को कोरोना ने एक बड़ा झटका दिया

चूंकि गिरती अर्थव्यवस्था को कोरोना ने एक बड़ा झटका दिया है ऐसे में इसमें संदेह है कि अगस्त के बाद हमारी अर्थव्यवस्था पुन: तीव्र गति से बढ़ने लगेगी। यदि यह मान भी लें कि इस पूरे वर्ष में जीडीपी की गिरावट केवल (-)5 प्रतिशत होगी तो भी हमें तैयारी (-)15 प्रतिशत की करनी चाहिए। संकट को कम नहीं आंकना चाहिए। बीते चार वर्षों में जीडीपी विकास दर में गिरावट का सिलसिला नोटबंदी से शुरू हुआ।

नोटबंदी, जीएसटी और अब कोरोना के कारण छोटे उद्योगों पर अधिक संकट आया

नोटबंदी, जीएसटी और अब कोरोना के कारण छोटे उद्योगों पर अधिक संकट आया है। इनके संकटग्रस्त होने से अर्थव्यवस्था में रोजगार कम बने और मांग भी कम हो गई। मांग कम होने से बड़े उद्योग भी संकट में आ गए हैं। इसलिए सरकार को छोटे उद्योगों पर विशेष ध्यान देना होगा। उन्हेंं ऋण देने से काम नहीं चलेगा। उनकी मुख्य समस्या बाजार में बड़े उद्योगों से प्रतिस्पर्धा है। 

भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लग रही इस कारण देश की पूंजी अभी भी काले धन में परिर्वितत हो रही

पहले कदम के तहत उन्हेंं समुचित संरक्षण देना होगा। चूंकि भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लग रही इस कारण देश की पूंजी अभी भी काले धन में परिर्वितत हो रही है। सरकार ने काले धन के निवेश पर शिकंजा कस रखा है इसलिए यह रकम सोने की खरीद में खपाई जा रही है। दूसरे कदम के तहत सरकार को पूंजी के स्वतंत्र आवागमन को रोकना होगा। तीसरा कदम यह होना चाहिए कि सरकार अपने खर्चों पर लगाम लगाए जिससे ऋण लेने की जरूरत कम पड़े। जब देश के आम जनों की आय में भारी गिरावट आ रही हो तो जन सेवकों को भी उनके दर्द में भागीदार बनना चाहिए। चौथा कदम यह उठाया जाए कि आयात करों में वृद्धि की जाए, विशेषकर ईंधन तेल पर। इस मद से राजस्व एकत्रित करके सरकार अपने खर्च चला सकती है और ऋण लेने से बच सकती है।

सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की नई व्यवस्था बनाई जाए

इससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, परंतु यह नकारात्मक प्रभाव तो ऋण लेने से भी पड़ेगा। अंतर यह है कि तेल के दाम में वृद्धि का प्रभाव थम जाएगा, जबकि ऋण का नकारात्मक प्रभाव आने वाले वर्षों में बढ़ता ही जाएगा। जैसे नौकरी छूट जाए तो तत्काल खर्च कम करना उत्तम रहता है। नौकरी के अभाव में ऋण लेकर काम चलाने से परिवार और गहरे संकट में जा घिरता है। पांचवां कदम यह हो कि सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की नई व्यवस्था बनाई जाए।

सरकार ने अपने खर्च बनाए रखे और भारी ऋण लिए तो आय में गिरावट और ब्याज का बोझ बढे़गा

यदि सरकार ने रेटिंग एजेंसियों पर भरोसा करके अपने खर्च वर्तमान स्तर पर बनाए रखे और भारी ऋण लिए तो आने वाले समय में आय में गिरावट के साथ-साथ ब्याज का बोझ भी बढे़गा और वह ज्यादा कष्टप्रद होगा।

( लेखक र्आिथक मामलों के विशेषज्ञ हैं )