[जीएन वाजपेयी]। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण और मृतकों की संख्या में वृद्धि के साथ ही कोविड-19 महामारी अपना प्रकोप बढ़ाती जा रही है। तमाम लोग इससे विचलित हो गए हैं। मानव ने प्रकृति को जो गंभीर क्षति पहुंचाई, यह संकट मानव पर प्रकृति के कोप की अभिव्यक्ति प्रतीत होता है। सभी इससे उबरने के उपक्रम में लगे हैं। सरकारें मशक्कत कर रही हैं। केंद्रीय बैंक भी जुटे हैं। उनका प्रयास है कि जीवन और आजीविका की हर हाल में सुरक्षा की जाए। इस परिदृश्य में स्वास्थ्यकर्मी नए मसीहा के रूप मे उभरे हैं जो उम्मीद की मशाल थामे हुए हैं। फिलहाल मानवता और आम जनजीवन को बचाने की ही जद्दोजहद की जा रही है।

इस दौरान वैज्ञानिक शोध की दशा-दिशा भी काफी कुछ बयान करती है। अब तक इस महामारी पर करीब 7,000 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। ये शोध पत्र वाइरोलॉजी से लेकर एपिडेमियोलॉजी जैसे विषयों पर प्रकाशित हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO के अनुसार इस समय करीब 110 फॉर्मुलेशन परीक्षण के विभिन्न चरणों में हैं जिनमें वैक्सीन के मानवीय परीक्षण जैसी पहल भी शामिल हैं। इसके बावजूद तमाम प्रख्यात विज्ञानी इस पहलू को लेकर भी चेता रहे हैं कि हमें इस वायरस के साथ जीना सीखना होगा, क्योंकि एचआइवी की तरह कोविड-19 की भी शायद कभी पूरी तरह से विदाई न हो पाए। लिहाजा सभी का पूरा ध्यान पूरी तौर पर जैव-विज्ञानी समुदाय पर लगा हुआ है। 


अर्थशास्त्र ने निभाई भूमिका 

आधुनिक मानव यानी होमो सेपियंस के विकास और कल्याण में अर्थशास्त्र ने अहम भूमिका निभाई है। जीवन आर्थिक ढांचे पर सवार होकर प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ता गया। इसका आगाज शिकार करने और जमा करके रखने वाली अर्थव्यवस्था के साथ हुआ। मानव जंगली जानवरों के आखेट, मछली पकड़ने, कंदमूल, सब्जियां और मेवे इकट्ठा करने पर ही पूरी तरह निर्भर रहा। इसने सैकड़ों और हजारों वर्षों तक जीवित रहने, आजीविका और संपन्नता को सहारा दिया। साथ ही कृषि की खोज की ओर भी उन्मुख किया। फिर कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का प्रभुत्व भी करीब 10,000 वर्षों तक कायम रहा। इसने समाज-समुदाय, पर्यावास और सभ्य जीवन की बुनियाद रखी। वस्तु विनिमय प्रणाली के आविर्भाव के साथ अधिशेष एवं न्यूनता के बीच जीवन में संतुलन साधने वाली व्यवस्था ने औपचारिक रूप ग्रहण किया। भंडारण और सामुदायीकरण ने सामूहिकता को सुगम बनाया।

औद्योगिक अर्थव्यस्था को दिया जन्म 

करीब तीन हजार साल पहले पहिये के आविष्कार और उसके बाद भाप के इंजन और बारूद की खोज ने विश्व अर्थव्यवस्था की काया ही पलट कर रख दी। इसने औद्योगिक अर्थव्यवस्था को जन्म दिया। इससे उत्पादकता में भारी बढ़ोतरी हुई। मूल आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का उत्पादन संभव हुआ। इसने समूह और शहरीकरण को जन्म दिया। वहीं भौगोलिक विस्तार और उपनिवेशीकरण भी शुरू हुआ। इससे शक्ति का संतुलन बदल गया। शक्ति राजसत्ताओं के हाथ से फिसलती गई और आधुनिक राष्ट्र राज्य की व्यवस्था अस्तित्व में आई।

ज्ञान का लोकतांत्रिकरण हुआ

मगर सूचना अर्थव्यवस्था ने महज दो शताब्दियों के दौरान औद्योगिक अर्थव्यवस्था को बौना बनाकर रख दिया। सूचना अर्थव्यवस्था ने डिजाइन, मैन्युफैक्चरिंग और मार्केटिंग में नए तौर- तरीकों से मेल कराया। इससे ग्लोबल वैल्यू चेन का सृजन हुआ। इसने हर काम में लगने वाले समय को घटा दिया और दायरे को बढ़ा दिया। इससे संभावनाएं बढ़ती ही गईं। लागत भी घट गई। इससे दूरियां पटती गईं। इसने बाजारों को जोड़ दिया। पूरा का पूरा विश्व एक गांव में सिमट गया। ज्ञान का लोकतांत्रीकरण हुआ। विरोधी स्वरों को जगह मिली और र्तािकक स्वरों को प्रोत्साहन मिला। इसने उपभोग को बढ़ाया। आराम और सुकून को बढ़ाकर आनंद में वृद्धि की और अब आनंद की इस खोज ने उन्माद का रूप धारण करके पृथ्वी को ही विनाश की ओर धकेल दिया है। वास्तव में इस महामारी का आकार, प्रकार और विस्तार सूचना अर्थव्यवस्था का ही एक अनपेक्षित परिणाम है।

सूचना अर्थव्यवस्था पर मिल जाएगी बढ़त

पृथ्वी पर मानव जाति का अस्तित्व ही खतरे में है। हालांकि मानव का इतिहास उनकी अद्वितीय क्षमता को ही दर्शाता है कि वे कैसे आपदा से उबर लेते हैं। उसने संज्ञानात्मक क्रांति से लेकर सूचना विस्फोट तक के दौर में बचाव के लिए नए हथियार विकसित कर लिए। अब जबसे मानवीय खोजों का पूरा जोर जीव-विज्ञान पर लग गया है तबसे पूरा ध्यान और संसाधन आवंटन की दिशा भी जीव-विज्ञान की ओर हुई है। इससे लगता है कि उसे सूचना अर्थव्यवस्था पर बढ़त मिल जाएगी।

जब आर्थिक ढांचा बदलता है तो पुराना ढांचा यकायक गायब नहीं हो जाता। वह सहायक भूमिका में आ जाता है और उसके द्वारा सृजित की जाने वाली संपदा भी घट जाती है। कृषि एवं औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं का अस्तित्व अभी भी है, परंतु वैश्विक संपदा सृजन में उनका योगदान कम हो गया है। किसी अर्थव्यवस्था के प्रतिनिधि उपक्रमों की संपदा में परिवर्तन का सीधा एवं आनुपातिक संबंध उस आर्थिक ढांचे के दर्जे से जुड़ा है। अमेजन, एपल, अल्फाबेट और अलीबाबा का मूल्यांकन इस अनुमान की पुष्टि करता है।

और विकल्पों पर किया जा रहा है गौर 

जैव-अर्थव्यवस्था की मेहरबानी से अस्तित्व बचाए रखने के अलावा और भी विकल्पों पर गौर किया जा रहा है। इसमें एक तो पृथ्वी से परे किसी अन्य ग्रह पर जीवन की संभावनाएं तलाशने से जुड़ा है। इस कड़ी में एलन मस्क के स्वामित्व वाली स्पेस एक्स इस साल अंतरिक्ष में मानव को भेजने वाली पहली निजी कंपनी बनने जा रही है। जैव-अर्थव्यवस्था का घटनाक्रम पहले ही अनोखे परिणाम दे रहा है।

यह प्रजनन क्षमता के साथ ही जीवन की गुणवत्ता और उसे लंबा बनाने में क्रांतिकारी भूमिका निभा रहा है। डीएनए मैपिंग हो या जन्म के समय प्लेसेंट्रा को संरक्षित रखना, मानवीय अंगों की 3डी मैपिंग और एडवांस प्रोस्थेटिक्स, ये उपचार के परिदृश्य का कायापलट कर रहे हैं। बायोनिक मानवीय रूप का सृजन निकट भविष्य में संभव है। अमरता से जुड़ी परियोजनाएं अब कल्पना मात्र नहीं रह गई हैं। दुनिया के सबसे अमीर लोगों की अगली कड़ी जैव-अर्थव्यवस्था से उभरेगी। आर्थिक नायकों की नई लहर जीव-विज्ञानियों से ही निकलेगी। वे दृश्यमान, मुखर और पूजनीय होने के साथ ही सुर्खियों में भी छाएंगे।

 

(लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं)