[अनंत विजय]। आमतौर पर इस तरह का सस्पेंस जासूसी उपन्यासों या फिर अपराध कथाओं में देखने को मिलता था। सस्पेंस को छोड़ दें तो कहानी में जबरदस्त मोड़, रोचकता और नाटकीयता तो एकता कपूर के सीरियल्स में देखने को मिलते हैं। कुछ ऐसा ही सस्पेंस या नाटकीय घटनाक्रम पूर्व गृह और वित्त मंत्री और कांग्रेस सांसद चिंदबरम के मामले में देखने को मिला। याद नहीं पड़ता कि आजाद भारत के इतिहास में किसी पूर्व केंद्रीय मंत्री को गिरफ्तार करने का घटनाक्रम इतना लंबा और नाटकीय तरीके से चला हो।

पूरे देश ने भ्रष्टाचार के मामले में कई नेताओं की गिरफ्तारियां देखी हैं, लेकिन जिस तरह 27 घंटे तक गिरफ्तारी को लेकर चिंदबरम और सीबीआई के बीच दांव-पेंच चलता रहा उसमें जबरदस्त सस्पेंस था। आखिरकार चिंदबरम कांग्रेस दफ्तर में नमूदार हुए और वहां मीडिया से बात करने के बाद घर पहुंचे। सीबीआई उनके पीछे-पीछे उनके घर पहुंची। सीबीआई अफसरों के लिए घर का दरवाजा बंद था। एजेंसी के अफसरों को दीवार फांदकर अंदर जाना पड़ा और चिदंबरम को गिरफ्तार कर लिया। इसके पहले उनके घर के बाहर नोटिस चिपकाया गया था, लेकिन चिंदबरम सामने नहीं आए थे।

इंदिरा गांधी ने राजनीतिक वापसी का रास्ता तलाश लिया था
ये वही कांग्रेस पार्टी है जिसकी नेता इंदिरा गांधी को भी सीबीआई ने 1977 में गिरफ्तार किया था। तब इंदिरा गांधी ने अपनी गिरफ्तारी में अपनी राजनीतिक वापसी का रास्ता तलाश लिया था। 3 अक्तबूर 1977 को सीबीआई के अफसर दिल्ली के 12 विलिंगटन क्रिसेंट रोड के बंगले पर पहुंचे थे जहां उस वक्त इंदिरा गांधी रह रही थीं। पुपुल जयकर ने लिखा है कि सीबीआई के अफसर जब शाम के पांच बजे इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने पहुंची थी तो उस वक्त संजय और मेनका गांधी बैडमिंटन खेल रहे थे और इंदिरा गांधी अपने वकीलों के साथ बैठक कर रही थीं। 

इंदिरा  खुद को शहीद होते दिखना चाहती थीं
सीबीआई के अफसर एन के सिंह ने खबर भिजवाई कि वो इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने आए हैं। करीब घंटे भर बाद इंदिरा हरे बॉर्डर वाली सफेद साड़ी में घर से बाहर निकलीं। इंदिरा ने सफेद साड़ी सोच समझकर पहनी थी और वो खुद को शहीद होते दिखना चाहती थीं। बाह आकर उन्होंने सबसे पहले गिरफ्तारी का वारंट दिखाने और एफआईआर की कॉपी की मांग की। इस बीच उनके घऱ से कांग्रेस के नेताओं को फोन पर गिरफ्तारी की जानकारी दी जा चुकी थी और नेताओं का जमावड़ा वहां होने लगा था। 

सीबीआई अफसर इंदिरा की मांग पर घबराए
कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता चिंदबमरम के घर भी पहुंचे थे पर चिंदबरंम घर से बाहर ही नहीं निकल रहे थे, जबकि इंदिरा गांधी अपनी गिरफ्तारी को इवेंट बनाने में लगी हुई थीं। उन्होंने सीबीआई के अफसर से मांग की कि गिरफ्तारी के बाद उनको हथकड़ी लगाई जाए और फिर ले जाया जाए। सीबीआई अफसर इंदिरा की इस मांग पर घबरा गए थे और उन्होंने कहा कि मैडम! आपको थाने से ही व्यक्तिगत बांड पर जमानत दे दी जाएगी। इंदिर नहीं मानी। उनको पहले हरियाणा ले जाने की कोशिश हुई लेकिन बगैर वारंट के दूसरे राज्य में ले जाने की कानूनी समस्या खड़ी हो गई थी। 

सीबीआई पर दिल्ली से बाहर नहीं ले जाने का दबाव
इंदिरा के साथ चल रहे उनके वकील और समर्थक उनको दिल्ली से बाहर नहीं ले जाने को लेकर सीबीआई पर दबाव बना चुके थे। उनको वापस दिल्ली के किंग्सवे कैंप लाया गया। सुबह अदालत में अस्सी मिनट की सुनवाई के बाद इंदिरा को जमानत दे दी। तब राजीव गांधी कोर्ट से निकले थे और एक विदेशी अखबार के संवाददाता को कहा कि मां ने भी नहीं सोचा था कि उनको इस गिरफ्तारी से इतना फायदा होगा। तब इंदिरा गांधी को इस तरह से गिरफ्तार करने पर अटल बिहारी वाजपेयी और रामकृष्ण हेगड़े ने विरोध भी जताया था। 

अटल जी ने कहा बदले की भावना से न हो कार्रवाई 
अटल जी ने कहा था कि जनता ने इंदिरा को दंडित कर दिया है और बदले की भावना से कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। यहां मामला उल्टा था, चिंदबरम 27 घंटे लापता रहे, सीबीआई उनको ढूंढती रही। गिरफ्तारी के बाद जब अदालत में पेश हुए तो उनका बेटा भी वहां मौजूद था लेकिन वो राजीव गांधी की तरह कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं थे। सीबीआई चिंदबरम को ले गई, पूछताछ कर रही है। चालीस बयालीस साल में ही कांग्रेस की राजनीति और उनके नेताओं के नैतिक बल का कितना क्षरण हो गया इसको रेखांकित किया जाना आवश्यक है।

लेखक दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर हैं।