शिवेंद्र कुमार सिंह। ऑस्ट्रेलिया से वनडे सीरीज के आखिरी और पांचवें मैच के पहले ही बिशन सिंह बेदी ने कहा था कि वनडे मैचों में धौनी टीम के आधे कप्तान होते हैं और उनकी गैरमौजूदगी में विराट कोहली ‘रफ’ दिखाई देते हैं। हुआ भी ऐसा ही। ऑस्ट्रेलिया ने 2-0 से पिछड़ने के बाद अप्रत्याशित तरीके से लगातार तीन वनडे मैच जीतकर सीरीज अपने नाम कर ली। दिल्ली में खेले गए आखिरी वनडे में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 35 रन से हरा दिया। 273 रनों के लक्ष्य का पीछा कर रही भारतीय टीम 237 रनों पर ही ऑल आउट हो गई।

दोनों ही टीमों के हालिया प्रदर्शन को देखते हुए सीरीज से पहले किसी ने यह उम्मीद नहीं की थी कि ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत को उसी के घर में हराकर जाएगी। पिछले दो साल में ऑस्ट्रेलिया की टीम को पहली बार किसी वनडे सीरीज में जीत मिली है। जाहिर है अब बिशन सिंह बेदी की ओर से कही गई बात की समीक्षा का वक्त है। क्या वाकई आखिरी दोनों मैच में धोनी को आराम देने की जरूरत थी? उन्होंने 2019 विश्व कप की तैयारियों के मद्देनजर एक के बाद एक प्रयोग को भी बेवजह बताया था। हैरत नहीं कि इन्हीं प्रयोगों के तहत धौनी को आराम दिया गया हो। 

धौनी ने एक ऐसी टीम की कप्तानी की है जिसमें एक वक्त पर कई पूर्व कप्तान-सौरव गांगुली, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और अनिल कुंबले खेला करते थे। मुश्किल परिस्थितियों में वह इन सभी की सलाह लेते थे। उनमें अपना ‘क्रिकेटिंग ब्रेन’ भी जबरदस्त था। धीरे-धीरे उन्होंने उसे इतना विकसित किया कि वह बड़े फैसले और बड़े बदलाव खुद करने लगे। इसका ही नतीजा था कि धौनी की कप्तानी में टीम ने 2011 का विश्व कप जीता। इससे पहले टी-20 विश्व कप उनकी कप्तानी में भारत जीत ही चुका था। वह भारत के सफलतम कप्तान बने। इसके बाद उन्होंने टेस्ट क्रिकेट छोड़ा, फिर वनडे में टीम की कप्तानी छोड़ी। वह विराट कोहली की कप्तानी में सीमित ओवरों का मैच खेलते रहे।

माना जा रहा कि वह 2019 विश्व कप के बाद वनडे क्रिकेट को भी अलविदा कह देंगे। आज विराट कोहली उस जगह पर हैं जहां कभी धौनी हुआ करते थे। विराट कोहली धौनी से सलाह लेते रहते हैं जिसका उन्हें फायदा मिलता है। ऐसा नहीं कि विराट कोहली अपना ‘क्रिकेटिंग ब्रेन’ विकसित नहीं कर रहे हैं। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो समय के साथ मैच दर मैच उनमें विकसित होती रहेगी, लेकिन जब धौनी मैदान में होते हैं तब विराट को उनकी सलाह का फायदा मिलता है। गावस्कर इसे दुआ मानते हैं। एक दिन वह भी आएगा जब विराट बिना धौनी के मैदान में उतरेंगे लेकिन जब तक धौनी खेल रहे हैं तब तक वह उनसे कुछ और बारीकियां सीख सकें तो उनके साथ पूरी टीम को फायदा होगा। 

भले ही धौनी को उनकी बल्लेबाजी के लिए घेरा जाता हो, लेकिन विकेटकीपिंग में आज भी कोई उनके आस-पास नहीं है। वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपरों में शुमार हैं। अगर उनके ‘इनपुट्स’ की बात की जाए तो इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि सीमित ओवरों के मैच में विराट बाद के ओवरों में बाउंड्री की तरफ फील्डिंग करने चले जाते हैं। ऐसे में धोनी ही ‘फील्ड प्लेसमेंट’ करते हैं।

बल्लेबाजों की सोच को भांपते हुए वह बदलाव करते रहते हैं। विकेट के पीछे से वह इन गेंदबाजों को लगातार सलाह देते हैं कि वे कहां गेंद फेंके? ये वे बातें हैं जो विराट कोहली को मदद करती हैं और मैच के नतीजों पर असर डालती हैं। आखिरी दो वनडे मैचों में धौनी की जगह ऋषभ पंत ने कीपिंग की। अभी दोनों की तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन पंत ने जिस तरह विकेट के आगे और पीछे गलतियां कीं उससे धौनी की कमी महसूस हुई। यह कमी विराट कोहली को भी समझ आई होगी। यह साफ दिख रहा कि मौजूदा सीरीज के मैचों को लेकर रणनीति बनाने के बजाय विश्व कप के लिहाज से कुछ ज्यादा ही प्रयोग किए गए। 

विश्व कप की तैयारी करना गलत नहीं हैं, लेकिन उन तैयारियों में और मौजूदा सीरीज के मैचों की रणनीति में जो संतुलन होना चाहिए वह दिखाई नहीं दिया। वनडे सीरीज में लगभग सभी मैचों में टीम इंडिया अपनी ‘फुल स्ट्रेंथ’ के साथ नहीं उतरी। कई मैचों में सिर्फ दो तेज गेंदबाज दिखाई दिए। आखिरी मैच में तीन तेज गेंदबाज थे तो एक बल्लेबाज कम हो गया।

टी-20 सीरीज में विराट कोहली ने तीन-तीन विकेट कीपर मैदान में उतार दिए थे। नंबर चार की समस्या जैसे की तैसे बनी रही। कोच रवि शास्त्री एक नई ‘थ्योरी’ लेकर आए हैं कि वह विश्व कप में विराट कोहली को नंबर चार पर बल्लेबाजी के लिए भी कह सकते हैं। अंबाती रायडू, केदार जाधव, विजय शंकर जैसे खिलाड़ियों के रोल को लेकर अभी भी तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं बन पाई और यह इंतजार और लंबा हो रहा कि रिषभ पंत अपने बल्ले से कुछ कमाल दिखाएंगे। 

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