[डॉ. अश्विनी महाजन]। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा संपन्न हो चुकी है। भारत यात्रा से पहले और उस दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने बार-बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी मित्रता का हवाला भी दिया। दुनिया के दो महान देशों के शासनाध्यक्षों के बीच इस प्रकार का सौहार्द एक अच्छा संकेत है। पिछले लंबे समय से अमेरिका, चीन और भारत के साथ व्यापार युद्ध छेड़े हुए हैं। चीन के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति की यह शिकायत है कि वह अपने सस्ते माल को अमेरिका में डंप करते हुए अमेरिका के रोजगार को समाप्त कर रहा है। इसलिए अपने देश के रोजगार और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए वे हर कदम उठाएंगे।

अमेरिका को भारत से भी यह शिकायत है कि भारत तमाम प्रकार का सामान अमेरिका में बेचता है, लेकिन अमेरिकी सामान पर बहुत ऊंचे आयात शुल्क लगाए जाते हैं। पिछले काफी समय से अमेरिका, चीन और भारत से आने वाले सामानों पर आयात शुल्क लगातार बढ़ाता जा रहा है। कुछ माह पूर्व अमेरिका ने भारत को रियायत देने वाला एक प्रावधान ‘जीएसपी’ हटा दिया था, जिससे भारत से जाने वाले लगभग 5.6 अरब डॉलर के निर्यातों पर असर पड़ा। ट्रंप की भारत यात्रा से कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने भारत को विकासशील देशों की श्रेणी से हटाकर विकसित देशों की श्रेणी में डाल दिया था। इसका असर यह होगा कि भारत को विकासशील देश के रूप में मिलने वाली व्यापार रियायतें समाप्त हो जाएंगी।

अमेरिका को भारत से केवल यही शिकायत नहीं है कि वह अमेरिका से आने वाले सामान पर भारी शुल्क लगाता है, बल्कि यह भी है कि उसने अमेरिका के दुग्ध उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। अमेरिकी कंपनियों की यह भी शिकायत है कि भारत ने हृदय में लगने वाले स्टंट, कृत्रिम घुटने समेत स्वास्थ्य उपकरणों पर कीमत नियंत्रण लागू किए हुए हैं, जिससे वे मुश्किल में हैं। उधर भारत ने पिछले कुछ समय से अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनियों पर विभिन्न प्रकार के अंकुश लगाए हैं।

अमेरिका की यह भी शिकायत है कि भारत का पेटेंट कानून उनकी कंपनियों के हितों के विपरीत है। भारत ने अमेरिका को यह समझाया है कि हम उनकी मांगों को नहीं मान सकते। अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा अनाप-शनाप डिस्काउंट देने के कारण भारत के छोटे दुकानदार अपनी जीविका खो रहे हैं, इसलिए इन कंपनियों पर अंकुश लगाना जरूरी है। जहां तक पेटेंट समेत हमारा बौद्धिक संपदा कानून है यह हमारी स्वास्थ्य सुरक्षा और किसानों की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है, इसे किसी भी हालत में बदला नहीं जा सकता।

शिकायतों की भरमार के बीच अमेरिका को ऐसा लगता था जैसे पूर्व में वे आर्थिक प्रतिबंधों का डर दिखाकर या अन्य प्रकार के दबाव डालकर अपनी बातें मनवा लेते थे, इस बार भी वे भारत को दबाव में लेकर कोई ऐसा व्यापार समझौता कर पाएंगे, जिससे अमेरिका के हितों को आगे बढ़ाया जा सकेगा। लेकिन ट्रंप की यात्रा से कुछ दिन पहले ही यह स्पष्ट हो गया था कि भारत और अमेरिका के बीच एक सीमित व्यापार समझौता भी नहीं हो पाएगा। ट्रंप ने भारत आने से पहले ही यह घोषणा भी कर दी थी कि भारत उनकी बातें नहीं मान रहा, जिससे व्यापार समझौता तो नहीं हो पाएगा, लेकिन उसके बावजूद वे भारत आएंगे क्योंकि मोदी उन्हें अच्छे लगते हैं। ट्रंप की यात्रा के अंत में भारत और अमेरिका ने आगे चलकर एक वृहत व्यापार समझौते की बात कही है, लेकिन भारत अपने हितों से समझौता नहीं करेगा।

अमेरिका को नहीं भूलना चाहिए कि भारत उसके लिए एक महत्वपूर्ण बाजार भी है। भारत का लगातार विकसित होता नागरिक उड्यन उद्योग अमेरिका की बोइंग कंपनी के लिए वरदान सिद्ध हुआ है और अगले कुछ वर्षों में भारत अमेरिका की बोईंग कंपनी से 40 अरब डॉलर की लागत के 300 बोईंग विमान खरीदने वाला है। आज अमेरिका भारत को तेल निर्यात करने वाला बहुत महत्वपूर्ण देश बन चुका है। ऐसे में अमेरिका जिस व्यापार घाटे को लेकर शिकायत कर रहा है, वह अगले कुछ वर्षों में समाप्त ही होने वाला है।

अमेरिका को समझना होगा कि भारत और अमेरिका के बीच अच्छे संबंध, अंतरराष्ट्रीय संतुलन बनाने के लिए नितांत जरूरी है। संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में यह बात स्पष्ट हो रही है कि दोनों देश प्रतिरक्षा के क्षेत्र में मिलकर काम करेंगे। भारत और अमेरिका के बीच सामरिक सहकार बढ़ने से इस महाद्वीप में शक्ति संतुलन बेहतर हो सकेगा और चीन जो लगातार अपनी सामरिक उपस्थिति इस क्षेत्र में बढ़ा रहा है, उसको भी उचित जवाब मिलेगा। पिछले कुछ समय से चीन ‘बेल्ट रोड परियोजना’ के तहत विभिन्न देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर उन्हें कर्ज के जाल में डुबोता जा रहा है। इसके माध्यम से वह उन मुल्कों के सामरिक महत्व की परिसंपत्तियों पर कब्जा कर इस क्षेत्र की शांति के लिए खतरा बना हुआ है। भारत और अमेरिका के बीच सामरिक सहभाग चीन को एक उचित जवाब माना जा सकता है।

अमेरिका की अनुचित व्यापार एवं आर्थिक मांगों को दृढ़ता से मना करते हुए व्यापार समझौता न करने और भारत अमेरिका संबंधों में इस विवाद को आड़े न आने देते हुए, अमेरिका को कश्मीर के मुद्दे पर अपने पक्ष में लेना, सामरिक समझौते करना आदि मोदी सरकार के अंतर्गत भारत की विदेश नीति की महत्वपूर्ण सफलता मानी जा सकती है। अपने छोटे-मोटे आर्थिक हितों का परित्याग करते हुए उसे भारत की भावनाओं का आदर करना चाहिए। अमेरिका इतिहास में पाकिस्तान का समर्थक रहा है। ऐसे में अमेरिका की भारत के साथ बढ़ती नजदीकियां इस क्षेत्र में भारत की विदेश नीति की सफलता तो है ही, इस क्षेत्र में शांति और सौहार्द के लिए अच्छा संकेत भी है।

[एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]