[ब्रह्मा चेलानी]। चीन से दुनिया भर में फैल रहे जानलेवा कोरोना वायरस और दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों की सुर्खियों के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के महत्वपूर्ण भारत दौरे के असर से जुड़ी खबरें कहीं गुम सी हो गईं। ट्रंप का यह दौरा केवल भारत तक ही सीमित था। ऐसे में भारत केंद्रित दौरा बढ़ती द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को ही रेखांकित करता है कि कैसे प्रगाढ़ होती यह दोस्ती दोनों देशों के लिए एक बड़ी कूटनीतिक संपदा है। चूंकि ट्रंप की यात्रा के दौरान कोई बड़ा समझौता नहीं हुआ तो यह उनके पूर्ववर्ती बराक ओबामा के पांच साल पहले के भारत दौरे की तुलना में उतना फलदायी भले न दिखा हो, लेकिन इसने भारत-अमेरिकी संबंधों को सही दिशा अवश्य दी।

चीन की बढ़ती दबंगई और मजबूत होती चीन-रूस सामरिक साठगांठ से मुकाबले के लिए यह आवश्यक भी था। ट्रंप ने अपने भारत दौरे को ‘अविस्मरणीय, असाधारण और फलदायी’ करार दिया। ट्रंप ने यह भी कहा, ‘अमेरिका भारत का सम्मान करता है और वह हमेशा भारतीयों का सच्चा एवं वफादार दोस्त बना रहेगा।’ वहीं मोदी ने भारत-अमेरिका रिश्तों को ‘इक्कीसवीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण साझेदारी’ बताया। स्वदेश लौटने के बाद भी ट्रंप भारत दौरे को लेकर आह्लादित दिखे। उन्होंने भारत को ‘अतुल्य देश’ बताया और मोदी को ‘महान इंसान एवं महान नेता’ बताते हुए कहा कि ‘फिलहाल भारत के साथ हमारे असाधारण रिश्ते हैं।’

भारत के साथ अमेरिकी दोस्ती की राह और बेहतर हुई

ट्रंप ने अमेरिका की चीन नीति में जो आमूलचूल बदलाव किया उसके बाद भारत के साथ अमेरिकी दोस्ती की राह और बेहतर हो गई है। रिचर्ड निक्सन से लेकर ओबामा तक एक के बाद एक अमेरिकी राष्ट्रपति चीन के आर्थिक उभार में मददगार बने रहे। यहां तक कि बीजिंग व्यापार नियम तोड़ता रहा, अमेरिकी तकनीक चुराता रहा और अपनी सैन्य ताकत बढ़ाता रहा, लेकिन अमेरिका ने इसे दूसरे नजरिये से ही देखा कि अधिक समृद्ध चीन राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से और उदार होता जाएगा।

अमेरिका की दस रैलियों के बराबर था ट्रंप का अहमदाबाद कार्यक्रम 

जहां तक अमेरिका की मौजूदा चीन नीति में व्यापक बदलाव की बात है तो यही अनुमान लगाया जा रहा है कि यह ट्रंप के राष्ट्रपति काल तक ही कायम रहेगी, क्योंकि वाशिंगटन में धड़े इसके खिलाफ लामबंद हो गए हैं। वे इसमें बदलाव की मांग कर वैश्विक भू-राजनीति एवं व्यापार का खाका नए सिरे से खींचना चाहते हैं। चूंकि अहमदाबाद में ट्रंप की रैली उनकी ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ जैसी दस रैलियों के बराबर थी इसलिए अमेरिका लौटकर एक ऐसी ही रैली में उन्होंने कहा,‘भारत जाने के बाद अब मैं भीड़ देखने को लेकर शायद उतना उत्सुक नहीं रहूंगा।’

ट्रंप के इस दौरे में कई उपलब्धियां रहीं। जैसे 3.4 अरब डॉलर का हेलीकॉप्टर सौदा हुआ। अब अमेरिका भारत को हथियार बेचने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है। भारत-अमेरिका के होने वाले संयुक्त युद्धाभ्यास की संख्या भी बढ़ती जा रही है। दोनों पक्षों ने एक सीमित व्यापार समझौता भी किया जिस पर कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद हस्ताक्षर किए जाएंगे। यह एक व्यापक व्यापार समझौते के शुरुआती चरण का काम करेगा।

कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है भारत 

अमेरिका और चीन के बाद भारत कच्चे तेल एवं पेट्रोलियम उत्पादों का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। ट्रंप शासन में अमेरिका ने लगातार भारत को कच्चे तेल एवं पेट्रो उत्पादों की आपूर्ति बढ़ाई है। अमेरिका के साथ अपने भारी व्यापार अधिशेष को संतुलित करने के लिए मोदी ने अमेरिका से और तेल एवं गैस आयात करने पर सहमति जताई है। अपने विशाल बाजार एवं रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति के कारण अमेरिका के लिए भारत की बहुत अहमियत है।

मोदी राज में अमेरिका के साथ भारत के बने गहरे रिश्ते 

हिंद- प्रशांत क्षेत्र के पश्चिमी हिस्से में भारत ही इकलौता ऐसा देश है जो चीन की सैन्य एवं आर्थिक क्षमताओं को संतुलित कर सकता है। भारत के दीर्घकालिक हितों के लिए अमेरिका से गहरी दोस्ती बेहद अहम है। मोदी राज में अच्छी बात यही है कि भारत ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता के साथ समझौता किए बिना ही अमेरिका के साथ गहरे रिश्ते बनाए हैं। मोदी के साथ ट्रंप की निजी कूटनीति द्विपक्षीय सहयोग को तेजी देने में खासी मददगार रही। दोनों राष्ट्रवादी हैं और अमूमन उन्हें एक ही किस्म की आलोचना झेलनी पड़ती है। ट्रंप मोदी को एक ऐसे शख्स के तौर पर देखते हैं जिनके शीर्ष पद पर उभार ने राष्ट्रीय प्रतिष्ठान को हैरान किया है। दोनों ही नेता अक्सर मीडिया के निशाने पर भी होते हैं।

ट्रंप के दौरे पर दोनों नेताओं ने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे उनके घरेलू आलोचकों को कोई अवसर मिलता। मिसाल के तौर सीएए को लेकर मोदी की घेराबंदी को लेकर जुड़ा सवाल ट्रंप से किया गया तो उन्होंने इसे भारत का आंतरिक मामला बताकर बहस की दिशा ही मोड़ दी। भारत और अमेरिका भले ही बहुत ध्रुवीकृत एवं वैचारिक रूप से विभाजित हों, लेकिन दोनों देशों में तमाम धड़े मजबूत द्विपक्षीय संबंधों के हिमायती हैं।

दोनों देशों के रिश्ते इससे बेहतर कभी नहीं रहे

बीते दो दशकों में विभिन्न दलों की सरकारों के दौर में दोनों देशों के रिश्ते लगातार परवान ही चढ़ते रहे। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान जैसे मसलों पर गतिरोध के बावजूद ट्रंप का यह कहना मायने रखता है कि ‘दोनों देशों के रिश्ते इससे बेहतर कभी नहीं रहे।’ कई ऐसे पहलू हैं जो भारत-अमेरिकी रिश्तों को संचालित कर रहे हैं। लोकतंत्र होने के नाते दोनों के साझा मूल्य स्वाभाविक रूप से समान हैं। चीन का बढ़ता वर्चस्व भी दोनों का सिरदर्द बढ़ा रहा है। दोनों एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति का संतुलन भी चाहते हैं। दौरे के अंत में जारी संयुक्त बयान का मजमून इसकी बानगी है जिसमें कहा गया, ‘खुले, स्वतंत्र, समावेशी, शांतिपूर्ण एवं समृद्ध हिंद -प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत और अमेरिका की घनिष्ठ साझेदारी बहुत जरूरी है।’

इसमें दक्षिण चीन सागर, अमेरिका- भारत-जापान त्रिपक्षीय सम्मलेन एवं ऑस्ट्रेलिया-भारत-जापान-अमेरिकी की चौकड़ी का जिक्र स्पष्ट रूप से चीनी पहलू को ध्यान में रखकर किया गया। वैसे भी कोरोना के कारण समूची वैश्विक आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई है जिसका तोड़ निकाले जाने की दरकार है। कळ्ल मिलाकर भारत और अमेरिका भले ही कई मसलों पर असहमति रखते हों, लेकिन जब वे साथ काम करते हैं तो उनकी जोड़ी अजेय नजर आती है।

 

(लेखक सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं)