गौरव कुमार। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि हमारे देश का स्वास्थ्य ढांचा बेहद लचर है। हालांकि पिछले कुछ दशकों के दौरान देश के स्वास्थ्य ढांचे को बहुत हद तक सशक्त बनाने का प्रयास किया गया है, लेकिन इसकी भी एक सीमा है। चूंकि महामारी का आकलन या पूर्वानुमान कठिन था ऐसे में कोरोना संकट की गंभीरता बढ़ गई है। इसके बावजूद केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों की तरफ से इससे निपटने की अभूतपूर्व तैयारी की गई है और इससे निपटने के प्रयास भी लगातार किए जा रहे हैं। कई ऐसे कारक हैं जिनके चलते हमारे देश में कोरोना की इस दूसरी लहर पर नियंत्रण पाना संभव नहीं हो सका है।

यह सच है कि किसी भी देश के पास किसी आपदा से निपटने के संसाधन सीमित मात्रा में ही होते हैं। ऐसे में बाहरी मदद की आवश्यकता होती है। बाहरी मदद किस हद तक और कितनी मिलेगी यह एक दूसरे के संबंधों की गहराई पर निर्भर करता है। कोरोना की लड़ाई में भारत के इस संकट को दूर करने में मदद के कई हाथ उठे हैं जिसमें पड़ोसी देशों के साथ ही कई अन्य विकसित और विकासशील देश भी शामिल हैं। इतना ही नहीं, कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी भारत को मदद का हाथ बढ़ाया है। हालांकि यह माना जा रहा है कि कोरोना से जंग की यह साझी पहल है, लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारत को मिलने वाली विदेशी मदद के पीछे भारत की अंतरराष्ट्रीय नीति का बहुत बड़ा योगदान है।

विगत वर्ष भारत ने अन्य देशों की मदद के लिए जिस प्रकार आगे बढ़ कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी या कोरोना की भारत निर्मित वैक्सीन को अन्य देशों को भेजने के प्रति जो तत्परता दिखाई थी उसका प्रतिफल आज मिल रहा है। इन सबके साथ यह भी अहम है कि पिछले कुछ वर्षों से भारत ने अपनी विदेश नीति को काफी सशक्त किया है। भारत के प्रधानमंत्री के विदेश दौरे को अक्सर आलोचना का सामना करना पड़ा था, किंतु यहां यह मानना पड़ेगा कि यह प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता का नतीजा था जिसने आज विश्व के सामने भारत की स्थिति को सशक्त किया है।

प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा का नतीजा हमें कई रूपों में दिखा है। चाहे वह आर्थिक या सामरिक हो, इस संकट की घड़ी में स्वाभाविक रूप से इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि भारत की विदेश नीति और संबंधों को ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए किए गए प्रयासों का सकारात्मक परिणाम कोरोना के खिलाफ हमारी लड़ाई में मिल रहा है। आज भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने जिस तरह का संकट पैदा किया है, उससे लड़ने में समूचा अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत की मदद के लिए खड़ा हो गया है। यह हमारी लड़ाई में एक संजीवनी की भांति है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे विकसित देशों के साथ-साथ रोमानिया और बेल्जियम जैसे छोटे देश भी भारत की मदद के लिए तत्परता से आगे आए हैं। सबसे सुखद बात यह है कि भारत ने अब तक किसी देश से मदद नहीं मांगी है। इसके बावजूद मदद के हाथ लगातार सामने आ रहे हैं। इसे भारत की सफल विदेश नीति के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।

आंकड़ों की बात करें तो ऑस्ट्रेलिया ने पांच सौ वेंटीलेटर, 10 लाख सर्जिकल मास्क, पांच लाख एन 95 मास्क, एक लाख चश्मे, ग्लव्स और फेस मास्क भेजने की घोषणा की है। वहीं जर्मनी ने भी भारत को 120 वेंटीलेटर और 23 आक्सीजन जेनरेटर समेत वर्तमान में जरूरी कुछ संबंधित तकनीकों में प्रशिक्षण के रूप में सहायता देने की घोषणा की है। यूरोपीय संघ की ओर से सात सौ आक्सीजन कंसंट्रेटर, 365 वेंटीलेटर और बेल्जियम की तरफ से नौ हजार रेमडेसिविर की डोज भेजने की घोषणा की गई है। रोमानिया जैसे देश ने भी भारत को 80 आक्सीजन कंसंट्रेटर व 75 आक्सीजन सिलेंडर, लग्जम्बर्ग ने 58 वेंटीलेटर, पुर्तगाल ने पांच सौ रेमडेसिविर डोज और स्वीडन ने 120 वेंटीलेटर भेजने की घोषणा कर भारत के साथ अपने संबंधों में एक नई ऊंचाई स्थापित कर ली है।

गौरतलब है कि भारत ने भी बीते एक वर्ष में करीब 150 देशों को कोरोना से जंग के लिए विभिन्न दवाओं, वैक्सीन सहित पीपीई किट्स के माध्यम से मदद की है। अभी भारत को मदद करने वालों में उन देशों की संख्या अधिक है जिनकी मदद भारत ने पूर्व में की है। अमेरिका के साथ भारत के परिष्कृत होते संबंधों और द्विपक्षीय संबंधों की प्रगाढ़ता का ही नतीजा है कि अमेरिका ने कोविशील्ड वैक्सीन के उत्पादन में लगने वाले कच्चे माल पर से प्रतिबंध हटा दिया है। ब्रिटेन ने भी भारत को 495 आक्सीजन कंटेनर्स, 120 वेंटीलेटर और 20 मैनुअल वेंटीलेटर भेजने का ऐलान किया है। फ्रांस ने भी दो चरणों में सहायता भेजने का ऐलान किया है, जिसमें आठ बड़े आक्सीजन उत्पादन करने वाले प्लांट समेत तमाम अन्य संबंधित चीजें शामिल हैं। भारत के मुस्लिम मित्र देशों में से एक सऊदी अरब ने मदद भेजने की शुरुआत कर दी है।

विश्व समुदाय से भारत को लगातार मिल रही मदद को कई मायने में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। एक तो इसे मानवता की रक्षा के लिए वैश्विक पहल के संदर्भ में देखा जा रहा है। दूसरी तरफ भारत के प्रति अन्य देशों की बदलती मानसिकता और संबंधों की गरिमा में वृद्धि के रूप में भी यह सामने आया है। आज वैश्विक समुदाय के बीच यह वास्तविकता है कि भारत के साथ संबंधों को विस्तार देने के प्रति ये सभी देश गंभीर और तत्पर हैं। विश्व के अधिकांश देशों ने भारत की बढ़ती वैश्विक साझेदारी, वैश्विक जिम्मेदारी और बढ़ती भूमिका के परिप्रेक्ष्य में विश्व समुदाय के नेतृत्वकर्ता के रूप में भारत की प्रासंगिकता को न केवल स्वीकार किया है, बल्कि उसे और भी सुदृढ़ किया है। कोरोना संकट से जूझ रहे भारत को मिल रही सहायता को केवल सहानुभूति के लिहाज से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसके बड़े और व्यापक सामरिक निहितार्थ भी है।

[लोक नीति विश्लेषक]