नरपतदान चारण। वर्तमान डिजिटल दौर लोगों को नए नए तरीकों से लुभा रहा है। यह सही है कि देश-दुनिया में तेजी से सूचना पहुंचाने में आज इसकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन साथ ही कई ऐसी चुनौतियां भी सामने आ रही हैं, जो वाकई में हमारे लिए चिंताजनक हैं, और जिन्हें समय रहते निपटाना होगा। अक्सर यूट्यूब चैनल चलाने वालों के फर्जी होने की चर्चा होती रहती है। लॉकडाउन के दौरान इस चर्चा ने जोर पकड़ा, क्योंकि सख्ती के बावजूद पत्रकारों को बाहर निकलने की छूट थी, तो उन पत्रकारों में ऐसे भी शामिल हो गए, जिनके कंधों पर कैमरा और हाथों में मोबाइल था और वे अपने आपको किसी यूट्यूब न्यूज चैनल का पत्रकार बताते थे।

लॉकडाउन के दौर में पंजीकृत और अधिकृत समाचार पत्रों के कर्मियों की शिकायतें भी आईं कि समाचार पत्रों के संवाददाताओं और फोटोग्राफरों को तब परेशानी होती थी जब किसी का इंटरव्यू लेने के दौरान यूट्यूब न्यूज चैनलों के वीडियोग्राफर आगे आ कर खड़े हो जाते और उन्हें पीछे खड़ा होना पड़ता। ऐसे में कुछ पत्रकार संगठनों ने सरकार का इस ओर ध्यान आकर्षति किया। कुछ जगह प्रशासन ने भी स्वत: संज्ञान लिया कि यूट्यूब पर न्यूज चैनल चलाने वालों को पत्रकार नहीं माना जाएगा। इसका आधार यह है कि यूट्यूब पर न्यूज चलाने वालों का देश की किसी भी सरकारी एजेंसी में रजिस्ट्रेशन नहीं होता। अत: मान्यता प्राप्त पत्रकार व किसी रजिस्टर्ड समाचार पत्र में पत्रकार के रूप में कार्य करने वाले ही सरकारी कार्यालयों व तय कार्यक्रमों का कवरेज कर सकेंगे।

देश भर में ऐसे कई स्थानीय यूट्यूब आधारित चैनल उभरकर आए हैं जो स्थानीय खबरों के साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर खबर देने में, टीवी और प्रिंट मीडिया से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। ये चैनल छोटे-बड़े सभी समारोह की जानकारी खबर बनाकर पेश भी करते हैं। स्थानीय नागरिक उक्त चैनल वालों को निजी कार्यक्रमों में आमंत्रित भी करते हैं। और ऐसी खबरें उक्त चैनल के लिए विज्ञापन व राजस्व जुटाती हैं। हर एक छोटी सी खबर लोकलुभावन तरीकों से प्रस्तुत किए जाने के कारण इन यूट्यूब आधारित खबरिया चैनलों को जनाधार भी मिल रहा है। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि भले ही ये यूट्यूब चैनल समाज में पैठ जमा कर खबरें जुटाते हैं और राजस्व प्राप्त कर लेते हैं, किंतु उक्त चैनलों में काम करने वाले प्रतिनिधि व इनके संचालकों पर किसी प्रकार का सरकारी नियंत्रण नहीं होता व ना ही कहीं ये पंजीकृत होते हैं। इस कारण यह मनमाने तरीके से तथ्यों को तोड़-मरोड़कर समाचार प्रकाशित करते हैं।

बीते मार्च महीने में ही केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने यूट्यूब पर चल रहे 76 न्यूज चैनलों पर प्राथमिकी दर्ज करवाई थी। इन पर सीबीएसई के 10वीं और 12वीं परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने, प्रश्नपत्र की खरीदारी जैसी फर्जी खबरों के वीडियो डाल कर विद्याíथयों को गुमराह करने का आरोप लगा। सीबीएसई ने इन 76 यूट्यूब चैनलों की सूची भी जारी की। बोर्ड के सचिव ने यह भी कहा कि ये चैनल पिछले करीब दो वर्षो से फर्जी और अफवाह फैलाने वाली खबरें चला रहे हैं। हालांकि सरकार चाहे तो इन पर अंकुश लगा भी सकती है। शिकायत के आधार पर उनके खिलाफ सीआरपीसी की धाराओं के तहत कार्रवाई की जा सकती है। महाराष्ट्र के सूचना व जनसंपर्क सचिवालय द्वारा हाल ही में यूट्यूब आधारित न्यूज चैनलों को अनधिकृत घोषित किया गया। चूंकि यूट्यूब आधारित चैनलों का कोई पंजीयन नहीं है, इसीलिए इन पर फिलहाल कोई नियंत्रण नहीं है।

इस संबंध में एक विडंबना यह है कि इन यूट्यूब न्यूज चैनल के लिए न तो किसी प्रकार की पात्रता की जरूरत है, और ना ही इनके पास कोई डिग्री है। यदि हम समाचार चैनलों की बात करें तो उनका बाकायदा रजिस्ट्रेशन होता है और प्रसारण के लिए वे सरकार से स्पेस खरीदते हैं, जिस कारण उन पर भी सरकार का नियंत्रण होता है। वहीं देश में समाचार पत्रों के पंजीयन के लिए ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार ऑफ न्यूजपेपर्स फॉर इंडिया नामक विभाग है। वहां पंजीकृत अखबार को ही डीएवीपी के जरिये विज्ञापन का लाभ मिलता है।

फ़िलहाल यूट्यूब न्यूज चैनल पर सरकार का कोई सीधा नियंत्रण नहीं है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इस बारे में सरकार कोई नियम-कानून नहीं बना पाई है। सरकार को नियम-कायदे बनाकर इन पर नियंत्रण करना चाहिए। उसका आधार यह हो सकता कि केवल उन यूट्यूब चैनल्स को ही विज्ञापन व अन्य सुविधाएं दी जाएं, जिन्होंने नियमों के तहत रजिस्ट्रेशन करवाया है। ऐसे में हर यूट्यूब चैनल पंजीयन करवाना चाहेगा। इससे फेक न्यूज और गलत तथ्य परोसने वाले चैनलों पर लगाम लगाई जा सकती है।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]