रिजवान अंसारी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में व्यवस्था देते हुए कहा कि किसी कॉलेज के कोर्स को मान्यता देने के लिए विश्वविद्यालय अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की तरफ से तय मानकों को बढ़ा तो सकते हैं, लेकिन उन्हें इसमें कटौती करने का अधिकार नहीं है। दरअसल, एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, केरल ने कॉलेजों के कोर्स को मान्यता देने के लिए मानकों को बढ़ाया था, लेकिन तकनीकी शिक्षा परिषद ने इसे चुनौती दी थी, जिसे केरल उच्च न्यायालय ने सही ठहराया। लेकिन अब मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने विश्वविद्यालय के फैसले को सही ठहराते हुए केरल हाई कोर्ट के आदेश को रद कर दिया है। पीठ का मानना है कि विश्वविद्यालय अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद द्वारा तय मानकों को हल्का नहीं कर सकते, लेकिन निश्चित तौर पर उन्हें मानदंडों और मानकों को बढ़ाने का अधिकार है।

एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट ने नियमों और मानकों से समझौता न करने का निर्देश दिया है, वहीं दूसरी ओर देश भर में नियमों को ताक पर रखने वाले कई शिक्षण संस्थान छात्रों के भविष्य के साथ खेलते नजर आ रहे हैं। अभी पिछले दिनों ही पता चला कि सूचना और जानकारी के तमाम स्नोत उपलब्ध होने के बावजूद फर्जी विश्वविद्यालयों के फलने-फूलने का खेल जारी है। यूजीसी यानी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी एक हालिया सूची इस बात की तस्दीक करती हुई दिख रही है। आयोग ने बताया है कि मौजूदा वक्त में देश भर में 24 ऐसे विश्वविद्यालय हैं, जो गैर-मान्यता प्राप्त हैं और यूजीसी अधिनियम, 1956 की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो देश के कई राज्यों में फर्जी विश्वविद्यालयों का खुला खेल चल रहा है और तमाम छात्र इन संस्थानों की गिरफ्त में आ रहे हैं। इन 24 संस्थानों में सबसे ज्यादा (आठ) उत्तर प्रदेश में हैं, जबकि सात फर्जी विश्वविद्यालयों के साथ दिल्ली दूसरे पायदान पर है।

बात चाहे फर्जी डिग्री की हो या फर्जी संस्थानों की, ये हमेशा चिंता के विषय रहे हैं। तीन साल पहले दिल्ली यूनिवर्सटिी में नामांकन के दौरान एक ऐसे बोर्ड के सर्टिफिकेट को पकड़ा गया, जो फर्जी था। दिसंबर, 2017 में दिल्ली पुलिस में यह मामला दर्ज हुआ था। इस फर्जी बोर्ड ने 300 स्कूलों को रजिस्टर्ड किया था। वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने डीम्ड यूनिवर्सटिी पर नियामक प्राधिकारों की पूर्व मंजूरी के बिना 2018-19 सत्र से कोई भी दूरस्थ पाठ्यक्रम चलाने पर रोक लगा दी। कोर्ट ने यह व्यवस्था देते हुए देश की चार डीम्ड यूनिवर्सिटी में 2001-2005 सत्र के बाद से दूरस्थ शिक्षा के जरिये छात्रों को मिली इंजीनियरिंग की डिग्री रद कर दी। दरअसल इन चार संस्थानों ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए संबंधित प्राधिकरण से अनुमति नहीं ली थी।

लिहाजा कोर्ट ने इन डीम्ड यूनिवर्सिटी को इंजीनियरिंग कोर्स चलाने की अनुमति देने में अधिकारियों की भूमिका का पता लगाने के लिए सीबीआइ जांच के आदेश दिए थे। साथ ही, जहां अक्टूबर में यूजीसी ने फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी की है, वहीं जनवरी में भी नियमों का सख्ती से पालन करने के संबंध में सभी विश्वविद्यालयों को यूजीसी ने पत्र लिखा था। यह तब हुआ जब हिमाचल प्रदेश के दो निजी विश्वविद्यालयों द्वारा नियमों को ताक पर रख कर डिग्रियां बांटने का मामला सामने आया। दरअसल इन दोनों संस्थानों ने छात्रों को फर्जी डिग्रियां बांट कर उनके साथ धोखाधड़ी की। 2016 में मेरठ में विभिन्न विश्वविद्यालयों के स्टडी सेंटर बनाकर स्नातक से पीएचडी तक की डिग्री छात्रों को देने का मामला सामने आया था। हकीकत तब सामने आई, जब ये छात्र नौकरी करने कंपनियों में पहुंचे। स्टडी सेंटर की संबद्धता भी फर्जी मिली। इन डिग्रियों के नाम पर युवाओं से करोड़ों रुपयों की ठगी की गई।

ये मामले केवल एक बानगी मात्र हैं। हर साल हजारों की तादाद में युवाओं के साथ ऐसे ही फर्जी कोर्स, बोर्ड आदि की आड़ में शिक्षण संस्थान फर्जीवाड़ा करते हैं। इससे न केवल अभिभावकों की गाढ़ी कमाई पानी में बह रही है, बल्कि हजारों छात्रों का करियर भी चौपट हो रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक पिछले दस साल में करीब 90 हजार छात्र फर्जी विश्वविद्यालयों के शिकार बने हैं। अवैध रूप से संचालित ये संस्थान युवकों को उज्ज्वल भविष्य के रंगीन सपने दिखा कर उन्हें फर्जी डिग्री थमाते हैं और फिर युवकों की खुशियां और उम्मीदें पल भर में काफूर हो जाती हैं। क्या देश की राजधानी में ही सात फर्जी विश्वविद्यालयों का होना सरकार की नींद उड़ाने के लिए काफी नहीं? भारतीय दंड संहिता के तहत फर्जी डिग्रियां बांटने वाली संस्थाओं को बंद किया जा सकता है। लेकिन हजारों छात्रों के इन बहरूपियों के जाल में फंसने के बावजूद ये संस्थान लगातार फल-फूल रहे हैं।

दरअसल, दो साल पहले फर्जी संस्थानों पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने यूजीसी को खत्म करके हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया की स्थापना का प्रस्ताव दिया था। कहा गया था कि यह कमीशन केंद्रीय, निजी और डीम्ड विश्वविद्यालय के लिए सभी प्रकार के नियम तय करेगी। लेकिन इस पर बात आगे बढ़ती हुई नहीं दिख रही है। समझना होगा कि ये अवैध संस्थान कई युवाओं की जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। भविष्य को उज्ज्वल बनाने की चाह में ये युवा शैक्षिक संस्थानों का रुख तो करते हैं, लेकिन बाद में ठग लिए जाते हैं। फिर यही युवा समाज में अनैतिक कार्य करने को मजबूर हो जाते हैं। इस तरह की गतिविधियां हमारे समाज के लिए नासूर बनती जा रही हैं, जिससे समाज में आपराधिक प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिल रहा है। इसे रोकने के लिए तत्काल व्यावहारिक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ऐसे संस्थानों की महज सूची जारी कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है। बात इससे आगे बढ़ नहीं पाती। 

[शिक्षा व सामाजिक मामलों के जानकार]